Sunday 14 December 2014

स्वस्थ एवम दीर्घायु

                        "आत्यन्तिकम  व्याधिहरम जनानाम,चिकित्सकम वेद विदोवदंति,
                         संसार ताप त्रय नाश बीजम, गोविंद दामोदर माधवेति,"
                        अर्थात- वेद वेताओ का कहना है गोविंद दामोदर और माधव ये नाम मनुष्यो के समस्त रोगो को समूल उन्मूलन करने वाले भेषज है और संसार के (आधिभौतिक,आधिदेविक,औरआध्यात्मिक) त्रिविध तापो का नाश करने के लिये बीजमंत्र  के समान है,
                    " सर्व रोगोपशमनम सर्वोपद्रव नाशनम,शांतिदम सर्वरिष्टानाम हरेनामनुकीर्तनम,"
                   अर्थात-  हरिनाम संकीर्तन सभी रोगो का उपशमन करने वाला और समस्त अरिष्टो की शांति करने वाला है
                    हितकारी आहार और विहार का सेवन करने वाला विचार पुर्वक काम करने वाला , काम क्रोधादि विषयो मे आसक्त ना रहने वाला, सभी प्राणियो पर समद्रष्टि रखनेवाला ,सत्य बोलने मे तत्पर रहने वाला , सहन शील और आप्त पुरूषो की सेवा करने वाला मनुष्य निरोग (रोगरहित) रहता है,सुख देने वाली मति ,सुख कारक वचन और सुख कारक कर्म , अपने अधीन मन तथा शुद्ध पाप रहित बुद्धि जिसके पास है और जो ज्ञान प्राप्त करने,तपस्या करने , और योग सिद्ध करने मे तत्पर रहता है,उसे शारीरिक और मानसिक कोई भी रोग नही होते,वह सदा स्वस्थ और दीर्घायु बना रहता है,
                   स्वामी रामसुख दास जी महाराज कहते है कि वास्तविक आरोग्य परमात्मा की प्राप्ति मे ही है , इसलिये गीता मे परमात्मा को अनामय कहा है-"जन्मबंधविनिर्मुक्ताःपदमगच्छ्न्त्यनामयम"(2/51),आमय नाम रोग का है,जिसमे किंचित मात्र भी विकार न हो उसे अनामय कहते है,अनामय पद की प्राप्ति होंने पर इन जन्म मरण रूप रोग का सदा के लिये नाश हो जाता है इसलिये जो महापुरूष परमात्म तत्व को प्राप्त हो चुके है, वही असली नीरोग है,तात्पर्य है कि आत्मा और परमात्मा -दोनो नीरोग है ,रोग तो केवल शरीर मे ही आता है इसलिये कहा गया है -"शरीरम व्याधिमंदिरम"
                   मेरे परम पुज्य पिताजी श्री मालचंद जी लिखते है-

"स्वप्नवत है सारा संसार ,यहाँ के मिथ्या सब व्यापार , सभी को रहना दिन दो चार अंत मे जाना हो लाचार,
म्रत्यु  के आघातो से पुर्व करेंगे प्राणो का उपचार, भला फिर क्यो होंगे संत्रस्त शक्ति युक्त होंगे जब आधार,
अंधेरा घिर आने से पुर्व प्रज्वलित दीप करे तैयार,भला फिरक्यो होंगे भयभीत,प्रकाशित होंगे जबसब द्वार,"
           " मंत्रे,तीर्थे,दिव्जे,देवे,दैवज्ञ,भेषजे,गुरौ,याद्रिशी भावना यस्य सिधिर्भवतिताद्रिशी,"
अर्थात-मंत्र मे ,तीर्थमे, ब्राह्मण मे ,देवता मे, दैवज्ञमे, औषधि मे, तथा गुरु मे जो जैसी भावना(निष्ठा) रखता है,उसे फल भी तद्नुरूप ही मिलता है
             अंत मे  एक सारगर्भित  बात ये है कि "अपने मन को परमात्मा मे लगाओ ,सब कुछ त्याग कर ईश्वर का ध्यान करो और ईश्वर कहा है अपने ह्रदय मे ,अतः सारा ध्यान ह्र्दय  मे केंद्रित करके अपने सम्पुर्ण शरीर का पालन स्वस्थ एवम दीर्घायु बनने के लिये करना चाहिये,

No comments:

Post a Comment