आयुर्वेद का लक्ष्य सुखी तथा दीर्घ जीवन की प्राप्ति है जीवन
मे सुख- दुख का अनुभव नींद पर भी निर्भर करता है आचार्य चरक ने स्वाभाविक और यथोचित रूप से ली गई निद्रा एवम अस्वाभाविक और असम्यक रूप से सेवन की गयी निद्रा का जीवन पर पडने वाले प्रभावो का निम्न लिखित रूप से वर्णन किया है-
(1)सुख-दुख - यथोचित रूप मे सेवन की गयी निद्रा सुख प्रदान करती है,स्वाभाविक निद्रा मनुष्य के सुखी होने की सूचना भी देती है,
इसके विपरीत अकाल या अनुचित रूप मे सेवन की गई निद्रा अनेक प्रकार के दुःखो का कारण बनती है,
(2)पुष्टि-कार्श्य - पुष्टि-कार्श्य का तात्पर्य ,यहाँ शरीरके पुष्ट होने तथा दुबला-पतला होने से है,जब उचित रूप से नींद सेवन की जाती है तो शरीर मे आहार आदि का पाचन सम्यक रूप से होता है,जिससे शरीर मे रस-रक्तादि की पुष्टि निर्बाधरूप से निरंतर होती रहती है,और शरीर के सभी अंग-प्रत्यंग पुष्ट होते रहते है,
अनुचित रूप से ली गई नींद से शरीरस्थ धातुओ का क्षय होता है जिससे मनुष्य दुबला-पतला हो जाता है या बलहीन हो जाता है
(3)बल-अबल- आयुर्वेद मे बलका दो अर्थ ग्रहण किया जाता है-पहला शक्ति ग्रहण तथा दुसरा विशिष्टव्याधि -क्षमत्व एवम ओज ग्रहण ,सम्यक नींद लेने से शरीर और मन मे रोगो केप्रति लडने की क्षमता बढती है,जिससे मनुष्य स्वस्थ रहता है,
यदि नींद का सेवन सम्यक रूप से नही किया जाता हैतो शरीर तथा मन मे रोगो के प्रति रक्षणशक्ति कम हो जाती है परिणामतः मनुष्य सदेव शारीरिक और मानसिक व्याधिओ से ग्रस्त रहता है
(4)वृषता-क्लिबता- वृषता का सामान्यतया अर्थ है वीर्यवृदिधतथा पौरूषशक्ति की वृद्धि और क्लिबता काअर्थ है नपुंसकता, सम्यक रूप से नींद लेने से शरीरस्थ धातुओ कीपुष्टि होती है जिससे शुक्र धातु की वृदिध होती है, सम्यक नींद लेने से मानसिक प्रसन्नता होती है,जिससे मन मे संकल्पशक्ति यथोचित रूप से विद्ध्मान रहती है जोकि सर्वोतम वृष्यभाव माना जाता है,
अनुचित रूप से या असम्यक रूप से ली गई नींद से धातुये क्षीण होती है जिससे शुक्र धातु की पुष्टि नही हो पाती,जिससे व्यक्ति मे शुक्र तथा ओज का क्षय होता है
(5)ज्ञान-अज्ञान - ज्ञानऔरअज्ञान भी नींद पर निर्भर करता है विषय,इंद्रिय,मन और आत्मा - इन चारो के सन्योग से ज्ञान होताहै जब इंद्रियाँ तथा मन - ये दोनो कार्य करते-करते थक जाते है तो नींद आती हैविश्राम के बाद वे पुनःअपने-अपने विषयो को ग्रहण करने मेसमर्थ हो जाते हैइस प्रकार सम्यक रूप से निद्रा सेवन करने सेज्ञान ग्रहण की प्रक्रिया निर्बाध रूप से चलती रहती है,
जब सम्यक रूप से नींद का सेवन नही किया जाता है तो मन और इंद्रियाँ -दोनो ज्ञान ग्रहण करने मे समर्थ नही होती,
सम्यक नींद--
आयुर्वेद मे रात्रिस्वभावप्रभवा कोही सामान्य नींद कहाहै अतः मात्र रात्री काल मे आने वाली स्वाभाविक नींद को ही सम्यक नींद समझना चाहिये क्योकि चरक ने कहा है-"रात्रो जागरणम रूक्षम स्निग्धम प्रस्वपनम दिवा"(च.सु.21/50),अर्थात रात्रि जागरण से रुक्षता उत्पन्न होतीहैतथा दिन मे सेवन से स्निग्धता बढती है,लेकिन निम्न अवस्थाओ मे दिन मे भी शयन किया जा सकता है-
(1)जिस व्यक्ति का शरीर अतिमात्रा मे मानसिक कार्य करने से क्षीण हो गया हो
(2)जिसे वमन अथवा अतिसार हुआ हो
(3)जो शारीरिक श्रम करता हो या पैदल यात्रा करता हो
(4)जो किसी चोट से ग्रसित हो, श्वास, क्षत, तथा हिक्का रोग से पीडित हो
(5)जो पागल हो,या क्रोध,भय आदि मनोवेगो से युक्त हो
(6)जो व्यक्ति इस प्रकार का काम करता हो,जिसमे रात्रिजागरण करना पडता हो
(7) ग्रीष्म ऋतु मे प्रत्येक व्यक्ति को दिन मे निद्रा सेवन करना चाहिये
निम्न लिखित व्यक्तियो को दिन मे कदापि नही सोना चाहिये-
जो मोटापे से ग्रस्त हो, नित्य दुध घी खाने वाले हो, कफज प्रकृति के हो,जीर्ण विष से पीडित हो तथा कंठगत रोग से ग्रस्त हो,
असम्यक नींद-
आयुर्वेद मे रात मे सेवन की जानेवाली नींद के अतिरिक्त अन्य नींद असम्यक नींद कहलाती है यह निम्नप्रकार की होती है-
(1)कफ के अत्यधिक बढने से उत्पन्न,(श्लेष्मसमुध्भवा)
(2)मन तथा शरीर के अत्यधिक श्रम करने से उत्पन्न,(मनःशरीरश्रमसम्भवा)
(3)अचानक आनेवाली नींद,(आगंतुकी)
(4) रोगो के कारण उत्पन्न,(व्याध्यनुवर्तनी)
(5)तामसिकविकारो से उत्पन्न (तमोभवा)
आजकल नींद लाने वाली औषधियो के सेवन का प्रचलन बढता जा रहा है औषधि से आने वाली नींद भी असम्यक नींद ही समझनी चाहिये,
मे सुख- दुख का अनुभव नींद पर भी निर्भर करता है आचार्य चरक ने स्वाभाविक और यथोचित रूप से ली गई निद्रा एवम अस्वाभाविक और असम्यक रूप से सेवन की गयी निद्रा का जीवन पर पडने वाले प्रभावो का निम्न लिखित रूप से वर्णन किया है-
(1)सुख-दुख - यथोचित रूप मे सेवन की गयी निद्रा सुख प्रदान करती है,स्वाभाविक निद्रा मनुष्य के सुखी होने की सूचना भी देती है,
इसके विपरीत अकाल या अनुचित रूप मे सेवन की गई निद्रा अनेक प्रकार के दुःखो का कारण बनती है,
(2)पुष्टि-कार्श्य - पुष्टि-कार्श्य का तात्पर्य ,यहाँ शरीरके पुष्ट होने तथा दुबला-पतला होने से है,जब उचित रूप से नींद सेवन की जाती है तो शरीर मे आहार आदि का पाचन सम्यक रूप से होता है,जिससे शरीर मे रस-रक्तादि की पुष्टि निर्बाधरूप से निरंतर होती रहती है,और शरीर के सभी अंग-प्रत्यंग पुष्ट होते रहते है,
अनुचित रूप से ली गई नींद से शरीरस्थ धातुओ का क्षय होता है जिससे मनुष्य दुबला-पतला हो जाता है या बलहीन हो जाता है
(3)बल-अबल- आयुर्वेद मे बलका दो अर्थ ग्रहण किया जाता है-पहला शक्ति ग्रहण तथा दुसरा विशिष्टव्याधि -क्षमत्व एवम ओज ग्रहण ,सम्यक नींद लेने से शरीर और मन मे रोगो केप्रति लडने की क्षमता बढती है,जिससे मनुष्य स्वस्थ रहता है,
यदि नींद का सेवन सम्यक रूप से नही किया जाता हैतो शरीर तथा मन मे रोगो के प्रति रक्षणशक्ति कम हो जाती है परिणामतः मनुष्य सदेव शारीरिक और मानसिक व्याधिओ से ग्रस्त रहता है
(4)वृषता-क्लिबता- वृषता का सामान्यतया अर्थ है वीर्यवृदिधतथा पौरूषशक्ति की वृद्धि और क्लिबता काअर्थ है नपुंसकता, सम्यक रूप से नींद लेने से शरीरस्थ धातुओ कीपुष्टि होती है जिससे शुक्र धातु की वृदिध होती है, सम्यक नींद लेने से मानसिक प्रसन्नता होती है,जिससे मन मे संकल्पशक्ति यथोचित रूप से विद्ध्मान रहती है जोकि सर्वोतम वृष्यभाव माना जाता है,
अनुचित रूप से या असम्यक रूप से ली गई नींद से धातुये क्षीण होती है जिससे शुक्र धातु की पुष्टि नही हो पाती,जिससे व्यक्ति मे शुक्र तथा ओज का क्षय होता है
(5)ज्ञान-अज्ञान - ज्ञानऔरअज्ञान भी नींद पर निर्भर करता है विषय,इंद्रिय,मन और आत्मा - इन चारो के सन्योग से ज्ञान होताहै जब इंद्रियाँ तथा मन - ये दोनो कार्य करते-करते थक जाते है तो नींद आती हैविश्राम के बाद वे पुनःअपने-अपने विषयो को ग्रहण करने मेसमर्थ हो जाते हैइस प्रकार सम्यक रूप से निद्रा सेवन करने सेज्ञान ग्रहण की प्रक्रिया निर्बाध रूप से चलती रहती है,
जब सम्यक रूप से नींद का सेवन नही किया जाता है तो मन और इंद्रियाँ -दोनो ज्ञान ग्रहण करने मे समर्थ नही होती,
सम्यक नींद--
आयुर्वेद मे रात्रिस्वभावप्रभवा कोही सामान्य नींद कहाहै अतः मात्र रात्री काल मे आने वाली स्वाभाविक नींद को ही सम्यक नींद समझना चाहिये क्योकि चरक ने कहा है-"रात्रो जागरणम रूक्षम स्निग्धम प्रस्वपनम दिवा"(च.सु.21/50),अर्थात रात्रि जागरण से रुक्षता उत्पन्न होतीहैतथा दिन मे सेवन से स्निग्धता बढती है,लेकिन निम्न अवस्थाओ मे दिन मे भी शयन किया जा सकता है-
(1)जिस व्यक्ति का शरीर अतिमात्रा मे मानसिक कार्य करने से क्षीण हो गया हो
(2)जिसे वमन अथवा अतिसार हुआ हो
(3)जो शारीरिक श्रम करता हो या पैदल यात्रा करता हो
(4)जो किसी चोट से ग्रसित हो, श्वास, क्षत, तथा हिक्का रोग से पीडित हो
(5)जो पागल हो,या क्रोध,भय आदि मनोवेगो से युक्त हो
(6)जो व्यक्ति इस प्रकार का काम करता हो,जिसमे रात्रिजागरण करना पडता हो
(7) ग्रीष्म ऋतु मे प्रत्येक व्यक्ति को दिन मे निद्रा सेवन करना चाहिये
निम्न लिखित व्यक्तियो को दिन मे कदापि नही सोना चाहिये-
जो मोटापे से ग्रस्त हो, नित्य दुध घी खाने वाले हो, कफज प्रकृति के हो,जीर्ण विष से पीडित हो तथा कंठगत रोग से ग्रस्त हो,
असम्यक नींद-
आयुर्वेद मे रात मे सेवन की जानेवाली नींद के अतिरिक्त अन्य नींद असम्यक नींद कहलाती है यह निम्नप्रकार की होती है-
(1)कफ के अत्यधिक बढने से उत्पन्न,(श्लेष्मसमुध्भवा)
(2)मन तथा शरीर के अत्यधिक श्रम करने से उत्पन्न,(मनःशरीरश्रमसम्भवा)
(3)अचानक आनेवाली नींद,(आगंतुकी)
(4) रोगो के कारण उत्पन्न,(व्याध्यनुवर्तनी)
(5)तामसिकविकारो से उत्पन्न (तमोभवा)
आजकल नींद लाने वाली औषधियो के सेवन का प्रचलन बढता जा रहा है औषधि से आने वाली नींद भी असम्यक नींद ही समझनी चाहिये,
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