Wednesday 20 May 2015

Precaution of piles –(अर्श मे सावधानियाँ)

Precaution of piles –(अर्श मे सावधानियाँ)

पाईल्स को हिंदी मे मस्सा कहते है आयुर्वेद के ग्रंथो मे इसे अर्श कहा जाता है यह दो प्रकार के होते है सहज और कालज, जो जन्म से हो उन्हे सहज तथा जो जन्म के बाद हो जाते है उन्हे कालज कहते है ये स्थान भेद से भी दो प्रकार के होते है स्थानिक –जो गुदवलियो मे होते है , जो शरीर के किसी अवयव मे भी उत्पन्न हो सकते है उसे सार्वदेहिक कहते है,मुख्य रूप से गुदवलियो मे होने वाले मस्से ही पाईल्स कहलाते है और उनमे ही भयंकर पीडा  होती है सार्वदेहिक मस्से को corn कहते है तथा ये ज्यादा पीडा देने वाले नही होते है वैसे ये सार्वदेहिक मस्से जीभ कान तथा स्त्रीयो के योनी मे भी हो जाते है इनका उपचार भी समय रहते करना  चाहिये आज हम piles जो गुदवलियो मे होते है उनमे रखने वाली सावधानी का आज इस पोस्ट मे किया जा रहा है
चिकित्सा की दृष्टि से अर्श दो प्रकार के होते है रक्तार्श और शुष्कार्श, दोष भेद से सभी अर्श त्रिदोषज होते है फिर भी जिस समय तीन दोषो मे से जिस दोष की प्रधानता देखी जायेगी उस समय अर्श उसी दोष के नाम से जाना जायेगा जैसे – वातज,पितज,कफज... आदि

* कैसे पता करे पाईल्स का ?
हमारे शरीर मे या युँ कहे कि गुदवलियो मे मस्से होने वाले है या हो गये है इसका पता कैसे चले ? इसके लिये कुछ लक्षण है जो पाईल्स होने से पहले दिखाई देते है उनका ध्यान रखे तो पाईल्स हो रहा  है या हो चुका है इसका पता लगाया जा सकता है और हम इस रोग से सावधानी से निपट सकते है-

1 जो कुछ भी हम खाते है उसका उचित पाचन होना चाहिये यदि पाचन उचित नही हो रहा है तो ये मस्सा होने के संकेत है

2 शरीर का वजन कम हो रहा है या शरीर कृश हो गया है

3 बार – बार डकारे आती है

4 शरीरमे कमजोरी महसुस होती है खाते पिते भी शरीर मे ताकत का अभाव होना

5 पेट मे हमेशा भरा –भरा सा महसूस होता है, अफारा रहता है

6 टांगोमे पीडा का होना

7 मल का थोडा- थोडा बार बार निकलना

ये सभी लक्षण मस्सा होने के सुचक है यदि ऐसा हो रहा  है तो अपना उचित उपचार करवाना चाहिये ,या निम्न लिखित सावधानियाँ रखे –

* अर्शरोग से बचने के लिये सावधानियाँ—

अर्शके दो प्रकार बताये है (1) सहज (2) कालज

(1)सहज -

सहज अर्शतो जन्म जात होता है इसमे रोग पहले से ही मोजूद रहता है अतः सावधानी रोग को रोकने तथा उसे पहचानने मे रखनी चाहिये 
सहज अर्श के निम्नलक्षणहै –रोगी अत्यंत कृश होता है, उसका शरीर विवर्ण होता है , क्षीण और दीन होता है , हमेशा कब्ज रहता है , मुत्र मे शर्करा जैसा पदार्थ निकलतारहता है , अश्मरी रहती है , अस्थि संधियो मे शूल रहता है, चिंतित एवम अत्यंतआलसीहोता है
इन लक्षणोसे हम रोग तथा रोगीको पहचान सकते है रोगी स्वम को पहचान कर इन लक्षणो को दूर करने के लिये प्रयास करे तो रोग से बच सकताहै
नियमित रूप से आलस्य को त्याग कर प्रातःकाल जल्दी उठ कर पानी पिये, कब्ज को ना बनने दे , घूमने – फिरने की आदत डाले, खाना नियमित रूप से समय पर खाये,

(2) कालज -
 कालज अर्श सच मे हमारी लापरवाही की वजह से होता  है इस रोग को निम्नलिखित सावधानियो को अपनाकर रोग से बचा जा सकता है

1 भारी भोजन ना करे, हल्का आहार ले जो सुपाच्य हो,

2 शीत,ज्यादा मशालेदार, अजीर्ण कारक आहार, बहुत ही कम मात्रा मे आहार ना ले

3 नियमित रूप से व्यायाम करे , आनंदपुर्वक पति –पत्नी साथ रहे,

4 ग्रीष्म ऋतु के अलावा दिन मे ना सोये

5 बहुत ही सुखद या बहुत ही कठोर आसन का उपयोग ना करे

6 घोडे,ऊंट , स्कूटर, बाईक आदि की ज्यादा सवारी ना करे

7 बलपुर्वकमल त्याग ना करे,मल के वेग को कभी ना रोके

8 बहुत ही ठंडेजल का ज्यादा स्पर्श ना करे

9 कब्ज का पुरा ध्यान रखे , कब्ज ना होने दे

10 टेढे – मेढे आसन पर ना बैठे


ये सब उपाय जब पाईल्सके संकेत दिखाई देने लगे तभी से ही शुरू कर देने चाहिये   

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