Sunday 21 June 2015

Yoga Day 2015 -- Yoga training in tribes Area

कपाल भाती करते हुये डाँ.वेदप्रकाश कौशिकAdd caption
ताडासन करते हुये आदिवासी क्षेत्र के ग्रामीण जन  एवम आसन करवाते हुये डाँ. कौशिकAdd caption
योग के बारे मे ध्यान से सुनते हुये कोठार ग्राम के  ग्रामीण लोगAdd caption
चक्रासन करते हुये डाँ. कौशिकAdd caption
योग के बारे मे बताते हुये डाँ. कौशिकAdd caption
आज 21जुन 2015 को पुरे विश्व मे प्रथम योग दिवस मनाया गया, यह बडी प्रसन्नता की बात है कि आज राजस्थान के पाली जिले के छोटे  से गांव कोठार मे भी यह योग दिवस मनाया गया , स्वस्थ रहने के लिये योग से बढकर और कोई तरीका नही है पुरे विश्व को आज यह सब भारत से  मिला है,मैंने भी आज आदिवासी क्षेत्र के इस गांव मे लोगो को योग के बारे जानकारी दी तथा योग करना भी सिखाया है, कुछ फोटो शेयर करने का मन था इस लिये कुछ फोटो शेयर कर रहा हुँ, आप लोगो को भी यदि योग एवम आयुर्वेद के बारे कुछ जानना है या कुछ सुझाव देने है तो आप Contact पर अपनी बात लिख कर मुझे भेजे, मै आप लोगो के सुझाव और कमेंट  का इंतजार कर  रहा हुँ

Yoga Day 2015 by Dr.vedprakash kaushik

Thursday 11 June 2015

Yoga for skill development (जानिए कैसे बढाये योग से हुनर? )

Yoga for skill development -


(A)योग से हुनर बढाये -

मानव – जीवन की सर्वोत्कृष्ट उप्लब्धि है पुरुषार्थ चतुष्टय  की प्राप्ति करना,ये चार पुरुषार्थ है –धर्म, अर्थ, काम ,मोक्ष , इनको प्राप्त करने का साधन है योग,
मानवके शारीरिक, मानसिक,नैतिक, और आध्यात्मिक मुल्यो की प्रतिष्ठापना का उपदेष्टा है योग शास्त्र

* योग क्या है ? – योग का साधारण सा अर्थ है जोडना, इस प्रकार कतिपय आचार्य कहते है कि “ शरीर ,मन, आत्मा की समग्र शक्तियो को परमात्मा मे लगा देना ही योग कहलाता है, हमारा शरीर तीन स्तरो मे बंटा हुआ है शरीर , मन, आत्मा – ये तीनो जब एक लय मे आ जाते है तो हमारे अंदर की प्रतिभा चमक उठती है और हमारा हुनर प्रगट होने लगता है इन तीनो को एक लय मे लाने की क्रिया को ही योग कहते है,कुछ बाधा पहुचाने वाली वृतियाँ है उनका का निरोध करना ही योग है “योगश्चित्वृतिनिरोधः “
योग के अनेक प्रकार है –कर्म योग ,ज्ञानयोग ,भक्तियोग , अष्टांग योग , राजयोग, हठयोग, लययोग,जपयोग, और ना जाने कितने योग है 

(1)योग से हुनर कैसे बढाये (how to develop skill by yoga) -
जब हम किसी भी लक्ष्य को पाने की कोशीश करते है तो कुछ बाधाये आती है उन बाधाओ को पार करके लक्ष्य की प्राप्ती कर लेना ही योग है जीवन के लक्ष्यो को पाने मे बाधा पहुचाने वाली वृतियाँ पांच है 

* प्रमाण-- प्रत्यक्ष, अनुमान,और आगम ये तीन प्रमाणहै

* विपर्यय—मिथ्याज्ञान या भ्रांत धारणा को विपर्यय कहते है

* विकल्प--- जिसका विषय वास्तवमे नही है, वह विकल्प है जैसे –किसी धनी का अपने को दरिद्र समझ कर कंजुसी करना या किसीदरिद्र का अपने आप को धनी समझ कर खर्चिला बनना

* निद्राज्ञान के अभाव को ग्रहण करने वाली वृति निद्राकहलातीहैं

* स्मृति—स्मरण के द्वारा अपने अतीत के दुःखो को याद करके दुःखी होना स्मृतिहै , इन वृतियो का निरोध करना ही योग है 

ये पांच चित की वृतियाँ होती है यह जीवन के लक्ष्य मे बाधा है जीवन का लक्ष्य है पुरुषार्थ चतुश्टय की प्राप्ति, जिसमे अंत मे मोक्ष है जो भगवत प्राप्ति के बाद मे मिलता है लेकिन मेरे विचार मे ऐसा नही है श्रीमदभगवत गीता मे कहा है कि “यद्ध्यविभूतिमत्सत्वमश्रीमदुर्जितमेव वा, तत्तदेवावगच्छ त्वम मम तेजोनश्सम्भवम, अर्थात – हे अर्जुन जो जो ऐश्वर्ययुक्त, कांतियुक्त, और शक्ति युक्त वस्तुये है , उन उन को तु मेरे तेज का अंश मात्र से उत्पन्न हुई जान,
इसका मतलब यह हुआ कि संसार मे जो भी ऐश्वर्य युक्त वस्तु है वो भगवान का अंश है और योग भी यह कहता है कि आत्मा का परमात्मा से मिलन ही योग है हमारे जीवन का लक्ष्य भी पुरुषार्थ चतुश्टय की प्राप्ति करना है इस लिये जीवन को ऐश्वर्य सम्पन्न बनाना या ऐश्वर्य की प्राप्ती करना, कांति या शक्ति प्राप्त करना ही भगवत प्राप्ति है अब हम अपने जीवन को इस शरीर के माध्यम से ऐश्वर्य सम्पन्न कैसे बनाये,इस पर विचार करेंगे तो हमे पता चलता है कि सब कुछ छोड कर एकाग्रमन से भगवान की यानी लक्ष्य की प्राप्तिमे जुट जाना ही योग है  इस कार्य मे योग के जो आठ अंग है वे हमारी मदद करते है,योग के माध्यम से हम यह जान पाते है कि हमारे अंदर ऐसी कौनसी प्रतिभा है या हुनर है, और जब जान जाते है तो उसे निखारने के लिये योग हमारी मदद करता है, जो बाधाये है उनसे पार पाने मे योग मदद करते है  और फिर अनवरत अभ्यास से मंजिल मिल जाती है फिर चाहे कोई विद्ध्यार्थी हो, चाहे बिजनस मैन हो, चाहे खिलाडी हो अपना हुनर skill बढा ही लेते है
क्या है योग के आठ अंग –

1- यम- उच्च नैतिक शिष्टाचार का मनसा वाचा कर्मणा पालन
2- नियमव्यक्तिगत चारित्रिक अनुशासन के सेतु
3- आसनशरीर , मन और आत्मा का पुर्ण सन्तुलन, स्थिर एवम सुखकर शरीरिक स्थिति
4- प्राणायाम – श्वासोका विस्तार एवम नियंत्रण ,श्वसन ,उछ्श्वसन और धारण तथा प्राणशक्ति का नियामन
5- प्रत्याहार – मनोनिरोध, इंद्रिय- विषयो के आकर्षण पर विजय तथा इंद्रियो को वश मे करना
6- धारणा – किसी एक बिंदु पर या कार्य पर मन की पुर्ण लवलीनता
7- ध्यान – ध्यान उस अवस्था का नाम है जब साधक स्वम को चिन्मात्र ब्रह्मतत्व  समझने लगता है
8- समाधि- मन का आत्मा के साथ एकाकार होना, जीवात्मा का ब्रह्म मे लीन हो जाना तथा चित्त का ध्येयाकार मे परिणत हो जाना

ये आठ अंग है जिससे हम अपने जीवन को सुख मय बना सकते है अब इस पुरे आठ अंगो को हुनर बढाने के क्रम मे ले तो इस प्रकार ले सकते है
मन को लक्ष्य मे लगाने के लिये- यम
आत्मा को लक्ष्य मे लगाने के लिये – नियम
शरीर को लक्ष्य मे लगाने के लिये – आसन
मन और शरीर को मिलाने के लिये – प्राणायाम
आत्मा और शरीर को मिलाने के लिये – प्रत्याहार
मन और आत्माको मिलाने के लिये – धारणा
आत्मा को पुर्णरूप से परमात्मा( लक्ष्य) मे लगाने के लिये – ध्यान
सत्चितानन्द (लक्ष्य ) की प्राप्ति – समाधि