Friday 25 September 2015

शरीर को संतुलित करता है “ उत्कटासन”

शरीर को संतुलित करता है “ उत्कटासन”

परिचय-

आज जिस आसन की बात करने जा रहा हुँ वह है “उत्कुटासन”  इस आसन को करने से शरीर का संतुलन सही हो जाता है शरीर जब असंतुलित हो जाता है तब बैठे बैठे ही लुढक जाते है तो यह आसन करने से शरीर का संतुलन बन जाता है

विधि—

चित्र अनुसार मुद्रा मे पैर के पंजो के बल बैठकर , सीना सामने निकला हुआ , हाथ पंजे के समीप भुमि छुते हुये, हाथ सीधे या नमस्कार की मुद्रा मे रखे , श्वास की गति सामान्य रखे


चित्र देखे –




लाभ –

 इस आसन को करने से पिंडली मजबूत बनती है , शरीर संतुलित होता है 

Saturday 19 September 2015

“साईटिका” रोग को ठीक करता है - शशकासन

“साईटिका”  रोग को ठीक करता है -  शशकासन


आज हम एक आसन की बात करेंगे जिसे  शशकासन कहते है , यह आसन खरगोस के बैठने के समान दिखाई देता है और संस्कृत मे खरगोस को शशक कहते है अतः शशक समान स्थिती मे बैठने को शशकासन कहते है यह आसन पेट सम्बंधितकई रोगो मे कारगर है लेकिन सायटिका रोग मे इस आसन को करने से सायटिका रोग मे आराम मिलता है


 हमारे दोनो पैरो मे एक नस होती है जिसे साईटिका कहते है और आयुर्वेद मे इसी नस को गृधर्सी  कहते है इस नस मे कई बार बहुत ही तेज दर्द होने लगता है यह पुरी नस कुल्हे से लेकर एडी तक बहुत दर्द करती है  इस रोग को साईटिका रोग कहते है इस रोग को ठीक करने मे शशकासन  बहुत ही कारगर है


विधि – 

वज्रासन( दोनो पैरौ को मोड कर कुल्हे के नीचे दबा कर बैठे)  मे बैठकर , श्वास को छोडते हुये कमर से उपर के भाग आगे ( कमर , रीढ , हाथ एक साथ) झुका कर मस्तक धरती से लगाये, दोनो हाथ जितना आगे ले जा सके, ले जाकर धरती से सटा दे ,


 चित्र देखे –




लाभ – 

इस आसन को करने से उदर के रोग ठीक होते है ,यह कुल्हो और गुदा स्थान के मध्य स्थित मांसपेशियो को सामान्य रखताहै , साईटिका के स्नायुओ को शिथिल करता है और एड्रिनल ग्रंथी के कार्य को नियमित करता है, कब्ज को ठीक करता है ,

Friday 11 September 2015

यकृत वृदिध (Enlargement of liver) - कारण और उपचार

परिचय-

पित्त कारक पदार्थो के अत्यधिक सेवन करने से एवम एक्युट हिपेटाईसिस के बाद यकृत की वृदिध हो जाती है,इसे जिगर का बढना भी कहते है.

कारण - 

1.अत्यधिक मशालेदार पदार्थो का सेवन

2.शराब का अधिक मात्रा मे सेवन

3.शरीर मे गर्मी का अधिक मात्रा मे होना

4.अधिक मात्रा मे आराम तलबी का जीवन बिताने पर शरीर मे पित्त की मात्रा बढ जाती है

5. विषैली औषधियो जैसे- संखिया,नाग,स्वर्ण,फास्फोरस,आदि का  अधिक तथा दीर्घकाल तक सेवन करते रहने से.

6.सभी प्रकार के संक्रमण बुखार मे लिवर बढ जाता है

7.लिवर मे एब्सेस होने से

8. पित्त की थैली मे पथरी होने से

9. मधुमेह,संधिवात,उपदंश आदि जीर्ण रोगो मे

10. पित्तप्रणाली का अवरोध होने के कारण यकृत की वृदिध हो जाती है

लक्षण-

1.पेट मे दाहिनी तरफ भारीपन लगना

2.रूक रूक कर तीर जैसा चुभने वाला दर्द

3.रोगी की भूख मारी जाती है

4.अजीर्ण तथा बदहजमी का लक्षण रहता है

5.जिव्हा मे लेप सा चढा रहता है

6.मुँह का स्वाद कडुआ सा रहता है

7.कभी कब्ज रहता है कभी दस्त लगते है

8.रोगी को कभी कभी बुखार रहता है

9.रोगी की आंखे पीली रहती है

10.यदि यकृत उपरकी ओर बढता है तो कंधे की हड्डी मे पीडा होती है तथा नीचे की ओर बढता हैतो पेट मे दर्द होता है

उपचार-

1.रोग के मूल कारण को दुर करना ही इसकी उचित चिकित्सा है

2.आहार -विहार तथा स्वास्थ्यके नियमो का कडाई से पालन करना चाहिये

3.रोगी को कब्ज से बचाने के लिये उचित मृदु  विरेचन देना चाहिये

4.रोगी को दीपन पाचन औषधि देनी चाहिये

5.रोगी को कच्चे पपीते का साग तथा पका पपीता खाने को देना चाहिये

6.रोगी को विश्राम देना चाहिये

7.लिवर पर गरम सेंक करना चाहिये

8.यदि रोगी को बुखार हो तो साबूदाना तथा आरारोट का सेवन कराना चाहिये

सावधानी - 

रोगी का समय पर सही उपचार करा लेना चाहिये तथा किसी चिकित्सक के परामर्श से इलाज लेना  चाहिये, वरना

यह रोग घातक परिणामो की ओर लेजाता है इस रोग का सही इलाज ना होने पर कामला , सिरोसिस ओफ

लिवर आदि रोग हो सकते है

Tuesday 8 September 2015

गैस के लिये घरेलू उपचार

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गैस के  लिये घरेलू उपचार

1. एक चम्मच नीम्बू का रस , एक चम्मच  पिसी हुई अजवायन ,आधा कप पानी मे मिलाकरसुबह शाम पीये,

2. एक गिलास पानी मे एक नीम्बू  निचोड कर चौथाई चम्मच मीठा सोडा मिलाकर नित्य पीये

3. आधा गिलास गरम जल मे आधा नीम्बू निचोड कर जरा सी पिसी हुई काली मिर्च की फांकी लेकर पानी पी ले

4. सोंठ एक चम्मच, साबुत अजवायन 50ग्राम , नीम्बू के रस मे भिगोकर छाया मे सुखा कर रखे , जब  भी

 खाना खाये ,इसकी एक चम्मच चबाये


5 पेट मे गैस के साथ यदि कब्ज भी हो तो – छोटी हरड को तवे पर सेंक कर पीस ले, तथा इस पाउडर को सुबह 

भुखे पेट गरम पानी से नियमित ले




Saturday 5 September 2015

कष्टार्तव...”(Dysmenorrhea).. एक कष्ट कारक रोग ...



यह रोग प्रायः थोडा या ज्यादा सभी लडकियो, महिलाओ मे आज कल मिल जाता है ,आज कल का खान पान , रहन-सहन कुछ ऐसा हो गया है जिसके कारण यह रोग अक्सर सब फिमेल्स मे मिल जाता है , कुछ महिलाये इस रोग को लापरवाही के कारण भी इलाज नही करवाती है, कुछ शर्म के कारण भी , मेरी प्रेक्टिस मे मैं ने ऐसी बहुत रोगिणी देखी है जो इस रोग से टीन एज से ही परेसान थी लेकिन उनका इलाज लगभग या तो शादी के कुछ दिन पहले या फिर शादी के बाद ही करवाया गया  है, यह लेख मै उन्ही पढी लिखी बहिन बेटियो के लिये ही लिख रहा हुँ, जो इस रोग की गम्भीरता को नही जानती और समय रहते लापरवाही से इलाज मे कोताही बरतती  है , इस लेख को पढ कर वे इस रोग के बारे मे जानकारी प्राप्त कर रोग से सावधानी पुर्वक बच सकती है तथा कुछ घरेलू  इलाज खुद भी कर सकती है ... , इस लेख को पढे , तथा अपने परिचित लोगो को भी पढाये,
 
परिचय –

इस रोग मे ऋतु ( पिरियड) के समय जोर का दर्द होता है , रक्त कभी कम भी आता हो , चाहे अधिक आता हो , लेकिन रोगिणी दर्द के मारे बैचेन हो जाती है , दर्द इतना भयानक होता है कि कभी – कभी तो रोगिणी बैहोश हो जाती है , दर्द पेट के नीचे के भाग मे होता है , इस रोग को आयुर्वेद मतानुसार योनी गत वायु रोग माना गया है , जिसमे रक्त दुषित हो जाता है तथा वायु को भी दुषित कर देता है, फिर वायु शूल(pain) को जन्म देती है,

रोग के कारण –

1. गर्भाशय(uterus) का विकृत विकास
2.गर्भाशय की रचना मे विकार
3. गर्भाशय का अपनेस्थान से हट जाना
4. गर्भाशय की पेशियो की हीनता
5. रजः स्राव का अप्राकृत होना – इसमे खून के थक्के आते है जिससे पीडा होती है

उपरोक्त सभी  कारण खतरनाक हो सकते है यदि दर्द युक्त पीरियड आता है , तो तत्काल किसी योग्य चिकित्सक से जांच करवा कर इलाज लेना  चाहिये, और यह पता तो अवश्य ही कर लेना चाहिये कि किसी प्रकार की फिजीकल प्रोबलेम तो नही है यदि है तो समय रहते उपचार करवा लेना चाहिये, वरना यह रोग बांझ पन का भी कारण हो सकता है , शादीशुदा जिंदगी को भी बर्बाद कर सकता है ,

कुछ और भी सामान्य कारण है जिनका उपचार सामान्य रूप से किया जा सकता है

अन्य कारण—

1. भय, क्रोध , शोक, मानसिक आवेग ,
2. मिथ्या आहार- विहार, मिथ्या व्यायाम
3. उग्र संगम इच्छा, कृत्रिम या अप्राकृत मैथून , मासिक धर्म के एकदम पहले या बाद पुरूष सहवास
4. कमजोर शरीर , दुबला पन
5. ठंडक आदि के लगने से भी यह रोग हो सकता है
6. इस रोग के बारे मे ज्यादा सोच विचार करने से भी यह रोग हो सकता है

उपरोक्त कारणो से बचा जा सकता है, सामान्य प्रयास करके इस रोग से निजात पाई जा सकती है

  रोग के भेद –

1. रक्ताधिक्यजन्य- खून की अधिकता के कारण (Congesstive) –

यह रोग प्रायः 30 वर्ष की आयु मे होता है, पेट के निचले भाग मे भारीपन होता है , चिड- चिडापन अवसाद , और मानसिक लक्षण भी होते है

2.आकुंचन जन्य(Spasmodic)-आक्षेप के कारण –

यह दर्द लेटने पर कम हो जाता है इस प्रकार के विकार मे दर्दमे पहले दिन से ही होने लगता है , इस विकार से पीडित लडकिया प्रायः कुमारी या निसंतान होतीहै , यह विकार 19 से 21 वर्ष की आयु मे अक्सर होता है, रोगिणी को मिचली या उल्टी होती है

3. झिल्ली दार बाधक (Membranous)—

इस प्रकार के विकार मे झिल्लीदार मासिकधर्म आता है,यह विकार विशेष रूप से अविवाहित महिलाओ मे होता है, यदि विवाहित मे होता है तो वह शिघ्र ही बांझ पन का रूप धारण कर लेता है 

4.स्नायविक (Nervous) नाडीजन्य –

इस विकार मे तीन दिन तक बहुत तेज दर्द होता है , रोगिणी को मिरगी के समान मुर्छा हो जाती है , यह दर्द पेट से शुरूहोकरपीठ और जांघो तक होता है, रोगिणी को सम्भोग के समय भी तीव्र पीडा की अनुभूती होती है

  सामान्य उपचार ---

1. इसरोग मे जहाँ तक हो सके ओपरेशन नही करवाना चाहिये,
2. रोगिणी को पौष्टिक आहार लेना चाहिये
3. रोगिणी को स्वच्छ ,खुली हवा, एवम प्रकाश  मे व्यायाम तथा परिश्रम करना चाहिये
4. अंकुरित धान्य – गेँहू आदि का पर्याप्त मात्रा मे प्रयोग करना चाहिये
5. गर्म पानी से स्नान, शीघ्र पचने वाला आहार लेना चाहिये

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