Thursday 29 December 2016

योग कैसे करे ? समाधान Yoga kaise kare ? Samadhan पार्ट 2. "नियम"

योग के आठ अंग है उनकी बारी बारी से चर्चा करेंगे।हमने गत पोस्ट में 'यम" के बारे में बात की थी। आज हम नियम की चर्चा करेंगे । नियम के बारे में बात करने से पहले यह पुनः जान लेना चाहिए की योग के आठ अंगो में पहला यम है दूसरा नियम है।आगे  आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान , और समाधि इस प्रकार आठ अंग है । इन आठ अंगों का विवेचन करने के बाद हम योग के लाभ के बारे में भी बात करेंगे। लेकिन सबसे पहले योग के पूरे अंगों का पूरा ज्ञान प्राप्त करने के बाद ही कोई और चर्चा करना ठीक रहेगा। 
आज हम 'नियम" के बारे में जान लेते है । सामान्य भाषा में नियम एक प्रकार की व्यवस्था होती है किसी भी संस्था को चलाने के लिए बनाया गया संविधान ही नियम कहलाता है। किसी भी कार्य योजना को सफल करने के लिए बनाये गए संविधान ही एक प्रकार के नियम होते है हम भी एक बहुत ही बड़ी योजना पर काम कर रहे है अपने आपको परमसत्ता से जोड़ने का काम करने की तैयारी कर रहे है इसलिए नियमो में बांधना बहुत ही जरूरी होता है । जब हम किसी नियम में बंधन की बात करते है तो डर  लगता है।
कोई भी बंधन हो वह डरावना ही होता है । हम जब योग की बात करते है तो योग बंधन से मुक्त करता है। योग तो कुशल बनाता है "योगः कर्मशु कौशलं' कर्म में कुशलता ही योग है।
इन नियमो को हम कुछ बदल देते है। थोड़ी देर थोड़ा अपने लिए ही सोचते है। मेरा तो ध्येय वाक्य भी कुछ ऐसा ही "जान है तो जहान है" और चरक संहिता में भी यह ही लिखा है "सर्वं परित्यज्य शरीरं पालयेत" सब कुछ त्याग कर शरीर का ही पालन करना चाहिए।इस लिए ये नियम भी कुछ अपने खुद के लिए ही समझे और इन्हें जीवन में उतारे ।
नियम पांच होते है
1 शौच
2 संतोष
3 तप
4 स्वाध्याय
5 ईस्वर प्रणिधान
ये पांच नियम है अब इन्हें कुछ इस प्रकार से समझना चाहिए । इनका हम क्रमवार वर्णन करते है ।
                        1 शौच
शौच का मतलब शुचिता से है यानि साफ़ सफाई से । और शौच का मतलब मल का त्याग करना भी होता है ।ये मल शरीर से भी बनते है और मन में भी मल होता है । अतः शरीर और मन की सफाई करने का मतलब ही शौच है ।
क्या करे क़ि हम साफ सुथरे रहे  ??
हमें  रोजाना ही मल का त्याग करना चाहिए । एक दिन भी यदि मल का त्याग न करे तो कई प्रकार के रोगों से आक्रान्त हो सकते है । मल , मूत्र के विसर्जन के साथ साथ मन के विकारों को भी रोजाना थोड़ा थोड़ा साफ़ करते रहना चाहिए । कहते है हम यदि मन में किसी के प्रति कोई बात दबा कर रखते है या मन में कोई गाँठ रखते है तो कब्ज होने की प्रबलतम संभावना रहती है । मन में किसी के प्रति दुर्भावना रखना भी मल को न त्यागने के बराबर है । योग करने से पूर्व मन के विकार और शरीर से निकलने वाले विकारो को त्याग देना चाहिए यह एक दिन में नही होगा इसके लिए नियमित अभ्यास जरूरी होता है।
मन में वैर भाव, ईर्ष्या , द्वेष,छल ,प्रपंच, रखना बहुत ही गलत है  योग करते समय ऐसा  नही होना चाहिए ।
काम क्रोध लोभ मोह अहंकार ये भी विकार है लेकिन इनको तो त्याग करने में पसीनेछूट जाते है और इन्हें छोड़ना भी नही चाहिए । आपको मालूम है जीवन में उत्तम बनाने के लिए चार पुरूषार्थ बताये गए है ।।धर्म अर्थ काम और मोक्ष । अब इनमे काम और अर्थ ये दोनों काम और लोभ के बिना कैसे प्राप्त कर सकते है। अब समस्या ये आती हैक़ि क्या करे ?
समाधान यह है। कि इनको एक नए रास्ते पर ले जाना चाहिए जैसे काम को प्रेम में बदल दे । क्रोध को क्षमा में बदल दे। अहंकार को सेवा में बदल दे। लोभ को दान में बदल दे । बस इसी प्रकार अभ्यास करते करते हम एक दम से बदलते जायेंगे । लेकिन यह सब स्थाई नही रहेगा । जैसे मल मूत्र का रोजाना त्याग करना पड़ता है फिर स्नान मंजन आदि क्रियाओ से शरीर को स्वच्छ रखते है उसी प्रकार मन के मलो को भी त्याग करने बाद साफ़ सुथरा रखने का अभ्यास किया जा सकता है । मै लगातार अभ्यास कर रहा हूँ आप भी करे । बहूत अच्छा महसुश होने लगेगा । अपने आप ही पवित्रता आने लगेगी । मन साफ होने लगेगा । यही अनुभव शौच है ।
                          2.संतोष
हम बार बार सुनते है "संतोषी सदा सुखी" संतोष करने वाला सदा सुखी रहता है। और हमे जीवन में क्या चाहिए । हम सब सुख के लिए ही तो भटक रहे है ।
लेकिन इसके विपरीत हमे यह भी सुनने को मिल जाता है कि "विद्यार्थियों को संतोशी नही होना चाहिए ।" कमाने वाला यदि संतोशी हो गया तो फिर हो गई कमाई । फिर कुछ लोग यह भी कहते है "संतोष का फल मीठा होता है "।
बहुत ही उलझन है । यदि समझ गए तो उलझन समाप्त , नही समझे तो उलझन ही उलझन है । चलो हम आज समझ लेते है कि संतोष क्या है और योग में इसका क्या महत्व है । योग करने से पहले इस नियम का पालन करना क्यों जरूरी है । संतोष का मतलब है हम जो है उसको जीना सीख ले । किसी की नक़ल करना या किसी और के जैसा बनने की चाह असन्तोष है और अपने जैसा बने रहना ही संतोष है ।
प्रकृति ने सभी को एक अलग रूप, स्वभाव, क्षमता प्रदान की है । हमे भी सबसे अलग बनाया है । फिर क्यों दूसरे जैसे बने । अपने आपकी क्षमता योग्यता को पहचान लेना और रोजाना इसको बढ़ाते रहना ही संतोष है ।
कहा गया है विद्यार्थी को और व्यापारी को सन्तोषी नही होना चाहिए । सही कहा है मै तो कहता हूं किसी को भी सन्तोषी नही होना चाहिए । लेकिन कब तक ? जब तक अपने आपको खुद न जान ले। जिस दिन खुद को सच में जान लेंगे उस दिन जीवन में संतोष ही संतोष होगा ।
अब जाने कैसे ? इसके लिए आगे का नियम है ।
                            3. तप
अपने आप को जानने और सक्षम बनाने का नाम ही तप है । लोग तप का नाम सुनते ही भड़क जाते है । ये तप और तपस्या नही करनी हमें ,और इसीलिए लोग योग नही करते है ।
तप से डरने की जरूरत नही है । तप के माध्यम से हम अपने आपको तैयार करते है। ये भी धीरे धीरे ही संभव हो सकेगा । जैसे यह विशेष योग्यता प्राप्त करने की पढ़ाई है । पढ़ाई करना खेल खेलना और किसी भी काम को करने में सक्षम बनाना ही तप है ।
भगवान् से जुड़ने के लिए यह एक बहुत कठिन दिखने वाला सरल नियम है । नियमित अभ्यास से मुर्ख भी विद्वान बन जाता है ।
                          4. स्वाध्याय
अपने आपको पढ़ना, अपना खुद का मूल्यांकन करना,ही स्वाध्याय है । नियमित रूप से अपने बुजुर्गो , अपने आदर्श रूप परमात्मा को अपने अंदर देखना ही स्वध्याय है ।
रोजाना कुछ समय अपने खुद के लिए निकाल कर खुद की कमियां खुद अधिकता यानि गुण और अवगुणों को जानने की कोशिश करनी चाहिए ।
मनुष्य जितना खुद अपने बारे में जानता है उतना दूसरा नही जान सकता । दुसरो द्वारा की गई प्रशंसा का सही मूल्यांकन करके अपना खुद का जीवन बिताना ही सच में स्वध्याय है।
यह नियम भी जीवन को बहुत ही आगे ले जाताहै अपने आपको जीवन में यदि आगे ले जाना है तो अपना अध्ययन अवश्य ही करे ।
                       5 ईश्वर प्रणिधान
जब खुद का ज्ञान हो जाता है तो यह आभास होने लगता है कि मेरे अंदर कोई है जो मुझे गति दे रहा है । बस उसको अपने अंदर बैठाये रखना या उसे सँजोये रखना ही ईश्वर प्रर्निधान है ।
एक ईश्वर अपने अंदर स्थापित करके उस को हमेशा जीवित रखना ही ये पांचवा नियम कहलाता है ।
इन पांचों नियमो का अभ्यास करे और अपने आपको इस परमसत्ता से मिलन के महा प्रयोजन में लगाये रखे । जब हम उस सत्ता से मिलने के काबिल हो जाएंगे तो जरूर मिलन होगा ।
अब नियम के बाद अगला योग है "आसन" । अगली पोस्ट में आसन की पूरी जानकारी , आसन के लाभ ,हानि , क्यों करे आसन , किसे नही करना चाहिए आसन आदि सभी जानकारी आप लोगो को मिलेगी पढ़ते रहे "निरोगी काया"और मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए मुझे ईमेल करे ।
                    
                       

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