Friday 31 March 2017

भोजन कैसे करे ?? How to take food ?

हमे जीवित रहने के लिए जितनी हवा और पानी की आवश्यकता है उतनी ही आवश्यकता आहार की भी है। आहार मतलब भोजन । भोजन ही है जो हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है । जिस प्रकार कोई वाहन बिना इंधन के नही चल सकता उसी प्रकार यह प्राणियों का शरीर भी बिना आहार के नही चल सकता है ।
पशुओं , पक्षियों, जानवर सभी प्रकार के जीवो को भोजन की जरुरत होती है । ये दिनभर भोजन के लिए ही मेहनत करते है । इनका काम किसी भी प्रकार से अपना पेट भरना होता है । ये सभी प्राणी बहुत ही सावधानी पूर्वक अपना आहार खोजते है और जो उचित होता है वही ग्रहण करते है । किसी किसी पशु या पक्षी को आपने भी देखा होगा क़ि कई बार वे घास या किसी अभक्ष्य आहार को सूंघ कर छोड़ देते है । मतलब यह है कि पशु पक्षी भी भोजन की पूरी प्रक्रिया को फॉलो करते है । उन्हें प्रकृति ने सिखाया है कि कोनसा आहार सही है और कौनसा आहार उनके लिए गलत है ।पशुओं के लिए कहावत भी है कि "ऊंट छोड़े आक और बकरी छोड़े ढाक"
मगर एक इंसान यानी मनुष्य ही है जो इस आहार विधि को अपनाता नही है । जो मिला जिस भी स्थिति में मिला चर लिया । कई बार तो जो खाने लायक नही था शास्त्रो में निषिध्द है उसे भी खा लेते है । दिन भर में दश  चाय बीस गुटका तीस प्रकार की चाट पकोड़ी और पचास प्रकार की शराब कोल्ड ड्रिंक पता नही क्या क्या ?
यह पेट मनुष्य को सबसे बड़ा कचरे का डिब्बा दिखाई देने लगा है ।जहा मिला खा लिया जैसा मिल गया खा लिया । सुबह का बनाया हुआ शाम को फिर से गर्म करके खा लिया । रात को बनाया उसे सुबह खा लिया । कोई भी नियम खाने के लिए नही बना रखे है । बस अपनी मर्जी से सब चल रहा है । इसीलिए आजकल तरह तरह के रोगों ने मनुष्य को घेर रखा है ।
आयुर्वेद के मनीषियों ने हजारों वर्ष पहले ही ऐसे ऐसे नियम बना दिए थे जो आज भी बहुत ही और एकदम सही भी है । यदि इन नियमो का पालन किया जाये तो कई प्रकार के रोगों से तो ऐसे ही मुक्ति मिल सकती है । हम आज इस लेख में यह चर्चा करेंगे क़ि :- भोजन कैसे करे ? How to take meal ?
आहार सम्बन्धी विचार ( Thoughts about Diet ):- 
1. मात्रा निर्धारण :-  सबसे पहले भोजन की मात्रा का निर्धारण करना चाहिए ।  हमें यह जानकारी कैसे हो ? इसके लिए कहा गया है कि आहार की मात्रा "बलापेक्षिणी" अर्थात बल के अनुसार मात्रा का निर्धारण किया जाता है । प्रकृति ने हमें अपने खुद की भूख की क्षमता का ज्ञान करने योग्यता दी है । हमे पता चलता है कि हमे कितनी भूख है मेरी जठराग्नि कितना भोजन पचाने में समर्थ है । इस क्षमता ( Digestive capacity )का  आभास लगभग सभी को होता है । अतः सबसे पहले मात्रा का निर्धारण करना चाहिए । और फिर मात्रानुसार भोजन करे ।
2. गुरू और लघु आहार का निर्धारण :- मात्रा के बाद लिखा हैं कि मात्रा निर्धारण करते समय अग्निबल Digestive capacity के साथ साथ  आहार द्रव्यो का भी ध्यान रखना चाहिए क्योंकि आयुर्वेद के मनीषियों ने लिखा है :-  'गुरूणाम आर्धसोहित्यम लघुनां तृप्तिरिष्यते' अर्थात गुरू (तेल , घी में पके हुए पदार्थ अथवा वे पदार्थ जो जल्दी नही पचते ) पदार्थो के भोजन से आधी तृप्ति का होना ही पूर्ण भोजन समझे और लघु (जल्दी पचने वाले ) पदार्थो को तृप्ति से अधिक सेवन ना करे ।
3. आहार विधि :- आहार को कैसे ग्रहण करे ? कौनसा भोजन रोजाना कर सकते है और कौनसा भोजन सप्ताह में एक बार करे । किस प्रकार व्यवस्था हो ,इसके लिए चरक संहिता में आठ प्रकार की विधि बताई गई है :-
1.प्रकृति(Natural form)
2.करण(Preparation)
3.संयोग(Combination)
4.राशी(Quantity)
5.देश(Haleitat)
6.काल (Time)
7.उपयोग संस्था(Direction of use)
8.उपयोक्ता (User)
यह बहुत ही विस्तृत विषय है इस पर हम चर्चा करते रहेंगे । इस अष्ट विधि का संक्षेप में वर्णन इस प्रकार है ।
अपनी प्रकृति के अनुसार तथा आहार की प्रकृति को देख कर भोजन करना चाहिए । जैसे वात प्रकृति के लोगो को वायुकारक पदार्थो को नही खाना चाहिए । पित्त वालो को गर्म अर्थात पित्त कारक आहार से दूर रहना चाहिए ।
करन मतलब भोजन बनने की प्रक्रिया , भोजन को बहुत शांत और सात्विक मन से बना कर ही खाये । यदि यह संभव ना हो तो जल हाथ में लेकर मन में अपने इष्ट देव को याद करके भोजन को सात्विक मन से खाना चाहिये।
संयोग का भी ध्यान रखे , विपरीत प्रकृति के आहार को साथ में नही खाना चाहिए जैसे :- दही और खीर , दूध और लहशन, आचार के साथ दूध , यह सब कभी भी नहीं खाने चाहिए ।
मात्रा से अधिक भोजन अजीर्ण को उत्पन्न करता है , मात्रा से कम कृशताकारक होता है ।
पचने पर ही भोजन करना चाहिए अन्यथा उसका भी समुचित पाचन नही हो पाता है ।
इच्छित यानि इष्ट स्थान पर ही भोजन करे , प्राचीन परंपरा के अनुसार रसोई घर ही इष्ट जगह मानी जाती है अतः जहाँ तक हो सके तो अपने घर पर ही भोजन करना चाहिए ।
जल्दी जल्दी भोजन नही करना चाहिए , तथा ना ही धीरे धीरे भोजन करना चाहिए क्योकि ये दोनों प्रकार एक प्रकार की आदत को इंगित करते है ।आराम से बैठ कर सरल तरीके से आनंद के साथ भोजन करने से लाभ मिलता है
भोजन करते समय में यह ध्यान रखना चाहिए क़ि कम से कम बात करे । धर्म शास्त्रों में भोजन करते समय मौन रहने का बड़ा ही महत्त्व बताया गया है ।
और अंत में पुनः एक बार यह यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि जितनी पाचन शक्ति है और जितना हम आराम से पचा सकते है उतना ही भोजन करना चाहिए
। माधव जी ने लिखा है :-
अनात्मवन्तः पशुवद भुंजन्ते ये नराधमाः ।
रोगानिकस्य ते मूलजीर्णे प्राप्नुवन्ति हि ।। माधव निदान

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