Thursday 23 April 2015

हर्निया रोग से बचाता है - वज्रासन

 खाना खाने के बाद या भुखे पेट जैसे भी सुविधा हो वज्रासन किया जा सकता है यही एक ऐसा आसन है जो खाना खाने के बाद भी किया जा सकता है इस आसन के करने से अनेक रोगो मे फायदा होते हुये देखा गया है ,इस आसन को नियमित करने से हर्निया जैसे भयंकर रोग से बचा जा सकता है

विधि- यह आसन बडा ही सरल तरीके से किया जाता है इस आसन को कही भी कभी भी किया जा सकता है, मुख्य रूप से इस आसन को खाना खाने के तत्काल बाद पांच सात मिनट करने से बहुत ही लाभ होता है,
वज्रासन को करने की सरल विधि इस प्रकारहै-- समतल जमीन पर हस्तपादासन की स्थिति मे सीधे जुडे हुये पैरो को घुटनो से मोडे, दोनो पंजे पिछे की ओर ले जाकर उनपर आराम से कुल्हे टिका कर बैठ जाये, दोनो हाथ दोनो घुटनो पर,कमर से मेरूदंड तक शरीर सीधा, श्वास सामान्य रखे इस प्रकार पांच से पंद्रह मिनट तक बैठे रहे, यह व्यायाम से पुर्व की विश्राम अवस्था भी है ( फोटो देखे)

लाभ-- भोजन पचाने मे सहायक,वायुदोष, कब्ज, पेट का भारीपन दूर करता है,यह आमाशय गर्भाशय की मांस पेशीयो को शक्ति प्रदान करता है,अतः हर्निया से बचाव करता है, गर्भाशय,आमाशय आदि मे रक्त व स्नायविक प्रभाव को बदल देता है

फोटो देखे और सावधानी से करे-

Saturday 4 April 2015

छांछ (तक्र) के गुण एवम उपयोग(Chaas)

हमारे जीवन मे छांछ का बडा ही महत्व है गरीब आदमी के लिये छांछ एक आहार है जब तक किसी मेहनत कश व्यक्ति को छांछ ना मिले तो उसका भोजन पुर्ण नही होगा, उसे पुरी तृप्ति नही आयेगी, छांछ को धरती का अमृत कहा गया है, आयुर्वेद के ग्रंथो मे तीन दोषो का जिक्र आता है इन्ही तीनो दोषो के कारण ही इंसान स्वस्थ और रुग्ण होता है यह तक्र तीनो दोषो का शमन  करती है,अतः यह निर्बाद रूप से कहा जा सकता है कि छांछ  कभी भी किसी को भी नुकशान पहुचाने वाली नही है,
यह स्वादु,सुपाच्य,बल,औज,एवम स्फूर्ति को बढाने वाला अमृत तुल्य पेय है,उदर रोग या विकारो से पिडित व्यक्ति के लिये तो यह राम बाण के समान अमोघ औषधि है तक्र का सेवन करने वाला कभी पीडित नही होता अर्थात रोगी नही होता है,तक्र से ठीक होने के बाद वह रोग दुबारा नही होता,जिस प्रकार देवताओ के लिये अमृत प्रधान है उसी प्रकार मनुष्यो के लिये छांछ प्रधान  है
तक्र को आयुर्वेद विशारदो ने चार प्रकार का बताया है, जिस दही मे आधा जल देकर मथा जाये उसे "उद्श्वित" कहते है,साढी(मलाई) निकाल कर जो दही बिना जल मिला कर मथा जाये उसे "मथित" कहते है,साढी(मलाई) सहित जिस जल को मथा जाये उसे "घोल" कहते है,जिस दही मे चतुर्थांस जल देकर मथा जाये उसे"तक्र" कहते है
यह चारो अपने अपने गुणो के अनुसार शरीर मे स्थित दोषो पर अपना प्रभाव छोडती है जैसे-घोल वात-पित का नाशक है,मथित कफ-पित नाशक है,तक्र त्रिदोष नाशक हैऔर उद्श्वित कफ दायक कहा गया है,
छांछ को अनेक रोगो मे प्रयोग करने लिये आयुर्वेद शास्त्रो मे लिखा गया है-- वात रोगो मे अम्ल रसयुक्त तक्र सैंधा नमक मिलाकर सेवन करना हित कर है, पित रोगो मे मधुर रस युक्त एवम चीनी मिलाकर सेवन करना हितकर है, कफ रोगो मे रूक्ष एवम सौंठ-पिपर-मरिच और क्षार युक्त तक्र हितकर होती है ,मुत्रकृच्छ रोग मे गुड के साथ पाण्डु रोग मे इसका सेवन चित्रक केसाथ हितकर होता है, इसी तरह अर्श,अतिसार,संग्रहणी,अग्निमांध्य रोगो मे भी छांछ हींग,नमक,जीरा आदि मिलाकर सेवन करने से बहुत ही हितकारी होती  है
तक्र के लिये ये आठ बाते  सर्वदा स्मरणिय है -- तक्र क्षुधा वर्धक, नेत्र रोग नाशक,बलकारक,रक्त और मांस वर्धक,आम दोष को दुर करने वाला,तथा कफ और वात का नाशक है