Saturday 5 September 2015

कष्टार्तव...”(Dysmenorrhea).. एक कष्ट कारक रोग ...



यह रोग प्रायः थोडा या ज्यादा सभी लडकियो, महिलाओ मे आज कल मिल जाता है ,आज कल का खान पान , रहन-सहन कुछ ऐसा हो गया है जिसके कारण यह रोग अक्सर सब फिमेल्स मे मिल जाता है , कुछ महिलाये इस रोग को लापरवाही के कारण भी इलाज नही करवाती है, कुछ शर्म के कारण भी , मेरी प्रेक्टिस मे मैं ने ऐसी बहुत रोगिणी देखी है जो इस रोग से टीन एज से ही परेसान थी लेकिन उनका इलाज लगभग या तो शादी के कुछ दिन पहले या फिर शादी के बाद ही करवाया गया  है, यह लेख मै उन्ही पढी लिखी बहिन बेटियो के लिये ही लिख रहा हुँ, जो इस रोग की गम्भीरता को नही जानती और समय रहते लापरवाही से इलाज मे कोताही बरतती  है , इस लेख को पढ कर वे इस रोग के बारे मे जानकारी प्राप्त कर रोग से सावधानी पुर्वक बच सकती है तथा कुछ घरेलू  इलाज खुद भी कर सकती है ... , इस लेख को पढे , तथा अपने परिचित लोगो को भी पढाये,
 
परिचय –

इस रोग मे ऋतु ( पिरियड) के समय जोर का दर्द होता है , रक्त कभी कम भी आता हो , चाहे अधिक आता हो , लेकिन रोगिणी दर्द के मारे बैचेन हो जाती है , दर्द इतना भयानक होता है कि कभी – कभी तो रोगिणी बैहोश हो जाती है , दर्द पेट के नीचे के भाग मे होता है , इस रोग को आयुर्वेद मतानुसार योनी गत वायु रोग माना गया है , जिसमे रक्त दुषित हो जाता है तथा वायु को भी दुषित कर देता है, फिर वायु शूल(pain) को जन्म देती है,

रोग के कारण –

1. गर्भाशय(uterus) का विकृत विकास
2.गर्भाशय की रचना मे विकार
3. गर्भाशय का अपनेस्थान से हट जाना
4. गर्भाशय की पेशियो की हीनता
5. रजः स्राव का अप्राकृत होना – इसमे खून के थक्के आते है जिससे पीडा होती है

उपरोक्त सभी  कारण खतरनाक हो सकते है यदि दर्द युक्त पीरियड आता है , तो तत्काल किसी योग्य चिकित्सक से जांच करवा कर इलाज लेना  चाहिये, और यह पता तो अवश्य ही कर लेना चाहिये कि किसी प्रकार की फिजीकल प्रोबलेम तो नही है यदि है तो समय रहते उपचार करवा लेना चाहिये, वरना यह रोग बांझ पन का भी कारण हो सकता है , शादीशुदा जिंदगी को भी बर्बाद कर सकता है ,

कुछ और भी सामान्य कारण है जिनका उपचार सामान्य रूप से किया जा सकता है

अन्य कारण—

1. भय, क्रोध , शोक, मानसिक आवेग ,
2. मिथ्या आहार- विहार, मिथ्या व्यायाम
3. उग्र संगम इच्छा, कृत्रिम या अप्राकृत मैथून , मासिक धर्म के एकदम पहले या बाद पुरूष सहवास
4. कमजोर शरीर , दुबला पन
5. ठंडक आदि के लगने से भी यह रोग हो सकता है
6. इस रोग के बारे मे ज्यादा सोच विचार करने से भी यह रोग हो सकता है

उपरोक्त कारणो से बचा जा सकता है, सामान्य प्रयास करके इस रोग से निजात पाई जा सकती है

  रोग के भेद –

1. रक्ताधिक्यजन्य- खून की अधिकता के कारण (Congesstive) –

यह रोग प्रायः 30 वर्ष की आयु मे होता है, पेट के निचले भाग मे भारीपन होता है , चिड- चिडापन अवसाद , और मानसिक लक्षण भी होते है

2.आकुंचन जन्य(Spasmodic)-आक्षेप के कारण –

यह दर्द लेटने पर कम हो जाता है इस प्रकार के विकार मे दर्दमे पहले दिन से ही होने लगता है , इस विकार से पीडित लडकिया प्रायः कुमारी या निसंतान होतीहै , यह विकार 19 से 21 वर्ष की आयु मे अक्सर होता है, रोगिणी को मिचली या उल्टी होती है

3. झिल्ली दार बाधक (Membranous)—

इस प्रकार के विकार मे झिल्लीदार मासिकधर्म आता है,यह विकार विशेष रूप से अविवाहित महिलाओ मे होता है, यदि विवाहित मे होता है तो वह शिघ्र ही बांझ पन का रूप धारण कर लेता है 

4.स्नायविक (Nervous) नाडीजन्य –

इस विकार मे तीन दिन तक बहुत तेज दर्द होता है , रोगिणी को मिरगी के समान मुर्छा हो जाती है , यह दर्द पेट से शुरूहोकरपीठ और जांघो तक होता है, रोगिणी को सम्भोग के समय भी तीव्र पीडा की अनुभूती होती है

  सामान्य उपचार ---

1. इसरोग मे जहाँ तक हो सके ओपरेशन नही करवाना चाहिये,
2. रोगिणी को पौष्टिक आहार लेना चाहिये
3. रोगिणी को स्वच्छ ,खुली हवा, एवम प्रकाश  मे व्यायाम तथा परिश्रम करना चाहिये
4. अंकुरित धान्य – गेँहू आदि का पर्याप्त मात्रा मे प्रयोग करना चाहिये
5. गर्म पानी से स्नान, शीघ्र पचने वाला आहार लेना चाहिये

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