Thursday 29 December 2016

योग कैसे करे ? समाधान Yoga kaise kare ? Samadhan पार्ट 2. "नियम"

योग के आठ अंग है उनकी बारी बारी से चर्चा करेंगे।हमने गत पोस्ट में 'यम" के बारे में बात की थी। आज हम नियम की चर्चा करेंगे । नियम के बारे में बात करने से पहले यह पुनः जान लेना चाहिए की योग के आठ अंगो में पहला यम है दूसरा नियम है।आगे  आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान , और समाधि इस प्रकार आठ अंग है । इन आठ अंगों का विवेचन करने के बाद हम योग के लाभ के बारे में भी बात करेंगे। लेकिन सबसे पहले योग के पूरे अंगों का पूरा ज्ञान प्राप्त करने के बाद ही कोई और चर्चा करना ठीक रहेगा। 
आज हम 'नियम" के बारे में जान लेते है । सामान्य भाषा में नियम एक प्रकार की व्यवस्था होती है किसी भी संस्था को चलाने के लिए बनाया गया संविधान ही नियम कहलाता है। किसी भी कार्य योजना को सफल करने के लिए बनाये गए संविधान ही एक प्रकार के नियम होते है हम भी एक बहुत ही बड़ी योजना पर काम कर रहे है अपने आपको परमसत्ता से जोड़ने का काम करने की तैयारी कर रहे है इसलिए नियमो में बांधना बहुत ही जरूरी होता है । जब हम किसी नियम में बंधन की बात करते है तो डर  लगता है।
कोई भी बंधन हो वह डरावना ही होता है । हम जब योग की बात करते है तो योग बंधन से मुक्त करता है। योग तो कुशल बनाता है "योगः कर्मशु कौशलं' कर्म में कुशलता ही योग है।
इन नियमो को हम कुछ बदल देते है। थोड़ी देर थोड़ा अपने लिए ही सोचते है। मेरा तो ध्येय वाक्य भी कुछ ऐसा ही "जान है तो जहान है" और चरक संहिता में भी यह ही लिखा है "सर्वं परित्यज्य शरीरं पालयेत" सब कुछ त्याग कर शरीर का ही पालन करना चाहिए।इस लिए ये नियम भी कुछ अपने खुद के लिए ही समझे और इन्हें जीवन में उतारे ।
नियम पांच होते है
1 शौच
2 संतोष
3 तप
4 स्वाध्याय
5 ईस्वर प्रणिधान
ये पांच नियम है अब इन्हें कुछ इस प्रकार से समझना चाहिए । इनका हम क्रमवार वर्णन करते है ।
                        1 शौच
शौच का मतलब शुचिता से है यानि साफ़ सफाई से । और शौच का मतलब मल का त्याग करना भी होता है ।ये मल शरीर से भी बनते है और मन में भी मल होता है । अतः शरीर और मन की सफाई करने का मतलब ही शौच है ।
क्या करे क़ि हम साफ सुथरे रहे  ??
हमें  रोजाना ही मल का त्याग करना चाहिए । एक दिन भी यदि मल का त्याग न करे तो कई प्रकार के रोगों से आक्रान्त हो सकते है । मल , मूत्र के विसर्जन के साथ साथ मन के विकारों को भी रोजाना थोड़ा थोड़ा साफ़ करते रहना चाहिए । कहते है हम यदि मन में किसी के प्रति कोई बात दबा कर रखते है या मन में कोई गाँठ रखते है तो कब्ज होने की प्रबलतम संभावना रहती है । मन में किसी के प्रति दुर्भावना रखना भी मल को न त्यागने के बराबर है । योग करने से पूर्व मन के विकार और शरीर से निकलने वाले विकारो को त्याग देना चाहिए यह एक दिन में नही होगा इसके लिए नियमित अभ्यास जरूरी होता है।
मन में वैर भाव, ईर्ष्या , द्वेष,छल ,प्रपंच, रखना बहुत ही गलत है  योग करते समय ऐसा  नही होना चाहिए ।
काम क्रोध लोभ मोह अहंकार ये भी विकार है लेकिन इनको तो त्याग करने में पसीनेछूट जाते है और इन्हें छोड़ना भी नही चाहिए । आपको मालूम है जीवन में उत्तम बनाने के लिए चार पुरूषार्थ बताये गए है ।।धर्म अर्थ काम और मोक्ष । अब इनमे काम और अर्थ ये दोनों काम और लोभ के बिना कैसे प्राप्त कर सकते है। अब समस्या ये आती हैक़ि क्या करे ?
समाधान यह है। कि इनको एक नए रास्ते पर ले जाना चाहिए जैसे काम को प्रेम में बदल दे । क्रोध को क्षमा में बदल दे। अहंकार को सेवा में बदल दे। लोभ को दान में बदल दे । बस इसी प्रकार अभ्यास करते करते हम एक दम से बदलते जायेंगे । लेकिन यह सब स्थाई नही रहेगा । जैसे मल मूत्र का रोजाना त्याग करना पड़ता है फिर स्नान मंजन आदि क्रियाओ से शरीर को स्वच्छ रखते है उसी प्रकार मन के मलो को भी त्याग करने बाद साफ़ सुथरा रखने का अभ्यास किया जा सकता है । मै लगातार अभ्यास कर रहा हूँ आप भी करे । बहूत अच्छा महसुश होने लगेगा । अपने आप ही पवित्रता आने लगेगी । मन साफ होने लगेगा । यही अनुभव शौच है ।
                          2.संतोष
हम बार बार सुनते है "संतोषी सदा सुखी" संतोष करने वाला सदा सुखी रहता है। और हमे जीवन में क्या चाहिए । हम सब सुख के लिए ही तो भटक रहे है ।
लेकिन इसके विपरीत हमे यह भी सुनने को मिल जाता है कि "विद्यार्थियों को संतोशी नही होना चाहिए ।" कमाने वाला यदि संतोशी हो गया तो फिर हो गई कमाई । फिर कुछ लोग यह भी कहते है "संतोष का फल मीठा होता है "।
बहुत ही उलझन है । यदि समझ गए तो उलझन समाप्त , नही समझे तो उलझन ही उलझन है । चलो हम आज समझ लेते है कि संतोष क्या है और योग में इसका क्या महत्व है । योग करने से पहले इस नियम का पालन करना क्यों जरूरी है । संतोष का मतलब है हम जो है उसको जीना सीख ले । किसी की नक़ल करना या किसी और के जैसा बनने की चाह असन्तोष है और अपने जैसा बने रहना ही संतोष है ।
प्रकृति ने सभी को एक अलग रूप, स्वभाव, क्षमता प्रदान की है । हमे भी सबसे अलग बनाया है । फिर क्यों दूसरे जैसे बने । अपने आपकी क्षमता योग्यता को पहचान लेना और रोजाना इसको बढ़ाते रहना ही संतोष है ।
कहा गया है विद्यार्थी को और व्यापारी को सन्तोषी नही होना चाहिए । सही कहा है मै तो कहता हूं किसी को भी सन्तोषी नही होना चाहिए । लेकिन कब तक ? जब तक अपने आपको खुद न जान ले। जिस दिन खुद को सच में जान लेंगे उस दिन जीवन में संतोष ही संतोष होगा ।
अब जाने कैसे ? इसके लिए आगे का नियम है ।
                            3. तप
अपने आप को जानने और सक्षम बनाने का नाम ही तप है । लोग तप का नाम सुनते ही भड़क जाते है । ये तप और तपस्या नही करनी हमें ,और इसीलिए लोग योग नही करते है ।
तप से डरने की जरूरत नही है । तप के माध्यम से हम अपने आपको तैयार करते है। ये भी धीरे धीरे ही संभव हो सकेगा । जैसे यह विशेष योग्यता प्राप्त करने की पढ़ाई है । पढ़ाई करना खेल खेलना और किसी भी काम को करने में सक्षम बनाना ही तप है ।
भगवान् से जुड़ने के लिए यह एक बहुत कठिन दिखने वाला सरल नियम है । नियमित अभ्यास से मुर्ख भी विद्वान बन जाता है ।
                          4. स्वाध्याय
अपने आपको पढ़ना, अपना खुद का मूल्यांकन करना,ही स्वाध्याय है । नियमित रूप से अपने बुजुर्गो , अपने आदर्श रूप परमात्मा को अपने अंदर देखना ही स्वध्याय है ।
रोजाना कुछ समय अपने खुद के लिए निकाल कर खुद की कमियां खुद अधिकता यानि गुण और अवगुणों को जानने की कोशिश करनी चाहिए ।
मनुष्य जितना खुद अपने बारे में जानता है उतना दूसरा नही जान सकता । दुसरो द्वारा की गई प्रशंसा का सही मूल्यांकन करके अपना खुद का जीवन बिताना ही सच में स्वध्याय है।
यह नियम भी जीवन को बहुत ही आगे ले जाताहै अपने आपको जीवन में यदि आगे ले जाना है तो अपना अध्ययन अवश्य ही करे ।
                       5 ईश्वर प्रणिधान
जब खुद का ज्ञान हो जाता है तो यह आभास होने लगता है कि मेरे अंदर कोई है जो मुझे गति दे रहा है । बस उसको अपने अंदर बैठाये रखना या उसे सँजोये रखना ही ईश्वर प्रर्निधान है ।
एक ईश्वर अपने अंदर स्थापित करके उस को हमेशा जीवित रखना ही ये पांचवा नियम कहलाता है ।
इन पांचों नियमो का अभ्यास करे और अपने आपको इस परमसत्ता से मिलन के महा प्रयोजन में लगाये रखे । जब हम उस सत्ता से मिलने के काबिल हो जाएंगे तो जरूर मिलन होगा ।
अब नियम के बाद अगला योग है "आसन" । अगली पोस्ट में आसन की पूरी जानकारी , आसन के लाभ ,हानि , क्यों करे आसन , किसे नही करना चाहिए आसन आदि सभी जानकारी आप लोगो को मिलेगी पढ़ते रहे "निरोगी काया"और मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए मुझे ईमेल करे ।
                    
                       

Saturday 26 November 2016

गाजर (carrut) - बडी गुणकारी है ।

गाजर को सब लोग जानते है । गाजर की केवल सब्जी और सलाद ही नही बनती बल्कि इससे कई प्रकार के व्यंजन भी बनाये जाते है जैसे- गाजर पाक । इसके साथ ही गाजर का उपयोग औषधि में भी लिया जाता है
गाजर में प्रोटीन , वसा, कार्बोहाइड्रेट , रेशे, खनिज तत्व, केल्सीयम, फास्फोरस, लोहा , इत्यादि पाये जाते है। इसमें विटामिन ए , बी,सी, तथा विटामिन बी समूह के थायमिन, रिबोफ्लेविन,तथा निकोटिनिक अम्ल पाये जाते है ।
आयुर्वेद ग्रंथो के अनुसार गाजर तीक्ष्ण,मधुर, कड़वी, गर्म, अग्नीसंदीपन करने वाली , हल्की ग्राही, और रक्तपित्त, बवासीर , संग्रहणी कफ तथा वात नाशक है।
रोगानुसार गाजर को इस प्रकार प्रयोग कर सकते है ।
1. ह्रदय रोग -
5-6 गाजर को अंगारो पर पकाएं या कच्ची  ही छीलकर  रात भर बाहर औंस में रख़ी रहने दें। प्रातः काल केवड़ा या गुलाब अर्क, और मिश्री मिला कर खाने से ह्रदय की धड़कन सामान्य हो जाती है।
गाजर को कद्दूकस करके दूध में उबालें । जब गाजर गल जाए , तो शक्कर मिला कर खाने से दिल को शक्ति मिलती है ।
2. पेट दर्द -
गाजर को भाप में उबाल कर उसमें 10 ग्राम रस निकालें , अब उस रस में 20 ग्राम शहद मिलाकर पीने से पेट दर्द ठीक हो जाता है ।
3. खांसी  -
गाजर स्वरस में मिश्री , काली मिर्च , मिलाकर चाटे।
4. रक्तार्श -
गाजर का रस दही की मलाई के साथ लेने से आराम मिलता है ।
5. मासिक धर्म  -
गाजर का काढ़ा बनाकर सुबह शाम कुछ दिन तक लगातार पीने से मासिक धर्म में होने वाला दर्द नही होता , और मासिक धर्म नियमित आने लगता है ।

Wednesday 23 November 2016

गुलकंद बनाने की विधि

परिचय -

गुलकंद गुलाब के फूलों से बनाया जाने वाला एक बहुत स्वादिस्ट और स्वास्थ्यवर्धक घरेलु आयुर्वेदिक  औषधि है । यह पित्त का शमन करने वाली दवा है ।

सामग्री -

गुलाब के फूलों की पंखुड़ी - 100 ग्राम
चीनी- 100 ग्राम
सौंप पाउडर -2 चम्मच
इलायची पाउडर -2 चम्मच
शहद- दो चम्मच

विधि

सबसे पहले गुलाब की पंखुड़ियों को साफ़ पानी से धो लें । फिर उसमें बराबर मात्रा में चीनी डालकर अच्छी तरह से मिला लें। सौंफ पाउडर और इलायची पाउडर मिला ले। अंत में शहद मिलाकर अच्छी तरह से फिर से मिला लें।
यह सब करने के बाद कड़ाई में डाल कर हल्की हल्की आंच पर गर्म करले और जब चीनी अच्छी तरह से  पानी छोड़ दे।और चासनी बन जाये तब तक गर्म करे । फिर साफ बर्तन में रख कर ठंडा करने के लिए रख दें।  ठंडा होने के बाद खाने के काम में लें।

Wednesday 12 October 2016

गुर्दे की पथरी – चमत्कार से बचे

गुर्दे की पथरी – चमत्कार से बचे

गुर्दे की पथरी के दर्द से परेशान रोगी जब भी मेरे पास आता है तो कमर झुकी हुई तथा दोनो हाथ कमर पर जकडे हुये ही आता है, इससे तुरन्त पता चल जाता है कि दर्द बहुत ही तीव्र हो रहा है, जब कभी हम जिससे ज्यादा परेशान होते है तब हमारा ध्यान पुर्णतया उसी विषय पर रहता है रोगी बार बार उसी विषय बात करना पसंद करता है उसी विषय पर बात करने से दर्द कम होता है तथा अन्य बात्त करने पर दर्द बढ जाताहै यह एक मानसिक सोच होती है पथरी का मरीज भी कुछ ऐसा ही सोचता है

तेज दर्द के कारण रोगी का जी घबराता है चिंता की लकीरे चेहरे पर साफ साफ नजर आती है किसी भी बात को लेकर यदि चिंता फिकर होती है तो  पित्तकी वृद्धि हो जाती है तथा पित्त विकृत हो जाता है पित्तवृद्धि के कारण जी मचलता है और उल्टी भी हो सकती है आयुर्वेद के ग्रंथो मे लिखा है “वातातशुलम पित्तातछर्दि”  वात के कारण पथरी मे शूल होता है और पित्त के कारण उल्टी तथा मुत्र मे जलन होतीहै

तेज पीडा के कारण व्यक्ति बैठ नही पाता वह अपनी पीडा को यदि बर्दास्त कर लेता  है तब तक उठक बैठक करता रहेगा लेकिन यदि दर्द बर्दास्त से बाहर हो जाता है तो रोगी बेहोशी भी हो सकता है
इस रोग को वृकाश्मरी, रेनल स्टोन, केल्कुली, गुर्दे की पथरी, आदि नामो से जानते है यह एक बहुत ही पीडादायक तथा कष्टकारक रोग है

यह मुख्य रूप से मिट्टी, रेत के कण ,पानी के साथ या भोजन के माध्यम से पेटमे चले जाने से , बीज युक्तसब्जी जैसे- भींडी, टमाटर, बैंगन, करेलाआदि, एवम प्रोटीन युक्त आहार जैसे – चने की दाल, पनीर, दूध, आदि इन वस्तुओ का अत्यधिक मात्रा मे सेवन करने से हो सकती है तथा मुत्र का नियमित विसर्जन ना करने से, मुत्र को रोक कर रखने से भी यह रोग हो सकता है

लक्षण – इसका मुख्य लक्षण मुत्र मे जलन, मुत्र का सही ढंग से ना आना,अर्थात मुत्र मे रूकावट, तीव्र पेट दर्द,कमर दर्द,उल्टी तथा जी मिचलाना, आदि लक्षण होते है

आयुर्वेद मे इसका बहुत ही सरल इलाज है आयुर्वेद की दवा कैसी भी पथरी हो उसे तोड कर मुत्र मार्गसे बाहर निकालने मे सक्षम होती है इसके अलावा सामान्य पथरी तो बहुत ही सरल और सुगम इलाज से ठीक हो जाती है यदि खान पान सुधार ले तो ही रोग ठीक हो जाता है पथरी छोटी और कही फसी हुई ना हो तो नियमित रूप से दिन मे एक बार कुलथी की दाल तथा दिन मे दो बार जौ का पानी पीने से ही यह बाहर आ जाती है, लोगो को  जौ का पानी पीने को बोलने पर बीयर पीने की पुछते है लेकिन बीयर भी एक प्रकार की शराब ही है इससे पित्त बढ सकताहै इसलिये मै सभी मरीजो को मना ही करता हुँ,

अपने आहार मे कुलथी की दाल को हमेशा शामिल करना चाहिये, इस रोग के लिये कुछ सामान्य घरेलू  दवा भी है जिनका प्रयोग कर के घर बैठे खुद ही रोग को ठीक कर सकते है लेकिन पहले जांच करवा ले कि पथरी कितनी बडी और किस स्थान पर है ,या नही है, कई बार उपरोक्त लक्षण मुत्र के संक्रमण मे भी दिखाई देते है अतः पुर्णतया संतुष्ट होकर ही इलाज कर सकते है  घरेलू नुस्खे इस प्रकार है , जैसे – मुली का रस,  छाछ,  कुलथी की दाल,  केले के डंठल का रस, इन छोटी छोटी औषधियो के प्रयोग से गुर्दे की पथरी बाहर आ जाती है, कई बार तो खूब पानी पीने से ही पथरी मुत्र मार्ग से बाहर आ जाती है,

इस रोग की चिकित्सा के किस्से भी रोगियो द्वारा बताये जाते है ,बहुत ही रोचक कहानिया सुनने को मिलती है कुछ ढोंगी बाबा या नीमहकीम लोग तरह तरह के प्रयोग कर पथरी  निकालने का दावा करते है, कई लोग इस रोग का इलाज अपने दांतो से गुर्दे की जगह पर चुबा कर काटने का नाटक करके पथरी को बाहर निकाल देते है , कुछ लोग चाकू या तलवार से चिरा लगा कर झाडा फूंक करके ड्रामा करके रोग को समूल नष्ट करने का दावा करते है ,कुछ लोग तो बहुत ही सिद्ध और पहुचे हुये होते है वे तो रोगी के गुर्दे पर हाथ फेरते है और पथरी को पकड कर रोगी के हाथ मे थमा देते है, कुछ लोग शक्करको अभिमंत्रित करके देते है और पुरी गारंटी के साथ पथरी निकालने का दावा करते है ,यह सब बाते मेरे पास आने वाले मरीज बतातेहै  ये लोग भी चमत्कार के चक्कर मे चक्कर काट कर आ चुके होते है , मेरी तो ये ही राय है कि समझदार व्यक्ति को  इस प्रकार के चमत्कार के चक्कर मे कभी नही पडना चाहिये,
मेरे पास जब रोगी आता है तो यह सब नुस्खे तथा मंत्र आदि का उपयोग करने के बाद ही आता है, अब इन्हे कौन समझाये कि ये लोग उस पथरी को ही निकाल सकते है जो पहले से ही निकलने वाली होती है एक स्वाभाविक प्रक्रिया के तहत पथरी निकल जाती है और ये लोग दावाकर देते है कि हमने पथरी निकाल दी है और लोगो के लिये तो हो गया चमत्कार...

पथरी जब फस जाती है और बहुत बडी होती है तो निकलने मे बहुत ही कठनाई होती है लेकिन आयुर्वेद ग्रंथो मे बहुत सी दवा है जो इस प्रकार की पथरी को भी चुरा बना कर पेसाब के मार्ग से बाहर निकाल देती है मेरे पास आने वाले मरीजो मे लगभग 90% लोगो की पथरी मेरे द्वारा बनाई हुई दवा से पथरी बाहर आ ही जाती है मात्र 10% लोगो की पथरी का ओपरेशन द्वारा उपचार करवाया जाता है, लोग कई बार ई मैल से या फोन करके नुस्खे पुछते है लेकिन इसका कोई एक नुस्खा नही है जो कि बता दिया जाये यह एक प्रक्रिया है जिसमे जिसकी जितनी बडी या छोटी पथरी होती है उसे उसी प्रकार की दवा दी जाती है इसलिये मजबुरी मे लोगो को नुस्खे ना बता कर उनकी सोनोग्राफी रिपोर्ट तथा युरिन रेपोर्ट मंगवाकर घर बैठे इलाज करने की कोशीश करता हुँ नजदीकी मरीज को तो आकर मिलने को ही कहता हुँ , बहुत लोगो ने इलाज लेकर अपनी परेशानी से मुक्ति पाई है

परेशान व्यक्ती हमेशा चमत्कार की आशा मे ही रहता है लेकिन जो रोग बहुत ही परेशान करने वाले है उन रोगो की कभी भी चमत्कारिक दवा ठीक नही रहती तथा ना ही रोगी को किसी प्रकार के चमत्कारिक दवा के चक्कर मे पडना चाहिये कभी कभी हम जल्दी और चमत्कार के फिराक मे बहुत ही बडी परेशानी मे पड सकते है, इस रोग मे किसी आयुर्वेद चिकित्सक से सम्पर्क करके ही चिकित्सा लेनी चाहिये या मुझे ई - मैल द्वारा अपनी सारी रिपोर्ट भेज कर सुरक्षित चिकित्सा प्राप्त करनी चाहिये

इस रोग की आयुर्वेद मे बहुत सी  दवा है  कई आयुर्वेदिक फार्मेसी भी पेटेंट मेडिसिन बनाती है और आम लोग इन्हे इस्तेमाल भी करते है लेकिन मेरी आप लोगो से एक सलाह है कि इन दवाओ का प्रयोग करने से पहले किसी चिकित्सक की सलाह पर अपनी सोनोग्राफी करवाये , पैसाबकी जांच करवाये, तथा यह पता करे कि पथरी कितनी बडी या छोटी है तथा किस स्थिति मे कहा पर है यह सब जानकारी होने के बाद ही चिकित्सा लेनी चाहिये, फालतु मे पैसाबबढानेवाली तथा गुर्दे पर दबाव डालने वाली दवा का प्रयोग नही करना चाहिये,

अच्छी और सच्ची सलाह के लिये पढते रहे NIROGI KAYA निरोगी काया
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Sunday 18 September 2016

घर मे बनाये हिंग्वाष्टक चुर्ण

घर मे बनाये हिंग्वाष्टक चुर्ण

आयुर्वेद मे कई दवा बहुत ही आसान तरीके से बनाई जा सकती है उन दवाओ को हम घर मे भी बना सकते है ऐसी दवा यदि घर मे बनाई जाये तो यह बहुत ही लाभ कारी हो सकती है, इस प्रकार की दवाओ मे एक दवा है हिंग्वाष्टक चुर्ण,


इस दवा को हम घर मे आराम से बना सकते है तथा इसे उपयोग मे ले सकते है यह दवा पुरे परिवार के लिये बहुत ही लाभकारी होती है ,आजकल की जीवन चर्या इतनी व्यस्त और खान पान के प्रति लापरवाह भरी है कि पेट के विकार लगभग सभी लोगो को हो जाते है बदहजमी, गैस , ऐसिडिटि , कब्ज जैसी बिमारी प्रत्येक घर मे किसी ना किसी को तो मिल ही जायेगी, ऐसी हालत मे रोज रोज चिकित्सक को दिखाना महंगा तो होता ही है साथ ही साथ परेशानी भरा भी हो गया है ,इसलिये यह दवा यदि घर पर ही बना ली  जाये और काम मे ली जाये तो बहुत अच्छा रहेगा


कैसे बनाये हिंग्वष्टक चुर्ण ?

हिंगवाष्टक चुर्ण बनाने की विधि और घटक द्र्व्य –


सौंठ, मिर्च, अजवायन , सेंधा नमक, सफेद जीरा, काला जीरा , इन सात दवाओ को समभाग लेकर महीन चुर्ण करे – बाद मे घी मे भुनी हींग का चुर्ण एक द्रव्य का आठवा भाग लेकर चुर्ण मे मिला कर रखले, यही हिंग्वाष्टक चुर्ण होता है


गुण और उपयोग—

यह चुर्ण उत्तम दीपक पाचकहै अजीर्ण , पेट फूलना,पेट मे वायु भर जाना, पेट दर्द , कुपच हो कर  दस्त होना आदि रोगो मे यह चुर्ण बहुत काम करता है







Friday 1 July 2016

योग कैसे करे ? समाधान yoga kaise kare ? Samadhan " यम"

  
Yama  यम -

योग जीवन की आवश्यकता है जैसे हम रोज नित्य क्रम मे प्रवृत रहते है यदि ये नित्यक्रम समय पर ना करे तो हम अस्वस्थ हो जाते है उसी प्रकार यदि नित्य क्रम के साथ योग को भी जोड दे तो हम बहुत ही कम बिमार होंगे, आज मै आप लोगो को यह बताने जा रहा हुँ कि योग कैसे करे ?

आप सभी जानते है कि योग को मतलब जोडना होता है आप यह बात बचपन से सीखते आये है कि किसी भी दो वस्तुओ को एक करते है तो उस क्रिया को योग कहते है, एक सामान्य सी लगने वाली बात को समझने केलिये हमारे ऋषियो ने ग्रंथ लिख दिये है उन सभी शास्त्रो मे सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ पतंजली जी की लिखी हुई पतंजली सन्हिता है जिसमे योग की सभी बाते लिखी हुई है  भगवान श्रीकृष्ण ने भी मद्भगवत गीता मे योग का जिक्र किया है आज हम बात कर रहे है कि किसको किससे  जोडे की योग हो जाये और हम स्वस्थ हो जाये, स्वस्थ बनने के लिये किया जाने वाला जोड कोनसा है उसके बारे मे जानेगे

आजकल योग और आयुर्वेद का बहुत ही प्रचार प्रसार हो रहा है इसलिये लगभग लोग यह बात जानते है कि योग क्या है योग के बारे ज्यादा  बताने से अच्छा है कि योग कैसे करे इसी मुद्दे पर बात करे तो अच्छा रहेगा,  मै ने योग करने मे आने वाली परेशनियो के बारे मे बात मेरी  पोस्ट – “योग कैसे  करे  ? समस्याये” मे  की थी और आप लोगो को बताया था कि जल्दी ही इन समस्याओ का समाधान भी बताउंगा तो पेश है मेरे द्वारा किया गया एक अनुभव जिससे मेरा जीवन आनंद दायक बन गया आप भी करे मै वादा करता हुँ निश्चित रूप से आप लोगो का जीवन भी आनंददायक बन जायेगा, पोईंट टु पोईंट बात करते है

होमवर्क करे –

 सबसे पहले यह जाने की हमे करना क्या है जैसे हम किसी भी काम को करने की तैयारी करते है तो उस कार्य के बारे मे पुरी जानकारी लेते है फिर उस काम को करने मे लग जाते है

योग के आठ अंग होते है—यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारना ,ध्यान और समाधि, इन आठ अंगो को सबसे पहले पहले समझना जरूरी है एक एक अंग की जानकारी लेते है

यम –

आज  हम  यम  के बारे  मे  बाते  करेंगे, जो सन्हितायो मे  लिखा है  उस प्रकार से नही जबकि जो मैं ने अनुभव किया  है  या युँ कहे जो मै ने किया  है वह  बताता हुँ,

 ये पांच होते है अहिंसा, सत्यभाषण , चोरी ना करना, ब्रह्मचर्य का पालन, और अपरिग्रह मतलब धन का संग्रह ना करना,

जब हम किसी काम को अंजाम तक ले जाना चाहते है तो उस कार्य की पुरी तैयारी करते है ये योग का पहला अंग  यम भी एक प्रकार की पुर्व तैयारी है बहुत ही कठिन है ये सब करना ,ऐसा लगता है बहुत ही मुश्किल है, लेकिन यदि इन सबकी परिभासा बदल दी जाये तो यह कार्य बहुत ही सरल हो जायेगा , हम इनको कुछ इस प्रकार परिभासित करेंगे जैसे पहला है –

 अहिंसा –

 मतलब हिंसा ना करना किसी को कष्ट ना पहुचाना किसी का दिल ना दुखाना आदि होते है लेकिन हमे क्या करना है कुछ दिन अपने आपको कष्ट नही पहुचाना, हमे अपने आप से  यह प्रतिज्ञा करनी है कि  अपने आपको खुस रखुंगा अपने आपको कोई भी कष्ट नही दुंगा, दुनिया कुछ भी कहे मै बस अपने आपके लिये ही जीने की कोशीश करुंगा और खूब मस्ती से जीने की कोशीश करुंगा, बस ! अपने आपको  परेशान ना करना यही अहिंसा है,

सत्य भाषण –

 इसमे अपने आपसे यह वादा करना कि  मै कभी भी अपने आपसे झुठ नही बोलुंगा, अपने आपसे झुठ बोलने का मतलब है कि रात को मन मे सोचा कि कल से व्यायाम करुंगा और सुबह जगते ही दिमाग से निकाल दिया कि आज नही कल करुंगा यह असत्य है इसे सबसे पहले अपने लिये शुरू करो,यह मन मे पक्का विचार बना लेना चाहिये कि खुद से जो भी वादा करुंगा वह उसी समय मे जरूर पुरा करने की कोशीश करुंगा ,

 चोरी ना करना – 

कैसी चोरी ? कभी आपने ने भी की होगी चोरी, मेरी नजर मे काम को टाल देना चोरी है, बहुत ही तेज भूख लगी है और भूख को अंट शंट खा कर खराब कर लेना चोरी है , किताब को हाथ मे लेकर मोबाईल पर चेटिंग करना चोरी है, किसी का धन चुराना ही चोरी नही होता है ये सब भी चोरी के ही उदाहरण है बस इस प्रकार की चोरी ज्यादा खतरनाक होती है

 ब्रह्मचर्य का पालन करना --

इसे प्रबंधन से जोडे जैसे समय का प्रबंधन , धन का प्रबंधन, उसी प्रकार जीवन का प्रबंधन, किसी भी गलत काम मे समय , धन और यह शरीर खराब नही करुंगा, किसी भी वस्तु को  बेमतलब खर्च ना करना ही ब्रह्मचर्य है ,

अपरिग्रह—

धन का संचय ना करना अपरिग्रह कहलाता है, सबसे  मुश्किल है सबसे पहले  यह समझना कि धन कौनसा है जिसका हमे अपरिग्रह करना है, धन है अपने अंदर की महत्वकांक्षाये , इन्हे ज्यादा संग्रह करने से बहुत ही नुकसान हो सकता है ,यदि अति महत्वाकाक्षाये होती है तो लोभ की उत्पत्ति होती है फिर काम की उत्पत्ति होती है काम की पुर्ति ना तो क्रोध की उत्पत्ति होती है, मनुष्य को महत्वकांक्षी होना  चाहिये लेकिन उसे अति मात्रा मे संचय नही करना चाहिये

उपरोक्त सभी बाते आप समझ गये होंगे अब आगे बात करेंग “नियम”  की .... तो पढते रहे निरोगीकाया ....






Thursday 9 June 2016

योग कैसे करे ? समस्याये yoga kaise kare? samasyaye

योग कैसे करे ? समस्याये yoga kaise kare? samasyaye

आजकल चारो तरफ योग की ही बाते होती है, जहाँ भी जाओ कोई ना कोई तो योग की चर्चा करता हुआ मिल ही जायेगा, हम यदि किसी बिमारी का जिक्र करते है तो तत्काल सलाह मिल जाती है कि योग करो सब ठीक हो जायेगा, बाते सुन कर मन मे भी योग के बारे मे जानने की और योग करने की इच्छा जागृत होने लगती है इंटर्नेट मे सर्च करके योग के बारे मे जान भी लेते है जब जानते है तो पता चलता है कि जो हम करना चाहते है,जिसको लोग योग कह रहे है जिसके बारे मे आम आदमी समझता है वह तो आसन है और  वह योग का एक हिस्सा है योग के आठ अंग है उनमे से एक है आसन, जब पुरी बात समझ मे आती है कि इसके  आठ अंग है जो इस प्रकार है – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा ,ध्यान और समाधि , फिर इनमे भी पांच प्रकार के यम ,पांच प्रकार के नियम , सैंकडो प्रकार के आसन , कई प्रकार के प्राणायाम अनुलोम-विलोम,भ्रष्त्रिका-भ्रामरी , इतना सब झमेला देखकर पढकर मन मे फिर पुराने विचार आते है , कि अपना तो जो चल रहा था वही ठीक है, कभी कभी घुमने निकल जायेंगे, कभी हाथ पैर हिला लेंगे कभी कभी बच्चो के साथ खेल लेंगे अपना तो हो गया व्यायाम और बोडी भी फिट हो जायेगी,

ये बाते आजकल अमुमन हो गई है , हालाकि आजकल योग और आसन सिखाने वाले बहुत है लेकिन मोटी फीस और समय का अभाव यह सब करने को हमे तैयार नही होने देता है , बाजार मे सीडी भी आसानी से मिल जाती है, हम भी किसी पर्फेक्ट योग गुरू की  एक सीडी ले आते है उसे देख देखकर योग करने लग जाते है लेकिन उसके जैसा नही हो पाता है फिर कोई गुमराह दोस्त मिल जाता है और कहता है – ये योगासन को गलत तरीके से करने से शरीर खराब हो जाता है, फिर  से नेगेटिव विचार आते है और योग और आसन नही करने का विचार स्थिर हो जाता है, और हम झुंझला कर एक ही बात कहते है – योग कैसे करे ?

हमसे गलती कहाँ हो रही है इस पर विचार करना चाहिये, यदि हम सकारात्मक  विचार लेकर यह सोचले कि हमे यह अच्छी आदत को अपने अंदर स्थायी रूप से रखना है तो फिर हमे कोई भी आसन प्राणयाम करने से रोक नही सकता है , हम से गलती कहा पर हुई इस पर मनन करेंगे तो हमे पता चलेगा कि हम दुसरो की नकल कर रहे है , नकल से कभी भी योग नही आ सकता योग को जीना पडता है, जीवन जीने के लिये यदि हम किसी दुसरे की नकल करेंगे तो हमारा जीवन नारकीय हो जायेगा, हम दुसरो को देखकर सीख सकते है यह अच्छी बात है जो सीखा हो और उसे उसी प्रकार पहले ही दिन कर ले यह  सम्भव नही है, हम यही पर दुसरी गलती करते है , जब लोगो को सालो साल लग जाते है योगी बनने मे , और हम एक दिन मे ही योगी बनना चाह्ते है यह सम्भव नही है इसलिये अपनेअंदर धैर्य होना चाहिये, अब हम योग कैसे करे ? इस पर चिंतन करते है,और जान लेते है कि -  योग करने से क्या होता है ?  क्या फायदे है ?

मेरे विचार से योग के विषय मे हम इतना ही मान ले कि योग एक जीवन पद्धति है जिस प्रकार हम खाना , पीना, सोना, शौच जाना,पेशाब करना,कमाना , तथा मनोरंजन करना आदि जीवन के लिये आवश्यक मानते है उसी प्रकार योग को भी अपने जीवन के लिये आवश्यक मान ले, योग मे हमे स्वस्थ और सक्रिय बनाये रखने की क्षमता तो है ही साथ ही इसमे हमारे अंदर खुशियाँ , प्रशन्नता भर देने की भी सामर्थ्य है योग हमे हमेशा आनंद विभोर रख सकता है ,

योग को जिस दिन हम हमारे जीवन मे जगह दे देते है, योग को जीवन मे उतार लेते है उसी दिन से हम हमारे अंदर जो कमिया मशसूस करते है उनमे ब्रेक लग जायेगी , वे कमिया आगे नही बढ पायेंगी , वे कमिया, और बुरी आदते धिरे –धिरे कम होंगी , पिछे हटेंगी , और दूर होना आरम्भ हो जायेंगी, एक दिन वे बुरी आदते गलत स्वभाव सब कुछ हमसे दूर जाकर नष्ट हो जायेंगी, यह शरीर कुंदन के समान शुद्ध और गंगा जल के समान पवित्र हो जायेगा, हमारा मन ईर्ष्या ,द्वेष ,और तनाव से रहित हो कर शांतिमय हो जायेगा और सदा आनंदित रहेगा,

योग जब इतना फायदे मंद है तो हम सब क्यो नही कर पाते, इस को सब लोग क्यो नही अपनाते,?  यह एक प्रश्न हमारे मन मे आयेगा, इसका जबाव है कि हम हमारे अंदर की कमियो और बुराईयो से इतने जकडे हुये है कि इस जाल को छोडने की शक्ति समाप्त होती जा रही है, ये जाल हमे बाहर आने ही नही देता जब सोचते है कि हमारे अंदर स्थित बुराईयाँ समाप्त हो जायेंगी तो फिर जीवन मे मजा ही कहाँ रहेगा यदि मै जर्दा नही खाऊंगा, या शराब नही पीऊंगा , इस प्रकार की पार्टी मे भी नही जा पाऊंगा तो फिर तो फिर योग करके हेंड्सम बनने का क्या फायदा है ,

जब मै यम का पालन करूंगा तब  अहिंसक हो जाऊंगा मांस नही खा पाउंगा, जब सत्य भाषण करने लगुंगा तो व्यापार कैसे करूंगा , चोरी के बिना तो कोई भी काम धंधा नही हो सकता , ब्रह्मचर्य तो  मै कभी नही अपना सकता, और अंत मे आपका अपरिगह तो बहुत ही गलत बात है,यदि धन दोलत की बचत ही नही होगी तो घर कैसे चलेगा हारी बिमारी मे कैसे काम चलेगा,

ये इस प्रकार की शंकाओ की वजह से कई लोग योग को अपनाने मे संकोच करते है आप सब इन बातो को एक जगह रखकर मुझे फोलो करे मै भी आप जैसा ही हुँ मै भी पहले ये सब सोचता था कि ये सब यम – नियम तो बाबाजी बनाने के चक्कर है ,लेकिन एक दिन सब कुछ छोड कर लग गया ,कुछ नया करने की फिराक मे और आज बहुत ही नया नया लगता है जीवन बहुत ही आनंद दायक लगता है, 

मै आप लोगो को मेरे अनुभव शेयर कर रहा हुँ ये सब बाते मै ने भी महशूस की है मुझे मालूम है आप भी करते है लेकिन आज से ही शुरूआत करे और एक डायरी मे लिखले कि मेरे मे क्या क्या कमिया है जैसे - मै किसी के सामने खडा होकर बोल नही सकता , साक्षात्कार देते समय कांपता  हुँ , मन मे उमंग समाप्त हो रही है ,लक्ष्य की प्राप्ति नही हो रही है , पेट बाहर आ गया है,चलते समय श्वास फूलती है , इस प्रकार के बहुत सी कमियाँ है उन सभी कमियो को एक जगह लिख कर रख दो और सुबह उठते ही मै जो बता रहा हुँ वह सब करो , फिर एक वर्ष तक करते ही रहो, एक साल बाद  मुल्यांकन करो  तब आप आश्चर्य चकित रह जायेंगे कि यह सब कितना असम्भव लग रहा था और सम्भव  हो गया है, आगे की पोस्ट पढे – योग कैसे करे ? समाधान yoga kaise kare ? samadhan







Friday 3 June 2016

रसवर्धक चुर्ण RASVARDHAK CHURNA

RASVARDHAK CHURNA

आज हम रसवर्धक चुर्ण के बारे मे जानेंगे यह चुर्ण शरीर के लिये बहुत ही अच्छा और फायदे मंद है,इस चुर्ण की हमे क्यो आवश्यकता है यह जानने से पहले हमे यह जानना होगा कि हमारे शरीर मे रस का क्या महत्व है और रस क्या होता है जब हम रस के बारे मे जान लेंगे तब हमे रसवर्धक चुर्ण के बारे मे तथा उसके महत्व का पता चलेगा,

 हमारे शरीर मे सात धातुये होती है 1.रस ,2.रक्त,3.मांस,4.मेद,5.अस्थि,6.मज्जा और 7. शुक्र ये सातो धातुये हमारे शरीर को धारण करती है, यदि इनमे कोई भी धातु की कमी आजाये तो शरीर की स्थिति गडबडाजाती है  इन सात धातुओमे सबसे पहली धातु है रस, यह  रस सभी धातुओ का मूल है जब शरीर मे रस ही नही होगा तो फिर रक्त नही बन पायेगा, ये सभी धातुये उत्तरोत्तर वृद्धि करती है, अतः यह कहा जा सकता है कि सबसे पहले रस  धातु का बढना बहुत ही जरूरी है,रस बढेगा तभी तो शरीर का सबसे महत्वपुर्ण धातु रक्त और शुक्र बढेगा, रस धातु  के अभाव मे शरीर मे बहुत ही कमजोरी आ जाती है और चेहरे की चमक खत्म हो जाती है

हम जो भी भोजन ग्रहण करते है अर्थात जो कुछ भी खाते है वह हमारे शरीर को पुरा लगे और हमारा शरीर पुष्ट हो,  यह सभी की इच्छा होती है,लेकिन कई बार ऐसा होता है कि हम बहुत ही पौष्टिक आहार लेते है और लगातार लेते रहने के बावजूद भी शरीर की हालत बिगडती ही चली जाती है जो खाया वह सब बिना रस बनाये ही शौचालय मे चला जाता है ,

इस प्रकार के बहुतसे  मरीज जब मेरी प्रेक्टिस मे आने लगे और इस प्रकार की कई प्रकार की दवा बाजार मे  से लेकर पहले ही खाकर आने लगे तो इस नई दवा की जरूरत पडी और मैने मेरे और मेरे परम पुज्य गुरूजी वैध्यजी बाबाजी के अनुभवो को काम मे लेकर एक नई प्रकार की दवा पुराने ग्रंथो से पढकर तैयार की है यह दवा बहुत ही कारगर सिद्ध हुई और हमने करीब पांच हजार मरीजो पर इसका सफल प्रयोग किया और इसके लाभ प्राप्त किये है,

यह चुर्ण मुख्य रूप से आहार तंत्र पर काम करता है और हम जो भी भोजन खाते है उसको पुर्ण रूप से पाचन मे सहयोग करता है तथा जो भी आहार लिया जाता है उसको रस मे बदलने मे पुरा कार्य करता है, यह चुर्ण भुख बढाने और खाये हुये भोजन का उचित रस बने इस प्रक्रिया मे सहयोग करता है,तथा पेट को भी साफ रखता है कब्ज नही होने देता ,इसे आप घर पर बना सकते है लेकिन पुरी कच्ची औषधि मिलना बहुत ही मुश्किल काम हो गया है इसलिये आप यह दवा निरोगीकाया से मंगवा कर काम मे ले सकते है

कौन कौन काम मे ले सकते है --यह दवा वैसे तो सभी लोगो के लिये बहुत ही काम की  औषधि है फिर भी मुख्य रूप से---
1.जिनका शरीर बहुत ही दुबला पतला हो,
2. जो लोग खाते तो बहुत है लेकिन शरीर मे ताकत नही है ,
3.चलते बैठते उठते चक्कर आते है ,
4. जिन्हे खाना देखते ही उबाक आती हो,
5.जो बच्चे रोटी को देखकर भाग जाते हो,
6. जिन्हे पौष्टिक भोजन के बजाय चटपटा भोजन अच्छा लगता हो
7. जिनके गाल और कुल्हे पिचके हो
8.जिनके आंखो के काले घैरे बने हो
9. जिनको लोगो से बात करने मे डर लगता हो, सेल्फ कोंफिडेंस की कमी हो

इस प्रकार के लोगो को यह चुर्ण अवश्य ही लेना चाहिये,

Sunday 22 May 2016

सेक्स समस्याये sex problems – एक मनोविकार है

सेक्स समस्याये sex problems  – एक मनोविकार है  

हमारे मन मे कई प्रकार के विचार  आते रह्ते है हम जिस बात के बारे मे ज्यादा या लगातार सोचते रह्तेहै वह विचार ही हमारे अंदर विकार उत्पन्न करने लग जाते है आज मै बात कर रहा हुँ आजकल के किशोर अवस्था मे या युवा अवस्था मे उत्पन्न होने वाले मनो विकार की जिसे आम भाषा मे सेक्स समस्याये कह सकते है मेरे पास कई भटके हुये युवको के ईमैल तथा फोन काल आते रहते है वे बहुत ही परेशान तथा दुःखी  रहते है किसी को अपने शिश्न का छोटा होना अखरता है किसी किसी को शिघ्र पतन की बिमारी होती है किसी को स्वप्न दोष परेशान कर रहा होता है मुझे इन लोगो पर तरस आता है जिस उम्र मे इन्हे अपना शरीर बनाना चाहियेअपने भुजाओ मे ताकत लानी चाहिये मनोबल बाहुबल को बढाने की बजाय ये बेवकूफ  लडके कुछ और ही बढाने मे व्यस्त है एक लडके के ने तो मुझे यह तक कह दिया कि – डाक्टर साब यदि मेरा इलाज नही हुआ तो मै मर जाउंगा, हम आये दिन न्युज पेपर मे पढते भी  है कि फलाँ फलाँ लडके ने शादी के दो दिन पहले या दो तीन दिन बाद आत्म हत्या करली,

 मेरा आज का लेख उन्ही लोगो के लिये है जो गलत राह पर चल रहे है,  मै उन्ही से पुछ्ता हुँ कि जब हम किसी फल या सब्जी को इंजेक्शन लगा कर उसे बडा तो कर लेते है लेकिन क्या उसमे ताकत और स्वाद भर सकते है ? आपका उत्तर होगा ना, दुसरा सवाल क्या हम किसी बच्चे की किसी बडे व्यक्ति से  बराबरी कर सकते है आप लोगो का उत्तर यदि ना है तो मेरे दोस्तो ! अभी आप लोगो का भी समय नही आया है यदि आज ही तुम्हे करना है सब कुछ दवा के भरोसे ही लेना है तो फिर उन लोगो की तरह तैयार रहो जो शादी के बाद टाय टाँय फिस्स हो जाते है

हमेशा याद रखना दवा रोग को ठीक करती है यदि हम बिमार है तो हमारेरोग को ठीक करने वाली दवा भी है लेकिन हम बिमार ही नही है तो किस बात की दवा होगी ऐसे मे जो नीम हकीम  होते है वे इन गुमराह युवको को लूटने का काम करते है तरह तरह के यंत्र इजाद करके बेचते है यदि पंद्रह साल का बच्चा यह चिंता करे कि मेरा लिंग (penis) छोटा है तो यह बेवकूफी नही तो और क्या है, हम आजकल ऐसी बहुत दवा है जो एक रात मे ही छोटे फल को बडा  बना सकती है लेकिन क्या यह सही है हमारी जिंदगी बहुत ही छोटी सी और इसमे भी हजारो समस्याये है इसलिये मेरी राय मे तो इस छोटी सी समस्या को बडी ना बनाये,

सबसे पहले हमे यह समझना चाहिये कि जिस रोग की मुझे चिंता सता रही है क्या मै उस रोग से वाकई मे ग्रस्त हुँ या यह मेरे मन का वहम है मै उन सभी नवयुवको को कुछ टिप्स बता रहा हुँ जिससे आप खुद अपना आकलन कर सकते है और फिर अपनी लाईफ को आनंदयुक्त बना सकते है  जीवन को जीना सीखो, यदि सच मे रोग से ग्रस्तहै और उम्र भी सही है तो फिर आप लोगो के लिये आयुर्वेद मे बहूत ही कारगर दवा है और मेरे जैसे उचित सलाह देने वाले चिकित्सक भी मिल ही जायेंगे  

मुख्य रूप से  निम्नलिखित रोगो से नवयुवक या नवविवाहित ग्रसित रह्ते  है

1. स्वप्नदोष night discharge – यह मनोविकार है, यदि बार बार मन मे अश्लील कल्पना  की जाये या मन मे किसी खूबसुरत लडकी ,महिला या किसी हिरोहिन का विचार किया जाये या कोई अश्लील मुवी देखने से यह मानसिकविकार उत्पन्न हो जाता है  इस विकार मे रात के समय बिना किसी जानकारी के शिश्न मे से एक तरल पदार्थ निकलता है यदि यह तरल पदार्थ महिने मे दो या तीन बार निकले तो यह रोग की श्रेणी मे नही आता, इस रोग की विस्तृत चर्चा आगे करेंगे आप मेरे ब्लोग पोस्ट  पढते  रहे ,

2. शिघ्र पतन – यह भी मन का ही एक विकार है, मन किसी भय या कमजोरी से ग्रस्त हो तो यह विकार उत्पन्न हो जाता है

3. शिश्न का छोटा होना – सच मे यह तो कोई रोग ही नही है, यह शरीर की एक प्रक्रिया है किसी का शरीर लम्बा होता है तो किसी का छोटा होता है इस पर भी मेरी एक विस्तृत पोस्ट आ रही है आप पढते रहे ,

4. नपुंसकता – यह एक रोग है यह भी दो कारणो से उत्पन्न हो जाता है किसी किसी को मनोविकार से और किसी किसी को शारीरिक विकार से यह रोग हो जाता है,

उपरोक्त सभी विकारो के बारे मे तथा आपकी समस्याओ के समाधान के बारे मे लिखता रहुंगा आप निश्चिंत रहे और कभी भी यह नही सोचे कि  ये सेक्स समस्याये  sex problem कोई बहुत ही बडे रोग है और इनका इलाज नही हो सकता है इन विकारो मे ज्यादातर मे तो इलाज की जरूरत ही नही होती है यदि आपको लगे कि विकार ज्यादा है तो फिर इलाज भी सरल ही है किसी नीम हकीम के चक्कर मे पड कर अपने शरीर तथा अपने धन को बर्बाद मत करना

Friday 15 April 2016

सफेद दाग ( leucoderma ) – मे करे पदमासन --

सफेद दाग ( leucoderma ) – मे करे पदमासन --

परिचय – यह रोग आयुर्वेद ग्रंथो मे चर्म रोगो जिन्हे कुष्ठ(skin desease) कहा जाता है  के भेद के रूप मे जाना जाता है इसे श्वित्र रोग कहते है , आचार्य चरक , सुश्रुत ,  वाग्भट, काश्यप आदि  ऋषियो  ने इस रोग को त्रिदोषज( वात- पित-कफज )  व्याधि माना है इन दोषो के कारण जब रक्त  त्वचा , जल  और मर्म दुषित हो जाते है तब यह  श्वित्र रोग  उत्पन्न होता है ,
 
Leucoderma , also known as vitiligo , is an acquired, idiopathic dermatological disorder characterzed by well circumscribed ivory or chalky white macules which are flush to the skin surface.

कारण – यह रोग मुख्यरूप से अनियमित जीवन शैली के कारण होता है इसके और भी कई कारण है जिनमे से प्रमुख है – विरुद्ध आहार , अजीर्णभोजन , विषमभोजन ,

इस रोग से घबराने तथा डरने की जरुरत नही है यह रोग आयुर्वेदिकउपचार  तथा अपनी जीवन शैली  को  बदल कर यदि नियमित आरोग्य वर्धक जीवन शैली मे बदल लिया जाये तो यह रोग ठीक हो जाता है , अपने चिकित्सक से नियमित परामर्श लेते हुये यदि अपनी जीवन चर्या मे  आसन  प्राणायाम तथा  ध्यान को शामिल कर लिया जाये तो  यह रोग जल्दी ही ठीक हो सकता है नियमित आयुर्वेदिक दवा के साथ साथ यह आसन नियमित करे और अपने शरीर को विकृत होने से बचाये –

आज हम बात कर रहे है पदमासन की यह आसन बहुत ही सरल है इस आसन मे बैठकर नियमित रूप से ध्यान लगाना चाहिये , पदम का अर्थ होता है कमल , इस आसन के पुरा होने पर शरीर का आकार कमल के समान हो जाता है इसीलिए इस आसन का नाम पदमासन रखा गया है पदमासन एक महत्वपुर्ण  आसन तो है ही इसके साथ ही यह सभी आसनो मे श्रेष्ठआसन भी माना जाता है

विधि – समतल और साफ सुथरी जगह पर कम्बल बिछा लिजिये  और बैठ जाइये दोनो टांगो को आगे की ओर फैला लिजिये, फिर धिरे धिरे दाहिनी  टांग को घुटने  तक मोड कर बायी  जांघ पर रख लिजिये, फिर बायी टांग को मोड कर दाहिनी  जांघ पर रख लिजिये और फिर दाहिनी हथेली को नीचे तथा बायी  हथेली को ऊपर रख कर कमर सीधी कर के आंखे बंद कर शांत मन से भगवान का स्मरण करे ,चित्र अनुसार स्थिती बनाये,

चित्र -- 







Wednesday 9 March 2016

जुकाम का घरेलू उपचार ---

जुकाम का घरेलू  उपचार ---


किसी किसी आदमी  या औरत को जुकाम होने की आदत सी पड जाती है बराबर सर्दी बनी ही रहती है नया कफ बनता ही रहता है और नाक बराबर बह्ती  ही रहती है कई लोगोको मौसम परिवर्तन होते ही जुकाम जकड लेती है ऐसी अवस्था मे इस चुर्ण के सेवन से काफी लाभ होता है  बसंत ऋतु मे भी कफ का प्रकोप होता है और ऋतु भी परिवर्तित होती है अतः यह चुर्ण सब के लियेबहुत हीलाभ पहुचाने वाला हो सकता है


द्रव्य – 
   
जायफल , लौंग , छोटी इलायाची , तेजपत्ता,दालचीनी , नागकेशर,कपूर , सफेदचंदन , धोये हुये काले तिल , वंशलोचन,तगर, आंवला, तालीस पत्र, पीपल, हरड , चित्रकछाल , सौंठ , वायविडंग , मिर्च और कलोंजी,


विधि –

 प्रत्येक द्रव्य को समभाग लेकर पीस कर कपडछान चुर्ण तैयार करे, जितना चुर्ण हो उसकेबराबर धुली हुई शुद्धकी हुई भांग का चुर्ण मिला दे, फिर सब चुर्णके समान भाग मिश्री पीस कर मिला कर रख ले ,


मात्रा और अनुपान –

 250 ग्राम  से 500 ग्राम तक सुबह शाम पानी से ले,  बच्चो को ना दे,

लाभ –

 इसके सेवन से आदतन जुकाम निश्चित रूप से ठीक हो जाती है


सलाह—

यदि दवा की मात्रा से कम असर हो रहा हो तो चिकित्सक के परामर्श से दवा की मात्रा  बढा सकते है और यदि दवा लेने से नशा होता हो तो मात्रा कम कर लेनी चाहिये  

Sunday 6 March 2016

आयुर्वेद चिकित्सक है – भगवान शंकर !

आयुर्वेद चिकित्सक है – भगवान शंकर  !

भगवान शंकर को महादेव,देवो के देव, चिकित्सको के चिकित्सक, “भिषगानाम भिषक” आदि कई नामो से जाना जाता है प्रत्येक आयुर्वेद चिकित्सक  रसायन बनाने से पुर्व, औषध निर्माण से पहले महादेव का ही स्मरण करता है

“या ते रुद्र शिवा तनू  शिवा विश्वस्य भेषजी , शिवा रुद्रस्य भेषजी तया नो मृड जीवसे”

शिवा हरितकी का भी नाम  है और शिवा अर्थात हरितकी के लिये लिखा गया है कि यदि घर मे माँ नही हो और हरितकी हो तो चिंता ना करे क्योकि शिवा शिव के समान तथा माँ के समान कल्याण कारि है,
  
भगवान शंकर दयालू मे दयालू  और चिकित्सको मे चिकित्सक है –“ भिषक्तमँ त्वा भिषजाँ श्रृणोमि” , (ऋक. 2/33/4)

इनके भेषज अतिशय सुखकर होते है यजमान वेद मंत्रो के द्वारा उन भिषजो की याचना करते है –“हे रुद्र ! आप मुझे जो औषधि देंगे, उससे हम सैकडो वर्ष सुखमय जीवन व्यतीत करेंगे”

भगवान शंकर का आयुर्वेद से बडा ही गहरा सम्बंध है , पहला तो जहाँ महादेव विराजते है कैलाश पर्वत पर   वहाँ पर अनेक जडी बुँटिया भी विराजति है अर्थात उत्पन्न होतीहै ,भगवान शंकर के शुक्र को आयुर्वेद ग्रंथो मे पारा माना गया है तथा महादेवी पार्वति के  रज को गंधक माना जाता है और पारद(पारा) और गंधक को मिलाकर  सैकडो प्रकार की आयुर्वेदिक दवा बनाई जाती है और उन निर्मित औषधियो को  “रस”  कहा जाता है जो चिकित्सा कार्य मे बहुत ही काम आती है ,

भगवान शंकर का आयुर्वेद की उत्पति मे क्या हाथ था तो इसके लिये लिखा है
“मृत संजीवनी नाम विध्या या मम निर्मला , तपो बलेन महता मयैव परिनिर्मिता” ,

भगवान शंकर के पास मृत संजीवनी नामकी एक ऐसी विध्या थी जो किसी के पास भी नही थी इस विध्या से मरे हुये प्राणियो को जीवित किया जा सकता था इस विध्याको भगवान शंकर ने शुक्राचार्य को दिया था
भगवान शंकर ने शुक्राचार्य को पढाकर इस मृत संजीवनी विध्या की परम्परा को चालु रखा था

भगवान शंकर के बारे मे शल्य चिकित्सा के भी बहुत उदाहरण जुडे हुये है प्रथम पुज्य श्री गनेश जी का सिर हाथी का लगाना और दक्षप्रजापति के सिर को काटने के बाद पुनः बकरे का सिर लगा दिया था ऐसे कई बातो से ऐसा लगता है कि महादेव शंकर आयुर्वेद के महान चिकित्सक थे और अभी भी चिकित्सक जगत के लिये बहुत ही आदरणीय और प्रेरणा स्रोत है

आज इस महा शिवरात्री पर हम सब पुर्ण मनो योग से अपने प्रेरणा देने वाले महादेव को याद करे और उनका पुजन बहुत ही श्रद्धा के साथ करे – ओम नमः शिवाय ....


Wednesday 27 January 2016

यौनशक्ति(sex power) वर्धक औषधि-- वीर्य स्तम्भन वटी

                            आजकल युवको मे शरीर सौष्ठव
को बढाने की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन यह शरीर सौष्ठव तब तक तो ठीक है जब तक इसका दुरोपयोग नही होता हो लेकिन आज का युवा जिम मे जाकर शरीर तो बलवान बना लेता है लेकिन मानसिक रूप से निर्बल ही रहता  है, जब मन पुर्ण रूपसे परिपक्व ना हो तो कई प्रकार की व्याधियाँ घेर लेती है,

                         यौन शक्ति का कम होना भी एक मानसिक बिमारी ही है इसमे कई कारण हो सकते है,जिस प्रकार से आजकल वातावरण बन रहा है जिसमे ये कारण विशेष है  जैसे- अनियमित दिनचर्या, अनुचित आहार-विहार, कामुक मानसिकता, अप्राकृतिक यौनक्रिडा, हस्त मैथून, पोषक आहार का अभाव, अश्लील वातावरण, आदि कारणो और मानसिक रुग्णता के कारण युवक अपनी यौनशक्ति को खो बैठते है


                        जब शक्ति नही रहती तो कुछ भी वश मे नही रहता है और यौनदोर्बल्य, स्वप्नदौष, धातु क्षीणता, आदि बिमारियो से पिडित हो जाते है और जब शादी होती है तो बडे  ही परेशान होते है, मेरी प्रेक्टिस मे बहुत से नवयुवको ने मुझसे सलाह लेकर अपना वैवाहिक जीवन सुखद बनाया है और अभी भी सलाह लेते रहते है , लेकिन जब किसी  किसी को  उचित परामर्श नही मिलता है तो वे आत्महत्या जैसे संगीन काम को भी अंजाम दे देते है,

                        यह आयुर्वेदिक औषधि इसी प्रकार  के शर्मिले युवको के लिये है जो अपना कष्ट किसी से शेयर नही करते या जिन्हे उचित सलाह नही मिल पाती वे लोग इस दवा का उपयोग कर सकते है


घटक द्रव्य --         सोने के वर्क, और कस्तुरी                 1--1ग्राम
                             चांदी के वर्क, इलायची, जुंदे बेदस्तर  10---10ग्राम
                             नरकपूर, दरूनज अकबरी, बहमन लाल, बहमन सफेद, जटामांसी, लौंग, तेजपत्र,(कपड -छान किया हुआ चुर्ण ले ) 5---5ग्राम
                             पीपल और सौंठ काचुर्ण 3----3ग्राम 
                             थोडा सा शहद


निर्माण विधि --

                       जुंदे बेदस्तर को शहद मे घोंटे, फिर वर्क कस्तुरी आदि अन्य द्रव्य मिलाते जाऐ, और घुटाई करते रहे, फिर नरकचूर आदि का बारीक पिसा छना हुआ चुर्ण मिलाते हुये घुटाई करते रहे, तीन घंटे घुटाई करने के बाद आधा--आधा ग्राम की गोलियाँ  बना ले ,


मात्रा एवम सेवन विधि --
  
                         2-- 2 गोली सुबह शाम मीठे गुनगुने दुध के साथ सेवन करे


लाभ --

                         इस वटी के सेवन से वीर्य शुद्ध और गाढा होता है, पाचन क्रिया सुधरती है, जठराग्नि प्रबल होती है शरीर सुन्दर और पुष्ट बनता है  शरीर शक्तिशाली बनता है


                        यह दवा विवाहित युवको के लिये ही है, जिनका विवाह नही हुआ है ऐसे नवयुवको को यौनवर्धक औषधियो का सेवन नही करना चाहिये

चिकित्सा कार्य एक सेवाकार्य है....

                    मुझे चिकित्सा करते हुये करीब अठारह वर्ष हो गये है,मुझे इस समयावधि मे कई प्रकार के अनुभव हुये है,मै इतना व्यस्त चिकित्सक नही हुँ जितना और मेरे कई साथी रहते  है,लेकिन इतना तो मेरे अनुभवो से मुझे पता चला ही है कि चिकित्सा एक सेवाकार्य है,आयुर्वेद मे इस कार्य के फल के लिये लिखा है - "किसी से मित्रता हो जाती है ,कोई धन दे जाता है, कोई दुआ दे जाता है और कोई कुछ भी ना दे तो धर्म तो होता ही है" अतः कहा गया है "चिकित्सा नास्ति निष्फला,"


                   मै मेरे मरीज के साथ बहुत ही मन और तन से साथ निभाता हुँ उसकी  पुरी सेवा करने की कौशीश करता हुँ, मेरी पुरी कौशीश रहती है कि वह पुरी तरह से जल्दी से ठीक और स्वस्थ हो जाये, जब वह आराम महशुस करता है तो मन मे एक संतोषप्रद खुसी महशूस होती है,


                  चिकित्सक को लोग भगवान का दर्जा देते है,और सच मे मानते भी है,चिकित्सक का कर्तव्य है कि वह भी भगवान बन कर ही रहे किसीके साथ भी छल प्रपंच ना करे धोका ना दे, रोगी के विश्वास को बनाये रखे, यदि किसी  मरीज के परिजन भावावेश मे कुछ गलत बोल भी दे तो उदारमन से उसे सहन करने का धीरज रखना चाहिये,


                    मेरे मरीजो को मुझसे भी बहुत शिकायते है,किसी को फीस लेने की शिकायत है तो किसी घर पर बुलाने पर ना आने की शिकायत है, किसी किसी को तो रेफर कर देने की ही शिकायत हो जाती है उन्हे लगता हैकि यदि गौर से देखते तो मरीज यही पर ठीक हो सकता था,लेकिन जहाँ तक मेरा मानना है,चिकित्सक भगवान के जैसा है लेकिन भगवान नही  है, वह भी एक इंसान है,एक पति है ,एक पिता है,चिकित्सक कभी भी किसी मरीज का बुरा नही सोच सकता, वह हर हालत मे उसे स्वस्थ करने के लिये तत्पर रहता है,


                     चिकित्सक यदि इस कार्य को सेवा कार्य समझ कर कर रहा है तो सभी मरीजो तथा परिजनोको भी इस कार्य को सेवा कार्य ही समझना चाहिये, सेवाकार्य को यदि सेवा लेने वाला अधिकार या हक समझने लग जाता है तो फिर झगडा होना स्वभाविक है, अतः सेवाकार्य को सेवा ही रहने दे अधिकार नही,