Saturday 30 September 2017

पाईल्स की दवा :- अगस्त्य हरीतकी

परिचय :-

यह हरड़ के द्वारा बनाई गई एक बहुत ही महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक औषधि है । जैसा कि हम जानते है हरड़ शरीर में कभी भी कोई साइड इफेक्ट नही करता है और जो शरीर में  विजातीय द्रव्य (कीटोन बॉडी)  होते है उन्हें बाहर निकाल कर शरीर के प्रत्येक अंग की क्रियाशीलता को व्यवस्थित करता है।

औषध द्रव्य :-

(1)मुख्य द्रव्य :-

बड़ी हरड़ 100 नग, जौ चार सेर, दशमूल सवा सेर, चित्रक, पिपला मूल, अपामार्ग, कपूर, कौंच के बीज, शंख पुष्पी, भारंगी, गज पीपल, खरैटी और पुष्कर मूल, प्रत्येक 10 - 10 तोला,

(2)अन्य द्रव्य :-

घृत 40 तोला, तेल 40 तोला, गुड़ सवा छः सेर ।

(3) प्रक्षेप द्रव्य :-

मधु 40 तोला, पिपली चूर्ण 20 तोला ।

बनाने की विधि :-

अगस्त्य हरीतकी नाम से यह दवा बाजार में आयुर्वेदिक स्टोर्स पर आराम से मिल जाती है । फिर भी जिन लोगो को घर पर ही यह दवा बनानी हो तो उनके लिए यह विधि शास्त्रों में बताई गई है ।

बड़ी हरड़ (हरीतकी) और जौ को एक पोटली में बांधे, और बाक़ी द्रव्यों को मिलाकर अधकुटा करके एक मन(लगभग 40 लीटर)  पानी में पकावे, तथा इसी में उक्त पोटली रख दें ।

जब हरड़ और जौ उबल जाये तथा क्वाथ तैयार हो जाए तो उतार ले । इस क्वाथ को छान कर इसमें उबाली हुई हरीतकी को मिलावे । फिर इसमें घृत और तेल 40-40 तोला तथा गुड़ सवा सेर पकावें ।

अवलेह सिद्ध होने पर या ठंडा होने पर मधु (शहद) 40 तोला और पिपली चूर्ण 20 तोला मिलाकर सुरक्षित रख लें ।

गुण और उपयोग :-

इसके सेवन से पाईल्स(अर्श), दमा(अस्थमा), क्षय(टी बी), खांसी, ज्वर, अरुचि, आदि रोगों का नाश करती है । कफ का नाश करने वाली होने के कारण दमा, खांसी, श्वास, यक्ष्मा,आदि में बहुत लाभ करती है ।

पाईल्स में है विशेष उपयोगी :-

अगस्त्य हरीतकी मृदु विरेचक है , इसलिए अर्श (बवासीर, पाईल्स) वाले को विशेष लाभ करती है । पाईल्स रोग अमूमन कब्ज होने से होता है और अगस्त्य हरीतकी विरेचक औषधि है यह कब्ज को दूर कर देती है । यदि ज्यादा कब्ज हो तो गर्म जल के साथ सेवन करने से एक दो दस्त साफ़ हो जाते है । इससे न तो पेट में मरोड़ होती है और न ही किसी प्रकार की तकलीफ होती है । अधिक दिनों तक इसका सेवन करने से किसी भी प्रकार की कोई तकलीफ और साइड इफेक्ट नही होते है । इसका सेवन लगभग दो से तीन माह तक करना चाहिए । यह अपना पूर्ण असर लगातार लम्बे समय तक लेने से ही स्थाई दिखा पाती है ।

सावधानियां :-

यह बहुत ही अच्छी और महत्वपूर्ण औषधि है और इसका कोई भी साइड इफेक्ट नही होता है , फिर भी यदि कोई अन्य रोग से ग्रसित व्यक्ति यह दवा लेता है तो उसे अपने चिकित्सक से परामर्श लेकर ही यह दवा लेनी चाहिए ।

Sunday 24 September 2017

Ayurvedic kadha आयुर्वेदिक काढ़ा

काढा क्या है ?

आयुर्वेद चिकित्सा में प्रयुक्त होने वाली एक औषध व्यव्स्था का रूप होता है काढ़ा । काढ़े को क्वाथ ,कषाय आदि नामो से भी जाना जाता है । यह दवा स्वतंत्र रूप से भी काम में ली जाती है तथा कुछ रोगों में अन्य औषधि के अनुपान रूप में भी काम में ली जाती है ।
काढ़े का प्रयोग वैदिक काल से किया जा रहा है । यह अनेक प्रकार की अलग अलग औषधियों को मिलाकर तैयार कर तत्काल ही काम में ली जाने वाली औषधि है । आजकल कई आयुर्वेदिक फार्मेसियां इस औषधि को तैयार कर बन्द बोतल में प्रिजर्व करके भी बेचती है ।
इन दिनों मौसमी बीमारियों की रोकथाम के रूप में बहुतायत में कुछ रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवा को संग्रहित कर आयुर्वेद विभाग द्वारा आमजनता को यह काढा पिलाया जा रहा है ।
कैसे बनाते है काढ़ा
काढा बनाने की बहुत ही सरल विधि है । जिस प्रकार घर में चाय बनाते है उसी के समान काढा बनाने की प्रक्रिया भी होती है । इसमें कुछ मात्रा और समय का ध्यान रखते हुए यह औषधि तैयार की जाती है ।
मात्रा के लिए शास्त्रों में लिखा है कि एक तोला क्वाथ की औषधि को जौ कूट (मोटा चूर्ण) करके मिट्टी अथवा कलईदार बर्तन में सोलह गुने पानी में मन्द अग्नि पर पकावे । जब चौथाई पानी शेष रहे , तब कपडे से छान , सुखोष्ण ( थोड़ा गरम गरम )पिलावे ।
सावधानी :-
क्वाथ बनाते समय बर्तन का मुँह खुला रहना चाहिए । ढक देने से काढ़ा भारी (दुष्पाच्य)हो जाता है ।
काढ़े को मिट्टी के कोरे (नए) बर्तन में बनाना चाहिए या फिर कोई साफ मजबूत बर्तन जिसमे कलई  की हुई हो ऐसे बर्तन में काढ़ा बनाना चाहिए ।
काढ़ा बनाने के बाद उसे ज्यादा देर तक नही रखना चाहिए । तत्काल ही काम में लें लेना चाहिए ।
काढ़ा के प्रकार
आयुर्वेद में काढ़ा रोगानुसार औषधियों को इकठ्ठा करके बनाया जाता है ।
कुछ रोगानुसार काढ़ो को नाम यहां लिखा जा रहा है ।
कब्ज को दूर करने के लिए :- अभयादि क्वाथ
गुर्दे की पथरी में :- अश्मरी हर कषाय
बुखार में :- अमृताष्टक क्वाथ
पुरानी कब्ज में :- आरग्वधादि क्वाथ
जुखाम में :- गुल वनप्सादि, गौजिव्यादि क्वाथ
और भी बहुत क्वाथ है जिनमे
दस मूल क्वाथ
जन्म घुट्टी क्वाथ
त्रिफलादि क्वाथ
धान्य पंचक क्वाथ
पथ्यादि क्वाथ
मधुकादि हिम क्वाथ
ये सभी क्वाथ आयुर्वेद विभाग द्वारा संचालित औषधालयों में मुफ्त में मिलते है । और बहुत ही कारगर भी होते है ।
क्या है रोगप्रतिरोधक काढ़ा :-
आयुर्वेद ग्रन्थों में कुछ द्रव्यो का वर्णन मिलता है जिन्हें रसायन द्रव्य कहा जाता है जिनमे गिलोय , आंवला , हरीतकी , खजूर, द्राक्षा , आदि है ।
इनके अलावा कुछ द्रव्य इस प्रकार के भी होते है जो त्रिदोषों को संतुलित करते है । जिनमे गावजवां, मुलेठी, खाकसीर, हंसराज, अलसी, खतमी की जड़ काली मिर्च, गौखरू आदि औषध द्रव्य है
जब दोष समावस्था में होते है तभी मानव स्वस्थ रहता है । मनुष्य को स्वस्थ रखने के उद्देश्य से यह औषधि व्यवस्था की गई है ।
रोग प्रतिरोधक काढ़े में इस प्रकार की औषधियों को मिलाकर तैयार किया गया है कि वह दोषो का संतुलन बनाये रखे और रसायन औषधियों के प्रभाव से रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती रहे है ।
"रसायनं बल वर्धनं"  रसायन बल की वृद्धि करता है ।
विषैली वायु और विषैला जल वर्षा ऋतु में रोगों को जन जन में फैला देता है । जब शरीर में कमजोरी आती है तो बाहरी जीवाणु और विषाणु अटेक करते है जिनके कारण स्वाइन फ्लू , डेंगू, चिकनगुनिया , मलेरिया, आदि रोग होने लगते है । जब शरीर में रोगो से लड़ने की क्षमता रहेगी तो यह सभी रोग होने की संभावना कम हो जाती है ।

Thursday 7 September 2017

हितकर आहार और अहितकर आहार

क्या है ? हितकर और अहितकर आहार ।
जो आहार समूह शरीरस्थ समधातुओ को प्रकृति में रखता है , अर्थात जो आहार समधातुओ को कम या ज्यादा नही होने देता और विषम ( घटे या बढ़े )धातुओं को सम कर देता है उसी को हित कारक आहार समझना चाहिए और इसके विपरीत कार्य करने वाले आहार को अहित कारक समझना चाहिए ।
आहार क्या है ?
"आह्रीयते (पोषणार्थं) इति आहारः" शरीर के पोषण के लिए जो द्रव्य( ठोस,द्रव) लिया जाये , वह आहार है ।
यह आहार छः रसों से युक्त प्राणियों के प्राणों की रक्षा करने वाला होता है । बल , वर्ण, औज आदि की वृद्वि करता है । शरीर को पृष्ठ और सौष्ठव युक्त बनाता है । लेकिन कई बार यही आहार प्राणियों के प्राण भी हर लेता है और संकट भी पैदा कर देता है । इसलिए सोच समझ कर ही आहार का सेवन करना चाहिए ।
क्या खाएं ? इस पर विचार करें ।
राजस्थानी में एक कहावत है "ऊंट छोड़े आक और बकरी छोड़े ढाक"  यानि जो रेगिस्थान का जहाज ऊंट है वह सब कुछ आहार को पचा जाता है लेकिन उसको भी एक आक नामक पौधे को छोड़ना पड़ता है क्योंकि वह उसके लिए अहित कारक है उसी प्रकार बकरी के लिए ढाक अहित कारक आहार है ।
इसी प्रकार मनुष्य शरीर में भी बहुत से आहार हितकारक होते है और कुछ आहार द्रव्य अहितकर भी होते है । किसी किसी आहार के संस्कार से उसे हितकर भी बनाया जा सकता है लेकिन कुछ आहार तो ऐसे होते है कि उनकी प्रकृति ही अहितकारी होती है ।
आहारो का विभाजन :-
सभी आहारों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है ।
1 स्थावर आहार :- जैसे गेहूं, चावल, जौ , चना , साग- सब्जी , शुक धान्य, शमी धान्य आदि ।
2 जंगम आहार :-  पशु पक्षियों का मांस।
कौनसे आहार हितकारी है ?
इस संदर्भ में एक बात सही लगती है कि
"कोई के बैंगन वायरा,कोई के बैंगन पच।
कोई के बैंगन बादी करीं, कोई के बैंगन पथ्य।।" 
किसी के बैंगन वायुकारक होते है किसी को बैगन हितकारी होते है । तो यह एक अजीब सी विडंबना है कि क्या किया जाये । इसी समस्या का आभास महर्षि अग्निवेश को भी था कि यह समस्या हो सकती है इसलिए उन्होंने बहुत ही सुन्दर तरीके से शौध करके कुछ आहार द्रव्यों की सूचि बनाई जो प्रकृति से ही हितकारी है उनका स्वभाव ही ऐसा है कि उन्हें कोई भी किसी भी तरीके से खाये वे शरीर में हमेशा हितकारी ही कार्य करेंगी ।
एक सूचि ऐसी भी बनाई की उनको आप कैसे भी खाए वे शारीर को अहित ही पहुचायेंगी । उनका स्वभाविक गुण अहितकारी ही है ।
पहले हितकारी आहार की बात करते है , जो प्राकृत रूप से शरीर में सभी दोषो को सम अवस्था में रखने का ही कार्य करते है इस प्रकार के आहार द्रव्यों की एक सूची इस प्रकार है ।
ये आहार द्रव्य प्रकृति से ही हितकारी होते है , ये किसी भी प्रकार से अहितकारी नही होते है ।
1 लाल शाली चावल
2 मुंग
3 आकाशीय जल
4 सैंधा नमक
5 जीवन्ति पत्र शाक
6 ऐनेय मृग मांस
7 लाव पक्षी का मांस
8 गोह का मन
9 रोहित मछली का मांस
10 गाय का घी
11 गाय का दूध
12 तिल का तैल
13 सूअर की चर्बी
14 चुलुकी मछली की चर्बी
15 पाक हंस की चर्बी
16 मुर्गे की चर्बी
17 बकरे की मेद
18 अदरक
19 मुनक्का
20 शर्करा
ये बीस आहार द्रव्य प्रकृति से ही हितकारी होते है ।
अहितकारक आहार कौनसे है ??
जो शरीर को हर हालत में हानि पहुचाये उनका स्वाभाविक गुण ही ऐसा हो , उनको प्रकृति ने ही इस प्रकार का बनाया है उन आहार द्रव्यों की सूचि महर्षि अग्निवेश ने इस प्रकार बनाई है ।
1 जौ
2 उड़द
3 वर्षा में नदी का पानी
4 औसर नमक
5 सरसो की सब्जी
6 गाय का मांस
7 काण कबूतर का माँस
8 मेंढक का माँस
9 चिलचिम मछली का माँस
10 भेड़ का घी
11 भेड का दूध
12 कौशुम्भी का तैल
13 भैस की चर्बी
14 चटक पक्षी का मांस
15 कौवे की चर्बी
16 चटक पक्षी की चर्बी
17 हाथी की चर्बी
18 आलू
19 लकुच
20 गन्ने की राब
इन दोनों सूचियों में अनाज, फल ,पशु ,पक्षी ,बिल में रहने वाले जीव, जल में रहने वाले जीव,कन्द, मूल , घी , दूध, आदि सभी प्रकार के आहार द्रव्यों का विवेचन किया गया है ।
हजारो वर्ष पहले लिखे गए आयुर्वेद ग्रंथो में आज भी यथावत काम आने वाली बाते लिखी गई है । इन सभी बातों को आम पब्लिक पहुचाने के लिए ही यह लेख लिखा गया है । जब यह लेख लिखने से पहले जब मैं इस संदर्भ में पढ़ रहा था तब कुछ लोगो से मैंने यह जिक्र किया था कि लोग गाय का मांस क्यों खाते है यह तो अहितकारी होता है तब एक बन्धु ने सुश्रुत संहिता का उल्लेख करते हुए लिखा था कि गाय के मांस वीर्य वर्धक और पुष्टिकारक होता है । उस वक्त मैंने उन महोदय को यह जबाव दिया था कि मदिरा भी हर्ष और आनन्द उत्पन्न करने वाली होती है । लेकिन क्या सच में वह ऐसा करने वाली है । शराब का स्वाभाविक गुण शरीर को नुकसान पहुचाना ही  है ।
इन द्रव्यों में भी बहुत गुण भी है लेकिन जो स्वभाविक गुण बताया गया है वह हितकारी और अहितकारी के दृष्टिकोण से बताया गया है । इति

हितकर आहार और अहितकर आहार

क्या है ? हितकर और अहितकर आहार ।

जो आहार समूह शरीरस्थ समधातुओ को प्रकृति में रखता है , अर्थात जो आहार समधातुओ को कम या ज्यादा नही होने देता और विषम ( घटे या बढ़े )धातुओं को सम कर देता है उसी को हित कारक आहार समझना चाहिए और इसके विपरीत कार्य करने वाले आहार को अहित कारक समझना चाहिए ।

आहार क्या है ?

"आह्रीयते (पोषणार्थं) इति आहारः" शरीर के पोषण के लिए जो द्रव्य( ठोस,द्रव) लिया जाये , वह आहार है ।

यह आहार छः रसों से युक्त प्राणियों के प्राणों की रक्षा करने वाला होता है । बल , वर्ण, औज आदि की वृद्वि करता है । शरीर को पृष्ठ और सौष्ठव युक्त बनाता है । लेकिन कई बार यही आहार प्राणियों के प्राण भी हर लेता है और संकट भी पैदा कर देता है । इसलिए सोच समझ कर ही आहार का सेवन करना चाहिए ।

क्या खाएं ? इस पर विचार करें ।

राजस्थानी में एक कहावत है "ऊंट छोड़े आक और बकरी छोड़े ढाक"  यानि जी रेगिस्थान का जहाज ऊंट है वह सब कुछ आहार को पचा जाता है लेकिन उसको भी एक आक नामक पौधे को छोड़ना पड़ता है क्योंकि वह उसके लिए अहित कारक है उसी प्रकार बकरी के लिए ढाक अहित कारक आहार है ।

इसी प्रकार मनुष्य शरीर में भी बहुत से आहार हितकारक होते है और कुछ आहार द्रव्य अहितकर भी होते है । किसी किसी आहार के संस्कार से उसे हितकर भी बनाया जा सकता है लेकिन कुछ आहार तो ऐसे होते है कि उनकी प्रकृति ही अहितकारी होती है ।

आहारो का विभाजन :-

सभी आहारों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है ।

1 स्थावर आहार :- जैसे गेहूं, चावल, जौ , चना , साग- सब्जी , शुक धान्य, शमी धान्य आदि ।

2 जंगम आहार :-  पशु पक्षियों का मांस।

कौनसे आहार हितकारी है ?

इस संदर्भ में एक बात सही लगती है कि

"कोई के बैंगन वायरा,कोई के बैंगन पच।
कोई के बैंगन बादी करीं, कोई के बैंगन पथ्य।।" 

किसी के बैंगन वायुकारक होते है किसी को बैगन हितकारी होते है । तो यह एक अजीब सी विडंबना है कि क्या किया जाये । इसी समस्या का आभास महर्षि अग्निवेश को भी था कि यह समस्या हो सकती है इसलिए उन्होंने बहुत ही सुन्दर तरीके से शौध करके कुछ आहार द्रव्यों की सूचि बनाई जो प्रकृति से ही हितकारी है उनका स्वभाव ही ऐसा है कि उन्हें कोई भी किसी भी तरीके से खाये वे शारीर में हमेशा हितकारी ही कार्य करेंगी ।

एक सूचि ऐसी भी बनाई की उनको आप कैसे भी खाए वे शारीर को अहित ही पहुचायेंगी । उनका स्वभाविक गुण अहितकारी ही है ।

पहले हितकारी आहार की बात करते है , जो प्राकृत रूप से शरीर में सभी दोषो को सम अवस्था में रखने का ही कार्य करते है इस प्रकार के आहार द्रव्यों की एक सूची इस प्रकार है ।

ये आहार द्रव्य प्रकृति से ही हितकारी होते है , ये किसी भी प्रकार से अहितकारी नही होते है ।

1 लाल शाली चावल
2 मुंग
3 आकाशीय जल
4 सैंधा नमक
5 जीवन्ति पत्र शाक
6 ऐनेय मृग मांस
7 लाव पक्षी का मांस
8 गोह का मन
9 रोहित मछली का मांस
10 गाय का घी
11 गाय का दूध
12 तिल का तैल
13 सूअर की चर्बी
14 चुलुकी मछली की चर्बी
15 पाक हंस की चर्बी
16 मुर्गे की चर्बी
17 बकरे की मेद
18 अदरक
19 मुनक्का
20 शर्करा
ये बीस आहार द्रव्य प्रकृति से ही हितकारी होते है ।

अहितकारक आहार कौनसे है ??

जो शरीर को हर हालत में हानि पहुचाये उनका स्वाभाविक गुण ही ऐसा हो , उनको प्रकृति ने ही इस प्रकार का बनाया है उन आहार द्रव्यों की सूचि महर्षि अग्निवेश इस प्रकार बनाई है ।

1 जौ
2 उड़द
3 वर्षा में नदी का पानी
4 औसर नमक
5 सरसो की सब्जी
6 गाय का मांस
7 काण कबूतर का माँस
8 मेंढक का माँस
9 चिलचिम मछली का माँस
10 भेड़ का घी
11 भेड का दूध
12 कौशुम्भी का तैल
13 भैस की चर्बी
14 चटक पक्षी का मांस
15 कौवे की चर्बी
16 चटक पक्षी की चर्बी
17 हाथी की चर्बी
18 आलू
19 लकुच
20 गन्ने की राब

इन दोनों सूचियों में अनाज, फल ,पशु ,पक्षी ,बिल में रहने वाले जीव, जल में रहने वाले जीव,कन्द, मूल , घी , दूध, आदि सभी प्रकार के आहार द्रव्यों का विवेचन किया गया है ।

हजारो वर्ष पहले लिखे गए आयुर्वेद ग्रंथो में आज भी यथावत काम आने वाली बाते लिखी गई है । इन सभी बातों को आम पब्लिक पहुचाने के लिए ही यह लेख लिखा गया है । जब यह लेख लिखने से पहले जब मैं इस संदर्भ में पढ़ रहा था तब कुछ लोगो से मैंने यह जिक्र किया था कि लोग गाय का मांस क्यों खाते है यह तो अहितकारी होता है तब एक बन्धु ने सुश्रुत संहिता का उल्लेख करते हुए लिखा था कि गाय के मांस वीर्य वर्धक और पुष्टिकारक होता है । उस वक्त मैंने उन महोदय को यह जबाव दिया था कि मदिरा भी हर्ष और आनन्द उत्पन्न करने वाली होती है । लेकिन क्या सच में वह ऐसा करने वाली है । शराब का स्वाभाविक गुण शरीर को नुकसान पहुचाना ही  है ।

इन द्रव्यों में भी बहुत गुण भी है लेकिन जो स्वभाविक गुण बताया गया है वह हितकारी और अहितकारी के दृष्टिकोण से बताया गया है । इति