Friday 29 December 2017

Monday 13 November 2017

हल्दी (Turmeric )


परिचय
रसोई घर में प्रयोग होने वाले मशालों में हल्दी अपना विशिष्ट स्थान रखती है ।यह कन्द रूप में पाई जाती है । जीवन में इसका बहुत ही उपयोग बताया गया है । हल्दी के बिना कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होते है । हिन्दू धर्म में हल्दी को शादी विवाह में बहुत ही महत्व दिया जाता है । कई कार्यक्रम तो हल्दी के नाम से ही जाने जाते है जैसे हल्दी बान ।

सौंदर्य प्रसाधनो में भी इसका प्रयोग किया जाता है । उबटन बनाने , फेस पैक बनाने आदि में यह प्रयोग की जाती है ।

मशाले के अलावा कच्ची हल्दी की सब्जी भी बनाई जाती है । जब तेज सर्दी पड़ती है तब मारवाड़ राजस्थान में हल्दी की गोठ बहुत ही फेमस रहती है । जिसमे हल्दी की सब्जी और मक्की की रोटी का संयोग बहुत ही आनन्द प्रदान करने वाला होता हैं ।

हल्दी की कई प्रकार की होती है जिनमे चार प्रकार की हल्दी अलग अलग नाम और काम से जानी जाती है ।

1 सामान्य हल्दी :- यह हल्दी मशाले के रूप में काम में आती है जोकि प्रत्येक घर में मिल जाती है ।

2 आमाहल्दी :- इसके कंद और पत्तो में कपुर मिश्रित आम की खुश्बू आती है । इसलिए इसे आमाहल्दी ( mango ginger) कहते है ।

3. जंगली हल्दी :- यह बंगाल में पाई जाती है । यह रँगने के काम आती है ।

4 दारुहल्दी :- यह सामान्य हल्दी के समान गुण वाली होती है । इसके क्वाथ में बराबर का दूध डालकर पकाते है । जब वह चतुर्थांश रहकर गाढ़ा हो जाता है तब उसे उतार लेते है । इसी को रसांजन या रसौत कहते है । यह नेत्रो के लिए परम हितकारी है ।

आयुर्वेदीय उपयोग :-

आयुर्वेद के ग्रन्थों के अनुसार यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण औषधी है । यह उष्ण वीर्य होती है । जिसके कारण यह कफवात शामक , पित्त रेचक, तथा वेदना स्थापन है ।
प्रमेह के लिए यह श्रेठ दवा है ।
यह रूचि वर्धक एवं रक्त स्तंभक है ।
इसका प्रयोग रक्त विकार , कफ विकार, अतिसार, जुखाम, डाइबिटीज, और चर्मरोग में भी किया जाता है ।

Wednesday 4 October 2017

डर ( FEAR ) लगना क्या कोई रोग है ?

हम रोज एक बात सुनते है "डर के आगे जीत है" यानि जीत हासिल करने के लिए डर से पार जाना पड़ेगा । अब विचार इस बात का है कि क्या डर अपने शारीरिक और मानसिक विकास में बाधक है ? क्या हम इस डर के कारण आगे नही बढ़ पा रहे है ? क्या यह डर कोई रोग है ? यह बाते रोज दिमाग में आती है । सभी लोगो के दिमाग में आती होंगी । क्योकि संसार में ऐसा कोई विरला ही होगा जिसे डर नही लगता होगा । भय लगना यानि डर लगना एक आम बात है । इस संसार में बहुत ही कम लोग होंगे जिन्हें डर नही लगता है ।


क्या है डर ?
डर एक प्रकार का मानसिक रोग है यह मन में उठने वाली तरंग है । इसे भय भी कहते है । भय से पूरा शरीर पसीने पसीने हो जाता है । हाथ पैर कांपने लगते है । या सुन्न पड़ जाते है । सभी लोग डरते है , किसी किसी को डर के मारे पेसाब निकल जाता है । कई लोग बिस्तर में भी पिसाब कर देते है ।
किस बात से लगता है डर ?
यह डर प्रत्येक व्यक्ति में अलग अलग हो सकता है । किसी किसी को कई प्रकार से डर लगता है । कभी व्यक्ति भविष्य से डरता है । कभी अकेलेपन का डर लगता है । कभी अस्थिरता का डर सताता रहता है । मन में कोई ना कोई डर छाया ही रहता है । कोई कुछ कह देगा , लोग क्या कहेंगे, कभी बीमार ना हो जाऊं, किसी से झगड़ा ना हो जाये , किसी गलती के कारण पकड़ा न जाऊ , इनकम टैक्स , आदि बहुत से विचार सारे दिन आते ही रहते है । भूत - प्रेत का भी डर लगता है । बदनामी, गरीबी, आतंक, हारने का डर, जीत को बरक़रार रखने का डर । बहुत प्रकार के डर है जो हमे परेशान करते है ।
डर क्यों लगता है ?
आयुर्वेद ग्रंथो में मानसिक रोगों का कारण रज और तम गुण को माना है । जब शरीर में सत्व गुण की कमी हो जाती है तब शरीर में यह भय रूपी रोग उत्पन्न  होता है । भगवान श्री कृष्ण ने गीता में भी कहा है "निर्भयम सत्त्वं संशुद्धि" अर्थात जब शरीर में सत्व की प्रबलता हो जाती है तो मनुष्य निर्भय (भय हीन, डर रहित) हो जाता है । इसलिए यह कहा जा सकता है कि रजोगुण, और तमोगुण इस रोग के कारण है । जब भय प्रारम्भ होता है जिससे वायु और पित्त की वृद्दि हो जाती है जिससे पसीने छूटना और घबराहट होना आदि लक्षण दिखाई देते है ।
एक कारण यह हो सकता है कि हमारे अंदर बैठे परमात्मा को जब हम भूल जाते है ।तो वह एक संदेश देता है कि आप कुछ गलत कर रहे हो । जिस प्रकार मोबाईल लेपटॉप आदि यंत्र सन्देश देते है जब हम कुछ गलत बटन दबा देते है तो you are doing some thing wrong. मतलब आप कुछ गलत कर रहे है । बिलकुल इसी तरह हमारे शरीर रूपी इस यंत्र में जब कुछ गलत होता है तो भय लगता है ।
हम गलत मार्ग पर चलते है तो दिल धड़क उठता है । भय उत्पन्न होने लगता है । कुछ शारिरिक या मानसिक गलतियां करते है तो भय उत्पन्न होने लगता है ।
गलत नहीं करते तो भय नही लगता है । ज्ञान के अभाव में डर लगता है । अंधकार ही भय उत्पन्न करता है । तीन शारीरिक दोष वात, पित्त, और कफ । दो मानसिक दोष रज और तम ये ही  रोग कारक है । सत्व से कभी भी रोग नही होता है ।
डर से कैसे बचें ? उपाय :-
हम ऐसा क्या करे कि डर ना लगे ? इस सवाल के जबाव में यही कहा जा सकता है कि अपने शरीर में सत्व गुण की प्रबलता विकसित करनी चाहिए ।
गलत काम करने से अपने आपको बचाना चाहिए ।
सत्संग को बढ़ाना चाहिए ।
प्रकृति और परमात्मा पर भरोसा रखना चाहिए ।

Saturday 30 September 2017

पाईल्स की दवा :- अगस्त्य हरीतकी

परिचय :-

यह हरड़ के द्वारा बनाई गई एक बहुत ही महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक औषधि है । जैसा कि हम जानते है हरड़ शरीर में कभी भी कोई साइड इफेक्ट नही करता है और जो शरीर में  विजातीय द्रव्य (कीटोन बॉडी)  होते है उन्हें बाहर निकाल कर शरीर के प्रत्येक अंग की क्रियाशीलता को व्यवस्थित करता है।

औषध द्रव्य :-

(1)मुख्य द्रव्य :-

बड़ी हरड़ 100 नग, जौ चार सेर, दशमूल सवा सेर, चित्रक, पिपला मूल, अपामार्ग, कपूर, कौंच के बीज, शंख पुष्पी, भारंगी, गज पीपल, खरैटी और पुष्कर मूल, प्रत्येक 10 - 10 तोला,

(2)अन्य द्रव्य :-

घृत 40 तोला, तेल 40 तोला, गुड़ सवा छः सेर ।

(3) प्रक्षेप द्रव्य :-

मधु 40 तोला, पिपली चूर्ण 20 तोला ।

बनाने की विधि :-

अगस्त्य हरीतकी नाम से यह दवा बाजार में आयुर्वेदिक स्टोर्स पर आराम से मिल जाती है । फिर भी जिन लोगो को घर पर ही यह दवा बनानी हो तो उनके लिए यह विधि शास्त्रों में बताई गई है ।

बड़ी हरड़ (हरीतकी) और जौ को एक पोटली में बांधे, और बाक़ी द्रव्यों को मिलाकर अधकुटा करके एक मन(लगभग 40 लीटर)  पानी में पकावे, तथा इसी में उक्त पोटली रख दें ।

जब हरड़ और जौ उबल जाये तथा क्वाथ तैयार हो जाए तो उतार ले । इस क्वाथ को छान कर इसमें उबाली हुई हरीतकी को मिलावे । फिर इसमें घृत और तेल 40-40 तोला तथा गुड़ सवा सेर पकावें ।

अवलेह सिद्ध होने पर या ठंडा होने पर मधु (शहद) 40 तोला और पिपली चूर्ण 20 तोला मिलाकर सुरक्षित रख लें ।

गुण और उपयोग :-

इसके सेवन से पाईल्स(अर्श), दमा(अस्थमा), क्षय(टी बी), खांसी, ज्वर, अरुचि, आदि रोगों का नाश करती है । कफ का नाश करने वाली होने के कारण दमा, खांसी, श्वास, यक्ष्मा,आदि में बहुत लाभ करती है ।

पाईल्स में है विशेष उपयोगी :-

अगस्त्य हरीतकी मृदु विरेचक है , इसलिए अर्श (बवासीर, पाईल्स) वाले को विशेष लाभ करती है । पाईल्स रोग अमूमन कब्ज होने से होता है और अगस्त्य हरीतकी विरेचक औषधि है यह कब्ज को दूर कर देती है । यदि ज्यादा कब्ज हो तो गर्म जल के साथ सेवन करने से एक दो दस्त साफ़ हो जाते है । इससे न तो पेट में मरोड़ होती है और न ही किसी प्रकार की तकलीफ होती है । अधिक दिनों तक इसका सेवन करने से किसी भी प्रकार की कोई तकलीफ और साइड इफेक्ट नही होते है । इसका सेवन लगभग दो से तीन माह तक करना चाहिए । यह अपना पूर्ण असर लगातार लम्बे समय तक लेने से ही स्थाई दिखा पाती है ।

सावधानियां :-

यह बहुत ही अच्छी और महत्वपूर्ण औषधि है और इसका कोई भी साइड इफेक्ट नही होता है , फिर भी यदि कोई अन्य रोग से ग्रसित व्यक्ति यह दवा लेता है तो उसे अपने चिकित्सक से परामर्श लेकर ही यह दवा लेनी चाहिए ।

Sunday 24 September 2017

Ayurvedic kadha आयुर्वेदिक काढ़ा

काढा क्या है ?

आयुर्वेद चिकित्सा में प्रयुक्त होने वाली एक औषध व्यव्स्था का रूप होता है काढ़ा । काढ़े को क्वाथ ,कषाय आदि नामो से भी जाना जाता है । यह दवा स्वतंत्र रूप से भी काम में ली जाती है तथा कुछ रोगों में अन्य औषधि के अनुपान रूप में भी काम में ली जाती है ।
काढ़े का प्रयोग वैदिक काल से किया जा रहा है । यह अनेक प्रकार की अलग अलग औषधियों को मिलाकर तैयार कर तत्काल ही काम में ली जाने वाली औषधि है । आजकल कई आयुर्वेदिक फार्मेसियां इस औषधि को तैयार कर बन्द बोतल में प्रिजर्व करके भी बेचती है ।
इन दिनों मौसमी बीमारियों की रोकथाम के रूप में बहुतायत में कुछ रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवा को संग्रहित कर आयुर्वेद विभाग द्वारा आमजनता को यह काढा पिलाया जा रहा है ।
कैसे बनाते है काढ़ा
काढा बनाने की बहुत ही सरल विधि है । जिस प्रकार घर में चाय बनाते है उसी के समान काढा बनाने की प्रक्रिया भी होती है । इसमें कुछ मात्रा और समय का ध्यान रखते हुए यह औषधि तैयार की जाती है ।
मात्रा के लिए शास्त्रों में लिखा है कि एक तोला क्वाथ की औषधि को जौ कूट (मोटा चूर्ण) करके मिट्टी अथवा कलईदार बर्तन में सोलह गुने पानी में मन्द अग्नि पर पकावे । जब चौथाई पानी शेष रहे , तब कपडे से छान , सुखोष्ण ( थोड़ा गरम गरम )पिलावे ।
सावधानी :-
क्वाथ बनाते समय बर्तन का मुँह खुला रहना चाहिए । ढक देने से काढ़ा भारी (दुष्पाच्य)हो जाता है ।
काढ़े को मिट्टी के कोरे (नए) बर्तन में बनाना चाहिए या फिर कोई साफ मजबूत बर्तन जिसमे कलई  की हुई हो ऐसे बर्तन में काढ़ा बनाना चाहिए ।
काढ़ा बनाने के बाद उसे ज्यादा देर तक नही रखना चाहिए । तत्काल ही काम में लें लेना चाहिए ।
काढ़ा के प्रकार
आयुर्वेद में काढ़ा रोगानुसार औषधियों को इकठ्ठा करके बनाया जाता है ।
कुछ रोगानुसार काढ़ो को नाम यहां लिखा जा रहा है ।
कब्ज को दूर करने के लिए :- अभयादि क्वाथ
गुर्दे की पथरी में :- अश्मरी हर कषाय
बुखार में :- अमृताष्टक क्वाथ
पुरानी कब्ज में :- आरग्वधादि क्वाथ
जुखाम में :- गुल वनप्सादि, गौजिव्यादि क्वाथ
और भी बहुत क्वाथ है जिनमे
दस मूल क्वाथ
जन्म घुट्टी क्वाथ
त्रिफलादि क्वाथ
धान्य पंचक क्वाथ
पथ्यादि क्वाथ
मधुकादि हिम क्वाथ
ये सभी क्वाथ आयुर्वेद विभाग द्वारा संचालित औषधालयों में मुफ्त में मिलते है । और बहुत ही कारगर भी होते है ।
क्या है रोगप्रतिरोधक काढ़ा :-
आयुर्वेद ग्रन्थों में कुछ द्रव्यो का वर्णन मिलता है जिन्हें रसायन द्रव्य कहा जाता है जिनमे गिलोय , आंवला , हरीतकी , खजूर, द्राक्षा , आदि है ।
इनके अलावा कुछ द्रव्य इस प्रकार के भी होते है जो त्रिदोषों को संतुलित करते है । जिनमे गावजवां, मुलेठी, खाकसीर, हंसराज, अलसी, खतमी की जड़ काली मिर्च, गौखरू आदि औषध द्रव्य है
जब दोष समावस्था में होते है तभी मानव स्वस्थ रहता है । मनुष्य को स्वस्थ रखने के उद्देश्य से यह औषधि व्यवस्था की गई है ।
रोग प्रतिरोधक काढ़े में इस प्रकार की औषधियों को मिलाकर तैयार किया गया है कि वह दोषो का संतुलन बनाये रखे और रसायन औषधियों के प्रभाव से रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती रहे है ।
"रसायनं बल वर्धनं"  रसायन बल की वृद्धि करता है ।
विषैली वायु और विषैला जल वर्षा ऋतु में रोगों को जन जन में फैला देता है । जब शरीर में कमजोरी आती है तो बाहरी जीवाणु और विषाणु अटेक करते है जिनके कारण स्वाइन फ्लू , डेंगू, चिकनगुनिया , मलेरिया, आदि रोग होने लगते है । जब शरीर में रोगो से लड़ने की क्षमता रहेगी तो यह सभी रोग होने की संभावना कम हो जाती है ।

Thursday 7 September 2017

हितकर आहार और अहितकर आहार

क्या है ? हितकर और अहितकर आहार ।
जो आहार समूह शरीरस्थ समधातुओ को प्रकृति में रखता है , अर्थात जो आहार समधातुओ को कम या ज्यादा नही होने देता और विषम ( घटे या बढ़े )धातुओं को सम कर देता है उसी को हित कारक आहार समझना चाहिए और इसके विपरीत कार्य करने वाले आहार को अहित कारक समझना चाहिए ।
आहार क्या है ?
"आह्रीयते (पोषणार्थं) इति आहारः" शरीर के पोषण के लिए जो द्रव्य( ठोस,द्रव) लिया जाये , वह आहार है ।
यह आहार छः रसों से युक्त प्राणियों के प्राणों की रक्षा करने वाला होता है । बल , वर्ण, औज आदि की वृद्वि करता है । शरीर को पृष्ठ और सौष्ठव युक्त बनाता है । लेकिन कई बार यही आहार प्राणियों के प्राण भी हर लेता है और संकट भी पैदा कर देता है । इसलिए सोच समझ कर ही आहार का सेवन करना चाहिए ।
क्या खाएं ? इस पर विचार करें ।
राजस्थानी में एक कहावत है "ऊंट छोड़े आक और बकरी छोड़े ढाक"  यानि जो रेगिस्थान का जहाज ऊंट है वह सब कुछ आहार को पचा जाता है लेकिन उसको भी एक आक नामक पौधे को छोड़ना पड़ता है क्योंकि वह उसके लिए अहित कारक है उसी प्रकार बकरी के लिए ढाक अहित कारक आहार है ।
इसी प्रकार मनुष्य शरीर में भी बहुत से आहार हितकारक होते है और कुछ आहार द्रव्य अहितकर भी होते है । किसी किसी आहार के संस्कार से उसे हितकर भी बनाया जा सकता है लेकिन कुछ आहार तो ऐसे होते है कि उनकी प्रकृति ही अहितकारी होती है ।
आहारो का विभाजन :-
सभी आहारों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है ।
1 स्थावर आहार :- जैसे गेहूं, चावल, जौ , चना , साग- सब्जी , शुक धान्य, शमी धान्य आदि ।
2 जंगम आहार :-  पशु पक्षियों का मांस।
कौनसे आहार हितकारी है ?
इस संदर्भ में एक बात सही लगती है कि
"कोई के बैंगन वायरा,कोई के बैंगन पच।
कोई के बैंगन बादी करीं, कोई के बैंगन पथ्य।।" 
किसी के बैंगन वायुकारक होते है किसी को बैगन हितकारी होते है । तो यह एक अजीब सी विडंबना है कि क्या किया जाये । इसी समस्या का आभास महर्षि अग्निवेश को भी था कि यह समस्या हो सकती है इसलिए उन्होंने बहुत ही सुन्दर तरीके से शौध करके कुछ आहार द्रव्यों की सूचि बनाई जो प्रकृति से ही हितकारी है उनका स्वभाव ही ऐसा है कि उन्हें कोई भी किसी भी तरीके से खाये वे शरीर में हमेशा हितकारी ही कार्य करेंगी ।
एक सूचि ऐसी भी बनाई की उनको आप कैसे भी खाए वे शारीर को अहित ही पहुचायेंगी । उनका स्वभाविक गुण अहितकारी ही है ।
पहले हितकारी आहार की बात करते है , जो प्राकृत रूप से शरीर में सभी दोषो को सम अवस्था में रखने का ही कार्य करते है इस प्रकार के आहार द्रव्यों की एक सूची इस प्रकार है ।
ये आहार द्रव्य प्रकृति से ही हितकारी होते है , ये किसी भी प्रकार से अहितकारी नही होते है ।
1 लाल शाली चावल
2 मुंग
3 आकाशीय जल
4 सैंधा नमक
5 जीवन्ति पत्र शाक
6 ऐनेय मृग मांस
7 लाव पक्षी का मांस
8 गोह का मन
9 रोहित मछली का मांस
10 गाय का घी
11 गाय का दूध
12 तिल का तैल
13 सूअर की चर्बी
14 चुलुकी मछली की चर्बी
15 पाक हंस की चर्बी
16 मुर्गे की चर्बी
17 बकरे की मेद
18 अदरक
19 मुनक्का
20 शर्करा
ये बीस आहार द्रव्य प्रकृति से ही हितकारी होते है ।
अहितकारक आहार कौनसे है ??
जो शरीर को हर हालत में हानि पहुचाये उनका स्वाभाविक गुण ही ऐसा हो , उनको प्रकृति ने ही इस प्रकार का बनाया है उन आहार द्रव्यों की सूचि महर्षि अग्निवेश ने इस प्रकार बनाई है ।
1 जौ
2 उड़द
3 वर्षा में नदी का पानी
4 औसर नमक
5 सरसो की सब्जी
6 गाय का मांस
7 काण कबूतर का माँस
8 मेंढक का माँस
9 चिलचिम मछली का माँस
10 भेड़ का घी
11 भेड का दूध
12 कौशुम्भी का तैल
13 भैस की चर्बी
14 चटक पक्षी का मांस
15 कौवे की चर्बी
16 चटक पक्षी की चर्बी
17 हाथी की चर्बी
18 आलू
19 लकुच
20 गन्ने की राब
इन दोनों सूचियों में अनाज, फल ,पशु ,पक्षी ,बिल में रहने वाले जीव, जल में रहने वाले जीव,कन्द, मूल , घी , दूध, आदि सभी प्रकार के आहार द्रव्यों का विवेचन किया गया है ।
हजारो वर्ष पहले लिखे गए आयुर्वेद ग्रंथो में आज भी यथावत काम आने वाली बाते लिखी गई है । इन सभी बातों को आम पब्लिक पहुचाने के लिए ही यह लेख लिखा गया है । जब यह लेख लिखने से पहले जब मैं इस संदर्भ में पढ़ रहा था तब कुछ लोगो से मैंने यह जिक्र किया था कि लोग गाय का मांस क्यों खाते है यह तो अहितकारी होता है तब एक बन्धु ने सुश्रुत संहिता का उल्लेख करते हुए लिखा था कि गाय के मांस वीर्य वर्धक और पुष्टिकारक होता है । उस वक्त मैंने उन महोदय को यह जबाव दिया था कि मदिरा भी हर्ष और आनन्द उत्पन्न करने वाली होती है । लेकिन क्या सच में वह ऐसा करने वाली है । शराब का स्वाभाविक गुण शरीर को नुकसान पहुचाना ही  है ।
इन द्रव्यों में भी बहुत गुण भी है लेकिन जो स्वभाविक गुण बताया गया है वह हितकारी और अहितकारी के दृष्टिकोण से बताया गया है । इति

हितकर आहार और अहितकर आहार

क्या है ? हितकर और अहितकर आहार ।

जो आहार समूह शरीरस्थ समधातुओ को प्रकृति में रखता है , अर्थात जो आहार समधातुओ को कम या ज्यादा नही होने देता और विषम ( घटे या बढ़े )धातुओं को सम कर देता है उसी को हित कारक आहार समझना चाहिए और इसके विपरीत कार्य करने वाले आहार को अहित कारक समझना चाहिए ।

आहार क्या है ?

"आह्रीयते (पोषणार्थं) इति आहारः" शरीर के पोषण के लिए जो द्रव्य( ठोस,द्रव) लिया जाये , वह आहार है ।

यह आहार छः रसों से युक्त प्राणियों के प्राणों की रक्षा करने वाला होता है । बल , वर्ण, औज आदि की वृद्वि करता है । शरीर को पृष्ठ और सौष्ठव युक्त बनाता है । लेकिन कई बार यही आहार प्राणियों के प्राण भी हर लेता है और संकट भी पैदा कर देता है । इसलिए सोच समझ कर ही आहार का सेवन करना चाहिए ।

क्या खाएं ? इस पर विचार करें ।

राजस्थानी में एक कहावत है "ऊंट छोड़े आक और बकरी छोड़े ढाक"  यानि जी रेगिस्थान का जहाज ऊंट है वह सब कुछ आहार को पचा जाता है लेकिन उसको भी एक आक नामक पौधे को छोड़ना पड़ता है क्योंकि वह उसके लिए अहित कारक है उसी प्रकार बकरी के लिए ढाक अहित कारक आहार है ।

इसी प्रकार मनुष्य शरीर में भी बहुत से आहार हितकारक होते है और कुछ आहार द्रव्य अहितकर भी होते है । किसी किसी आहार के संस्कार से उसे हितकर भी बनाया जा सकता है लेकिन कुछ आहार तो ऐसे होते है कि उनकी प्रकृति ही अहितकारी होती है ।

आहारो का विभाजन :-

सभी आहारों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है ।

1 स्थावर आहार :- जैसे गेहूं, चावल, जौ , चना , साग- सब्जी , शुक धान्य, शमी धान्य आदि ।

2 जंगम आहार :-  पशु पक्षियों का मांस।

कौनसे आहार हितकारी है ?

इस संदर्भ में एक बात सही लगती है कि

"कोई के बैंगन वायरा,कोई के बैंगन पच।
कोई के बैंगन बादी करीं, कोई के बैंगन पथ्य।।" 

किसी के बैंगन वायुकारक होते है किसी को बैगन हितकारी होते है । तो यह एक अजीब सी विडंबना है कि क्या किया जाये । इसी समस्या का आभास महर्षि अग्निवेश को भी था कि यह समस्या हो सकती है इसलिए उन्होंने बहुत ही सुन्दर तरीके से शौध करके कुछ आहार द्रव्यों की सूचि बनाई जो प्रकृति से ही हितकारी है उनका स्वभाव ही ऐसा है कि उन्हें कोई भी किसी भी तरीके से खाये वे शारीर में हमेशा हितकारी ही कार्य करेंगी ।

एक सूचि ऐसी भी बनाई की उनको आप कैसे भी खाए वे शारीर को अहित ही पहुचायेंगी । उनका स्वभाविक गुण अहितकारी ही है ।

पहले हितकारी आहार की बात करते है , जो प्राकृत रूप से शरीर में सभी दोषो को सम अवस्था में रखने का ही कार्य करते है इस प्रकार के आहार द्रव्यों की एक सूची इस प्रकार है ।

ये आहार द्रव्य प्रकृति से ही हितकारी होते है , ये किसी भी प्रकार से अहितकारी नही होते है ।

1 लाल शाली चावल
2 मुंग
3 आकाशीय जल
4 सैंधा नमक
5 जीवन्ति पत्र शाक
6 ऐनेय मृग मांस
7 लाव पक्षी का मांस
8 गोह का मन
9 रोहित मछली का मांस
10 गाय का घी
11 गाय का दूध
12 तिल का तैल
13 सूअर की चर्बी
14 चुलुकी मछली की चर्बी
15 पाक हंस की चर्बी
16 मुर्गे की चर्बी
17 बकरे की मेद
18 अदरक
19 मुनक्का
20 शर्करा
ये बीस आहार द्रव्य प्रकृति से ही हितकारी होते है ।

अहितकारक आहार कौनसे है ??

जो शरीर को हर हालत में हानि पहुचाये उनका स्वाभाविक गुण ही ऐसा हो , उनको प्रकृति ने ही इस प्रकार का बनाया है उन आहार द्रव्यों की सूचि महर्षि अग्निवेश इस प्रकार बनाई है ।

1 जौ
2 उड़द
3 वर्षा में नदी का पानी
4 औसर नमक
5 सरसो की सब्जी
6 गाय का मांस
7 काण कबूतर का माँस
8 मेंढक का माँस
9 चिलचिम मछली का माँस
10 भेड़ का घी
11 भेड का दूध
12 कौशुम्भी का तैल
13 भैस की चर्बी
14 चटक पक्षी का मांस
15 कौवे की चर्बी
16 चटक पक्षी की चर्बी
17 हाथी की चर्बी
18 आलू
19 लकुच
20 गन्ने की राब

इन दोनों सूचियों में अनाज, फल ,पशु ,पक्षी ,बिल में रहने वाले जीव, जल में रहने वाले जीव,कन्द, मूल , घी , दूध, आदि सभी प्रकार के आहार द्रव्यों का विवेचन किया गया है ।

हजारो वर्ष पहले लिखे गए आयुर्वेद ग्रंथो में आज भी यथावत काम आने वाली बाते लिखी गई है । इन सभी बातों को आम पब्लिक पहुचाने के लिए ही यह लेख लिखा गया है । जब यह लेख लिखने से पहले जब मैं इस संदर्भ में पढ़ रहा था तब कुछ लोगो से मैंने यह जिक्र किया था कि लोग गाय का मांस क्यों खाते है यह तो अहितकारी होता है तब एक बन्धु ने सुश्रुत संहिता का उल्लेख करते हुए लिखा था कि गाय के मांस वीर्य वर्धक और पुष्टिकारक होता है । उस वक्त मैंने उन महोदय को यह जबाव दिया था कि मदिरा भी हर्ष और आनन्द उत्पन्न करने वाली होती है । लेकिन क्या सच में वह ऐसा करने वाली है । शराब का स्वाभाविक गुण शरीर को नुकसान पहुचाना ही  है ।

इन द्रव्यों में भी बहुत गुण भी है लेकिन जो स्वभाविक गुण बताया गया है वह हितकारी और अहितकारी के दृष्टिकोण से बताया गया है । इति


Sunday 30 July 2017

सिरदर्द या शिरः शूल (HEAD ACHE)

क्या होता है सिरदर्द ?

किसी भी रोग में वह रोग संक्रामक हो या दोषज, उनमे सिर दर्द एक सामान्य और महत्वपूर्ण लक्षण के रूप में दिखने वाला रोग है । कोमल प्रकृति के मनुष्य में शारीर में होने वाली किसी भी प्रकार की विकृति से यह रोग उत्पन्न हो सकता है। किसी किसी को हल्का तनाव होने पर भी यह रोग आक्रांत कर लेता है । रक्तदाब के बढ़ने या घटने से माथे (fore head) पर होने वाली तीव्र पीड़ा को सिरदर्द कहते है ।

क्या कारण होते है ?

प्राणाः प्राण भृतां यत्र श्रिताः सर्वेंद्रियानी च ।
यदुत्तमं$मगानां     शिरः तद्भिधीयते ।। च.सु.

जिसमे प्राणियों के प्राण आश्रित रहते है , सभी ज्ञानेन्द्रियाँ जहाँ रहती है और जो शरीर के सभी अंगों में उत्तम अंग है वही शिर कहलाता है ।

इसमें कोई भी रोग की उत्त्पति हो वह सामान्य सी हो या बड़ी हो तो यह एक प्रकार से संकेत देने लगता है । इसमें कुछ गड़बड़ी का अहसास दिलाने की क्षमता प्राकृतिक रूप  से है और यही कारण है जब विकृति होती है तो यह गर्म होकर दर्द करने लग जाता है ।

जब सिरदर्द के कारणों की बात करते है इसके कारणों में सामान्य से लेकर भयंकर कारणों की जानकारी मिलती है ।

रक्तचाप के बढ़ने और घटने से दोनों समय सिरदर्द हो सकता है।

रक्त में विषाणु और जीवाणु के इन्फेक्शन से यह लक्षण प्रकट हो जाते है ।

ज्यादा बोलने , जोर से बोलने ,क्रोध करने , चिंता करने और तेज या लगातार हंसने से भी यह रोग हो जाता है ।
नींद न आने पर यह बहुत लोगो को होते देखा जाता है ।कई बड़े रोगों के कारण भी लोगो में सिरदर्द देखने को मिलता है

जैसे :-
आंधाशीशी Migraine
प्रतिश्याय Coryza
अंनत शूल Trigeminal Neuralgia
सूर्यावर्त शूल Supar Orbital Neuralgia
शिरो भ्रम Vertigo
मस्तिष्कार्बुद Intra Cranial Tumours
मस्तिष्क विद्रधि Brain Abscess
शिरोभिघात Head Injuries

क्या कहता है आयुर्वेद ?

आयुर्वेद मतानुसार सभी ऋषियों के अलग अलग मत है ।
आचार्य चरक लिखते है कि शिरोरोग के पांच ही प्रकार है और इन्ही कारणों से यह रोग उत्पन्न होता है ।
वातज, पित्तज, कफज, सन्निपातज, और कृमिज ।

आचार्य सुश्रुत ने 11 प्रकार बताये है और आचार्य वाग्भट्ट 10 प्रकार बताते है ।

आयुर्वेद ग्रन्थों में शारीरिक चिकित्सा में चरक संहिता का ही बड़ा नाम है सुश्रुत शल्य के लिए और वाग्भट निदान के लिए प्रसिद्द है ।

आयुर्वेद ग्रंथो में सभी शिरो रोगो के कारण निम्नानुसार बताये है ।

शिरः रोग के प्रमुख कारण :-

1 अधारणीय वेगो को रोकने से ।
2 दिन में सोने और रात में जागने से ।
3 नशीली वस्तु के सेवन से ।
4 जोर जोर से बोलने पर ।
5 औंस में सोने से ।
6 हवा के वेग के सामने आने से ।
7 अधिक मैथुन करने से ।
8 अप्रिय और उग्र गन्ध से ।
9 धुली, धुआँ, बर्फ, और धूप के आघात से ।
10 गुरू, अम्ल, हरित ( अदरक, मिर्च) , पदार्थो के सेवन ।
11 अत्यंत शीतल जल के सेवन से ।
12 शिर पर चोट लगने से
13 पूर्व भोजन के पचने से पहले दुबारा भोजन करने से
14 रोने से भी और आसुंओ को रोकने से भी ।
15 बादलो के छा जाने से ।
16 मानसिक तनाव से ।

इन उपरोक्त कारणों से शरीर में वायु प्रकुपित होकर शिरः शूल और अन्य शिरो रोगों को उत्पन्न कर देती है ।

आचार्य अग्निवेश चरक संहिता में इसका वर्णन इस प्रकार करते है ।
"वातादयः प्रकुप्यन्ति शिरस्यस्रम च कुप्यन्ति ।
ततः शिरसि जायन्ते रोगा विविध लक्षणा ।।" च.सु.

बचाव :- शिरः शूल से कैसे बचा जाए ?

शिरः शूल से बचने के लिए ऊपर कहे गए कारणों से बचना चाहिए । अपने कर्तव्यों की पालना सही समय पर करनी चाहिए ।

उपचार :-

सामान्य उपाय :-

1 रोग के मूल कारण को दूर करे ।
2 रोगी को अजीर्ण से बचाये ।
3 मलावरोध न रहे ।

विशेष उपाय :-

विशेष उपाय में सिरदर्द के मूल कारण की चिकित्सा औषधि व्यवस्था करवा कर करनी चाहिए । जिस प्रकार का रोग हो उसकी उसी प्रकार से योग्य चिकित्सक से चिकित्सा करवानी चाहिए ।

Thursday 13 July 2017

मोटा होने की दवा (Health improve medicine)

आजकल हेल्थ बनाने का माहौल बना हुआ हैं, सभी लोग अपनी हेल्थ बनाने में लगे हुए है कोई योग कर रहा है कोई जिम में जाता है किसी को घूमने का चस्का लगा हुआ है । यह बहुत ही अच्छी बात है । अपनी सेहत का ख्याल हमेशा ही रखना चाहिए । अपनी सेहत लाख नियामत कहा जाता है ।

निरोगी रहना बहुत ही अच्छा विचार है और इनके लिए किये गए कार्य बहुत ही सही रहते है । लेकिन कुछ लोग सेहत के नाम पर सिर्फ वजन बढ़ाना ही मानते है । वे लोग यह सोचते है कि हेल्थी का मतलब मोटा तगड़ा शरीर होना ही है । और मोटे होने के लिए किसी भी प्रकार की दवा का प्रयोग कर लेते है ।आजकल बाजार में तरह तरह के पाउडर मिलते है ये पाउडर बेचने वाले तरह तरह के दावे करते है । सुन्दर और आकर्षक डिब्बो में बंद यह दवा कही भी आराम से उपलब्ध हो जाती है लेकिन यह कभी नही भुलना चाहिए कि जिस प्रकार  डिब्बा बंद खाना (जंक फूड) खतरनाक होता है  उसी प्रकार डिब्बा बन्द मोटे होने की दवा भी खतरनाक हो सकती है ।

मेरे पास काफी लोग आते है जिनको यह रहता है कि मैं बिना किसी मेहनत के अपना शरीर निरोगी बना लूँ । कोई इस प्रकार की दवा मिल जाये जिससे मेरी देह फूल जाये और मैं मोटा दिखने लगूँ ।

मैं ऐसे मरीजो को साफ मना कर सकता हूँ लेकिन नही उन्हें साफ मना करने से वे किसी और जगह पर जायेंगे और कोई न कोई उनको लूटने वाले मिल जाएंगे और उनसे धन भी ले लेंगे और शरीर का नाश भी कर देंगे ।

ऐसे मरीजो को मै बहुत प्यार से समझाता हूँ क़ि आप लोगो को यदि शरीर को मात्र फूलाना है तो आपको मेरे पास निराश ही होना पड़ेगा लेकिन यदि शरीर को फौलादी बनाना है तो मेरे पास दवा है । मेरे साथ मरीजो से लगभग इस प्रकार की बाते रोजाना होती है । मोटे होने की दवा के बारे कुछ वार्तालाप के अंश यहां भी प्रस्तुत है । पढ़ें :--

मरीज कहता है :- हमने तो सूना है कि आप शरीर फूलने की दवा देते है ?

डॉक्टर : -  आपने गलत सुना है मै तो शरीर को स्वस्थ करने तथा जो हम भोजन करते है उसका रस बने इस प्रकार की दवा देता हूँ । जब हम स्वस्थ रहते है और जो कुछ खाते है वह यदि शरीर को लग जाता है तो शरीर फूलता नही है मजबूत होकर मोटा फौलादी हो जाता है ।

मरीज बोला :- इसमें क्या अंतर है ? फूलना और मोटा होना दोनों एक ही तो बात है ।

डॉक्टर  :- अमूमन जो दवा बाजार में मिलती है वे सिर्फ भूख बढ़ाती है और ज्यादा खाने से शरीर में फुलावट आ जाती है । कई लोग तो बियर पीकर भी अपना शरीर फूला ही लेते है फिर दवा और दारू में क्या अंतर हुआ । कुछ लोग एलोपैथी की स्टोरॉइड दवा खाकर भी शरीर फुला लेते है । लेकन यह स्थिर नही रहता । यह बढा हुआ वजन कुछ दिन बाद वापिस कम हो जाता है ।

मरीज :- आप जो दवा देते है क्या उससे जो वजन बढ़ता है वह कम नही होता ??

डॉक्टर  :- जो दवा मै देता हूं यदि उस दवा का पूरा कोर्स जो की चार महीने का होता है पुरे परहेज के साथ ले लिया जाये तो फिर वजन कम ज्यादा होता रहता है लेकिन वापिस पूर्व की स्थिति में कम नही होता है ।

मरीज :- चार महीने तो बहुत ज्यादा है । इतने महीने में तो वजन बहुत बढ़ जाएगा ।

डॉक्टर  :- यह दवा वजन बढ़ाने के लिए नही है । यह बात आपको पहले भी बता चुका हूँ । इससे पाचन क्षमता बढ़ जाती है और  जो कुछ भी हम खाते है उसका रस बनता है और  उससे वजन भी बढ़ता है तो जितनी शरीर को जरूरत है लंबाई के अकॉर्डिंग वजन बढ़ता है । और यह काम जल्दी का नही है । इसलिए चार महीने दवा लेनी पड़ती है ।
आयुर्वेद ग्रंथो में बहुत सी दवा है जिससे शरीर की क्रिया सही मार्ग पर चलने लगेगी । शरीर निरोग रहेगा तो वजन और सेहत दोनों अच्छी होने लगेंगी । काम करने में मन लगने लगेगा ।

मरीज :- तब तो यह कोर्स बहुत महंगा पड़ता होगा ??

डॉक्टर :- नही । यह कोर्स बहुत महंगा नही है । वैसे भी यदि हेल्थ बनानी हो तो पैसो की तरफ नही देखना चाहिए ।क्योंकि दवा से ज्याद तो भोजन की खुराक पर खर्च होने वाले है । हा हा हा...

इस प्रकार की बाते करके बहुत लोग अपना संशय दूर करते है और मै तो कहता हूँ क़ि संशय दूर करना भी चाहिए । दवा से आज तक पूरे हिंदुस्तान करीब पांच हजार लोगो ने लाभ उठाया है । फोन पर भी लोग सलाह मशविरा करते है । ईमेल भी करते है । 17 से 50 साल तक के सभी स्त्री पुरुषों के लिए यह दवा बहुत ही कारगर साबित हो रही है ।

इस दवा के सेवन के बाद मेरे पास बहुत लोगो के धन्यवाद स्वरूप फोन आते है लोग कहते है कि हमारे अंदर अंदरूनी शक्ति का भी इजाफा हुआ है कई बहिन बेटियां जो स्वेत् प्रदर जैसे रोग से ग्रसित थी वो ठीक हुई है ।

यह दवा राजस्थान के आलावा बेंगलोर ,मुम्बई, सूरत , अहदाबाद , चैन्नई, जैसे बड़े शहरो के लोगो को भी मेरे द्वारा भेजी गई है । मैं उन सभी लोगो से निवेदन करना चाहूंगा जिन्होंने मेरे से यह ट्रीटमेंट लिया है वे लोग इस पोस्ट को पढ़े तो अपने कॉमेंट जरूर लिखे । जिससे तुम्हारे जैसे और भी कई साथी इस आयुर्वेद अमृत का फायदा उठा सके ।

Friday 16 June 2017

योग से लाभ

योग हमारे जीवन का एक भाग होना चाहिए । योग एक ऐसी क्रिया है जिससे हम स्वस्थ तो रहते ही है साथ ही साथ सकारात्मक भी रहते है । यह योग आयुर्वेद चिकित्सा का ही एक हिस्सा है । जिस प्रकार हम नियमित रूप से आयुर्वेद को जीवन में उतार चुके है उसी प्रकार अब योग को भी जीवन में उतार लेने से हमारा जीवन सुखमय बन जाएगा ।

योग से क्या लाभ होता है ?
जब हम योग को जानने लगते है तब हमें आभास होता है कि हमारा जीवन कितना अनमोल है कितना सुन्दर है और यह प्रकृति कितनी सुन्दर है ।
यह सब आभास होते ही मन में एक सकारात्मकता आ जाती है । अतः यह कहा जा सकता है कि योग से जीवन सकारात्मक होता है । किसी भी प्रकार की कोई शिकायत जीवन में किसी के प्रति भी नही रहती है । आत्महत्या जैसे भयानक कदम उठाने से बचा जा सकता है । नियमित योग करने से जीवन सुन्दर बन जाता है ।
योग को जान लेना और फिर सभी प्रकार के आसनो का अभ्यास करने से शरीर मजबूत होता है । शारीरिक क्षमता बढ़ती है । मन प्रशन्न रहता है कार्य करने की इच्छा बढ़ जाती है । इसी प्रकार योग हमे शारीरिक रूप से मजबूत बनाता है ।
योग के आठ अंगो में एक अंग ध्यान है नियमित रूप से ध्यान का अभ्यास करने से शरीर की सभी क्रिया एक रूप हो जाती है एकाग्रता बढ़ जाती है जिससे बुद्धि और स्मृति की वृद्धि हो जाती है । जिन लोगो को भूलने की आदत हो या जिन लोगो को नींद नही आती हो ऐसे लोगो को यह योग अवश्य करना चाहिए । विद्यार्थियों को भी यह अभ्यास करना चाहिए ।
योग से हम धन सम्पन्न भी हो सकते है । कैसे ??
हम यदि नियमित योग करते है तो हम बीमार नही होंगे । यदि बीमार नही होंगे तो जो धन दवा के लिए खर्च होता था वह बच जायेगा । साथ ही योग से कार्य क्षमता भी बढ़ जाती है । अतः ज्यादा काम करने से ज्यादा धन आएगा । योग से स्किल डवलपमेंट भी होता है । अपने अंदर की जो कार्य कुशलता है उसका विकाश होगा उससे भी हमे धन की प्राप्ति होगी । इसलिए कह सकते है कि योग से धन सम्पन्न बना जा सकता है ।
योग करने से समाज में प्रतिष्ठा बढ़ जाती है । क्योंकि योग से चरित्र का निर्माण होता है । और चरित्रवान व्यक्ति सभी जगह पूजनीय होता है ।
योग से मोक्ष की प्राप्ति भी होती है
जीवन का लक्ष्य मोक्ष है और जब हम पूर्णतः योग से जुड़ जाते है तो सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त होते जाते है और सभी प्रकार के डर भय भी समाप्त हो जाते है ।यह अवस्था ही है जो गीता में लिखे श्लोक को सार्थक करती है "निर्भयम सत्त्वं संशुद्धि" और शायद  इसी को ही मोक्ष कहते है ।