Friday 29 December 2017
Sunday 17 December 2017
Wednesday 13 December 2017
Thursday 7 December 2017
Monday 13 November 2017
हल्दी (Turmeric )
परिचय
रसोई घर में प्रयोग होने वाले मशालों में हल्दी अपना विशिष्ट स्थान रखती है ।यह कन्द रूप में पाई जाती है । जीवन में इसका बहुत ही उपयोग बताया गया है । हल्दी के बिना कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होते है । हिन्दू धर्म में हल्दी को शादी विवाह में बहुत ही महत्व दिया जाता है । कई कार्यक्रम तो हल्दी के नाम से ही जाने जाते है जैसे हल्दी बान ।
सौंदर्य प्रसाधनो में भी इसका प्रयोग किया जाता है । उबटन बनाने , फेस पैक बनाने आदि में यह प्रयोग की जाती है ।
मशाले के अलावा कच्ची हल्दी की सब्जी भी बनाई जाती है । जब तेज सर्दी पड़ती है तब मारवाड़ राजस्थान में हल्दी की गोठ बहुत ही फेमस रहती है । जिसमे हल्दी की सब्जी और मक्की की रोटी का संयोग बहुत ही आनन्द प्रदान करने वाला होता हैं ।
हल्दी की कई प्रकार की होती है जिनमे चार प्रकार की हल्दी अलग अलग नाम और काम से जानी जाती है ।
1 सामान्य हल्दी :- यह हल्दी मशाले के रूप में काम में आती है जोकि प्रत्येक घर में मिल जाती है ।
2 आमाहल्दी :- इसके कंद और पत्तो में कपुर मिश्रित आम की खुश्बू आती है । इसलिए इसे आमाहल्दी ( mango ginger) कहते है ।
3. जंगली हल्दी :- यह बंगाल में पाई जाती है । यह रँगने के काम आती है ।
4 दारुहल्दी :- यह सामान्य हल्दी के समान गुण वाली होती है । इसके क्वाथ में बराबर का दूध डालकर पकाते है । जब वह चतुर्थांश रहकर गाढ़ा हो जाता है तब उसे उतार लेते है । इसी को रसांजन या रसौत कहते है । यह नेत्रो के लिए परम हितकारी है ।
आयुर्वेदीय उपयोग :-
आयुर्वेद के ग्रन्थों के अनुसार यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण औषधी है । यह उष्ण वीर्य होती है । जिसके कारण यह कफवात शामक , पित्त रेचक, तथा वेदना स्थापन है ।
प्रमेह के लिए यह श्रेठ दवा है ।
यह रूचि वर्धक एवं रक्त स्तंभक है ।
इसका प्रयोग रक्त विकार , कफ विकार, अतिसार, जुखाम, डाइबिटीज, और चर्मरोग में भी किया जाता है ।
Wednesday 4 October 2017
डर ( FEAR ) लगना क्या कोई रोग है ?
गलत काम करने से अपने आपको बचाना चाहिए ।
सत्संग को बढ़ाना चाहिए ।
प्रकृति और परमात्मा पर भरोसा रखना चाहिए ।
Saturday 30 September 2017
पाईल्स की दवा :- अगस्त्य हरीतकी
परिचय :-
यह हरड़ के द्वारा बनाई गई एक बहुत ही महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक औषधि है । जैसा कि हम जानते है हरड़ शरीर में कभी भी कोई साइड इफेक्ट नही करता है और जो शरीर में विजातीय द्रव्य (कीटोन बॉडी) होते है उन्हें बाहर निकाल कर शरीर के प्रत्येक अंग की क्रियाशीलता को व्यवस्थित करता है।
औषध द्रव्य :-
(1)मुख्य द्रव्य :-
बड़ी हरड़ 100 नग, जौ चार सेर, दशमूल सवा सेर, चित्रक, पिपला मूल, अपामार्ग, कपूर, कौंच के बीज, शंख पुष्पी, भारंगी, गज पीपल, खरैटी और पुष्कर मूल, प्रत्येक 10 - 10 तोला,
(2)अन्य द्रव्य :-
घृत 40 तोला, तेल 40 तोला, गुड़ सवा छः सेर ।
(3) प्रक्षेप द्रव्य :-
मधु 40 तोला, पिपली चूर्ण 20 तोला ।
बनाने की विधि :-
अगस्त्य हरीतकी नाम से यह दवा बाजार में आयुर्वेदिक स्टोर्स पर आराम से मिल जाती है । फिर भी जिन लोगो को घर पर ही यह दवा बनानी हो तो उनके लिए यह विधि शास्त्रों में बताई गई है ।
बड़ी हरड़ (हरीतकी) और जौ को एक पोटली में बांधे, और बाक़ी द्रव्यों को मिलाकर अधकुटा करके एक मन(लगभग 40 लीटर) पानी में पकावे, तथा इसी में उक्त पोटली रख दें ।
जब हरड़ और जौ उबल जाये तथा क्वाथ तैयार हो जाए तो उतार ले । इस क्वाथ को छान कर इसमें उबाली हुई हरीतकी को मिलावे । फिर इसमें घृत और तेल 40-40 तोला तथा गुड़ सवा सेर पकावें ।
अवलेह सिद्ध होने पर या ठंडा होने पर मधु (शहद) 40 तोला और पिपली चूर्ण 20 तोला मिलाकर सुरक्षित रख लें ।
गुण और उपयोग :-
इसके सेवन से पाईल्स(अर्श), दमा(अस्थमा), क्षय(टी बी), खांसी, ज्वर, अरुचि, आदि रोगों का नाश करती है । कफ का नाश करने वाली होने के कारण दमा, खांसी, श्वास, यक्ष्मा,आदि में बहुत लाभ करती है ।
पाईल्स में है विशेष उपयोगी :-
अगस्त्य हरीतकी मृदु विरेचक है , इसलिए अर्श (बवासीर, पाईल्स) वाले को विशेष लाभ करती है । पाईल्स रोग अमूमन कब्ज होने से होता है और अगस्त्य हरीतकी विरेचक औषधि है यह कब्ज को दूर कर देती है । यदि ज्यादा कब्ज हो तो गर्म जल के साथ सेवन करने से एक दो दस्त साफ़ हो जाते है । इससे न तो पेट में मरोड़ होती है और न ही किसी प्रकार की तकलीफ होती है । अधिक दिनों तक इसका सेवन करने से किसी भी प्रकार की कोई तकलीफ और साइड इफेक्ट नही होते है । इसका सेवन लगभग दो से तीन माह तक करना चाहिए । यह अपना पूर्ण असर लगातार लम्बे समय तक लेने से ही स्थाई दिखा पाती है ।
सावधानियां :-
यह बहुत ही अच्छी और महत्वपूर्ण औषधि है और इसका कोई भी साइड इफेक्ट नही होता है , फिर भी यदि कोई अन्य रोग से ग्रसित व्यक्ति यह दवा लेता है तो उसे अपने चिकित्सक से परामर्श लेकर ही यह दवा लेनी चाहिए ।
Sunday 24 September 2017
Ayurvedic kadha आयुर्वेदिक काढ़ा
दस मूल क्वाथ
जन्म घुट्टी क्वाथ
त्रिफलादि क्वाथ
धान्य पंचक क्वाथ
पथ्यादि क्वाथ
मधुकादि हिम क्वाथ
Thursday 7 September 2017
हितकर आहार और अहितकर आहार
कोई के बैंगन बादी करीं, कोई के बैंगन पथ्य।।"
2 मुंग
3 आकाशीय जल
4 सैंधा नमक
5 जीवन्ति पत्र शाक
6 ऐनेय मृग मांस
7 लाव पक्षी का मांस
8 गोह का मन
9 रोहित मछली का मांस
10 गाय का घी
11 गाय का दूध
12 तिल का तैल
13 सूअर की चर्बी
14 चुलुकी मछली की चर्बी
15 पाक हंस की चर्बी
16 मुर्गे की चर्बी
17 बकरे की मेद
18 अदरक
19 मुनक्का
20 शर्करा
ये बीस आहार द्रव्य प्रकृति से ही हितकारी होते है ।
2 उड़द
3 वर्षा में नदी का पानी
4 औसर नमक
5 सरसो की सब्जी
6 गाय का मांस
7 काण कबूतर का माँस
8 मेंढक का माँस
9 चिलचिम मछली का माँस
10 भेड़ का घी
11 भेड का दूध
12 कौशुम्भी का तैल
13 भैस की चर्बी
14 चटक पक्षी का मांस
15 कौवे की चर्बी
16 चटक पक्षी की चर्बी
17 हाथी की चर्बी
18 आलू
19 लकुच
20 गन्ने की राब
हितकर आहार और अहितकर आहार
क्या है ? हितकर और अहितकर आहार ।
जो आहार समूह शरीरस्थ समधातुओ को प्रकृति में रखता है , अर्थात जो आहार समधातुओ को कम या ज्यादा नही होने देता और विषम ( घटे या बढ़े )धातुओं को सम कर देता है उसी को हित कारक आहार समझना चाहिए और इसके विपरीत कार्य करने वाले आहार को अहित कारक समझना चाहिए ।
आहार क्या है ?
"आह्रीयते (पोषणार्थं) इति आहारः" शरीर के पोषण के लिए जो द्रव्य( ठोस,द्रव) लिया जाये , वह आहार है ।
यह आहार छः रसों से युक्त प्राणियों के प्राणों की रक्षा करने वाला होता है । बल , वर्ण, औज आदि की वृद्वि करता है । शरीर को पृष्ठ और सौष्ठव युक्त बनाता है । लेकिन कई बार यही आहार प्राणियों के प्राण भी हर लेता है और संकट भी पैदा कर देता है । इसलिए सोच समझ कर ही आहार का सेवन करना चाहिए ।
क्या खाएं ? इस पर विचार करें ।
राजस्थानी में एक कहावत है "ऊंट छोड़े आक और बकरी छोड़े ढाक" यानि जी रेगिस्थान का जहाज ऊंट है वह सब कुछ आहार को पचा जाता है लेकिन उसको भी एक आक नामक पौधे को छोड़ना पड़ता है क्योंकि वह उसके लिए अहित कारक है उसी प्रकार बकरी के लिए ढाक अहित कारक आहार है ।
इसी प्रकार मनुष्य शरीर में भी बहुत से आहार हितकारक होते है और कुछ आहार द्रव्य अहितकर भी होते है । किसी किसी आहार के संस्कार से उसे हितकर भी बनाया जा सकता है लेकिन कुछ आहार तो ऐसे होते है कि उनकी प्रकृति ही अहितकारी होती है ।
आहारो का विभाजन :-
सभी आहारों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है ।
1 स्थावर आहार :- जैसे गेहूं, चावल, जौ , चना , साग- सब्जी , शुक धान्य, शमी धान्य आदि ।
2 जंगम आहार :- पशु पक्षियों का मांस।
कौनसे आहार हितकारी है ?
इस संदर्भ में एक बात सही लगती है कि
"कोई के बैंगन वायरा,कोई के बैंगन पच।
कोई के बैंगन बादी करीं, कोई के बैंगन पथ्य।।"
किसी के बैंगन वायुकारक होते है किसी को बैगन हितकारी होते है । तो यह एक अजीब सी विडंबना है कि क्या किया जाये । इसी समस्या का आभास महर्षि अग्निवेश को भी था कि यह समस्या हो सकती है इसलिए उन्होंने बहुत ही सुन्दर तरीके से शौध करके कुछ आहार द्रव्यों की सूचि बनाई जो प्रकृति से ही हितकारी है उनका स्वभाव ही ऐसा है कि उन्हें कोई भी किसी भी तरीके से खाये वे शारीर में हमेशा हितकारी ही कार्य करेंगी ।
एक सूचि ऐसी भी बनाई की उनको आप कैसे भी खाए वे शारीर को अहित ही पहुचायेंगी । उनका स्वभाविक गुण अहितकारी ही है ।
पहले हितकारी आहार की बात करते है , जो प्राकृत रूप से शरीर में सभी दोषो को सम अवस्था में रखने का ही कार्य करते है इस प्रकार के आहार द्रव्यों की एक सूची इस प्रकार है ।
ये आहार द्रव्य प्रकृति से ही हितकारी होते है , ये किसी भी प्रकार से अहितकारी नही होते है ।
1 लाल शाली चावल
2 मुंग
3 आकाशीय जल
4 सैंधा नमक
5 जीवन्ति पत्र शाक
6 ऐनेय मृग मांस
7 लाव पक्षी का मांस
8 गोह का मन
9 रोहित मछली का मांस
10 गाय का घी
11 गाय का दूध
12 तिल का तैल
13 सूअर की चर्बी
14 चुलुकी मछली की चर्बी
15 पाक हंस की चर्बी
16 मुर्गे की चर्बी
17 बकरे की मेद
18 अदरक
19 मुनक्का
20 शर्करा
ये बीस आहार द्रव्य प्रकृति से ही हितकारी होते है ।
अहितकारक आहार कौनसे है ??
जो शरीर को हर हालत में हानि पहुचाये उनका स्वाभाविक गुण ही ऐसा हो , उनको प्रकृति ने ही इस प्रकार का बनाया है उन आहार द्रव्यों की सूचि महर्षि अग्निवेश इस प्रकार बनाई है ।
1 जौ
2 उड़द
3 वर्षा में नदी का पानी
4 औसर नमक
5 सरसो की सब्जी
6 गाय का मांस
7 काण कबूतर का माँस
8 मेंढक का माँस
9 चिलचिम मछली का माँस
10 भेड़ का घी
11 भेड का दूध
12 कौशुम्भी का तैल
13 भैस की चर्बी
14 चटक पक्षी का मांस
15 कौवे की चर्बी
16 चटक पक्षी की चर्बी
17 हाथी की चर्बी
18 आलू
19 लकुच
20 गन्ने की राब
इन दोनों सूचियों में अनाज, फल ,पशु ,पक्षी ,बिल में रहने वाले जीव, जल में रहने वाले जीव,कन्द, मूल , घी , दूध, आदि सभी प्रकार के आहार द्रव्यों का विवेचन किया गया है ।
हजारो वर्ष पहले लिखे गए आयुर्वेद ग्रंथो में आज भी यथावत काम आने वाली बाते लिखी गई है । इन सभी बातों को आम पब्लिक पहुचाने के लिए ही यह लेख लिखा गया है । जब यह लेख लिखने से पहले जब मैं इस संदर्भ में पढ़ रहा था तब कुछ लोगो से मैंने यह जिक्र किया था कि लोग गाय का मांस क्यों खाते है यह तो अहितकारी होता है तब एक बन्धु ने सुश्रुत संहिता का उल्लेख करते हुए लिखा था कि गाय के मांस वीर्य वर्धक और पुष्टिकारक होता है । उस वक्त मैंने उन महोदय को यह जबाव दिया था कि मदिरा भी हर्ष और आनन्द उत्पन्न करने वाली होती है । लेकिन क्या सच में वह ऐसा करने वाली है । शराब का स्वाभाविक गुण शरीर को नुकसान पहुचाना ही है ।
इन द्रव्यों में भी बहुत गुण भी है लेकिन जो स्वभाविक गुण बताया गया है वह हितकारी और अहितकारी के दृष्टिकोण से बताया गया है । इति
Sunday 30 July 2017
सिरदर्द या शिरः शूल (HEAD ACHE)
क्या होता है सिरदर्द ?
किसी भी रोग में वह रोग संक्रामक हो या दोषज, उनमे सिर दर्द एक सामान्य और महत्वपूर्ण लक्षण के रूप में दिखने वाला रोग है । कोमल प्रकृति के मनुष्य में शारीर में होने वाली किसी भी प्रकार की विकृति से यह रोग उत्पन्न हो सकता है। किसी किसी को हल्का तनाव होने पर भी यह रोग आक्रांत कर लेता है । रक्तदाब के बढ़ने या घटने से माथे (fore head) पर होने वाली तीव्र पीड़ा को सिरदर्द कहते है ।
क्या कारण होते है ?
प्राणाः प्राण भृतां यत्र श्रिताः सर्वेंद्रियानी च ।
यदुत्तमं$मगानां शिरः तद्भिधीयते ।। च.सु.
जिसमे प्राणियों के प्राण आश्रित रहते है , सभी ज्ञानेन्द्रियाँ जहाँ रहती है और जो शरीर के सभी अंगों में उत्तम अंग है वही शिर कहलाता है ।
इसमें कोई भी रोग की उत्त्पति हो वह सामान्य सी हो या बड़ी हो तो यह एक प्रकार से संकेत देने लगता है । इसमें कुछ गड़बड़ी का अहसास दिलाने की क्षमता प्राकृतिक रूप से है और यही कारण है जब विकृति होती है तो यह गर्म होकर दर्द करने लग जाता है ।
जब सिरदर्द के कारणों की बात करते है इसके कारणों में सामान्य से लेकर भयंकर कारणों की जानकारी मिलती है ।
रक्तचाप के बढ़ने और घटने से दोनों समय सिरदर्द हो सकता है।
रक्त में विषाणु और जीवाणु के इन्फेक्शन से यह लक्षण प्रकट हो जाते है ।
ज्यादा बोलने , जोर से बोलने ,क्रोध करने , चिंता करने और तेज या लगातार हंसने से भी यह रोग हो जाता है ।
नींद न आने पर यह बहुत लोगो को होते देखा जाता है ।कई बड़े रोगों के कारण भी लोगो में सिरदर्द देखने को मिलता है
जैसे :-
आंधाशीशी Migraine
प्रतिश्याय Coryza
अंनत शूल Trigeminal Neuralgia
सूर्यावर्त शूल Supar Orbital Neuralgia
शिरो भ्रम Vertigo
मस्तिष्कार्बुद Intra Cranial Tumours
मस्तिष्क विद्रधि Brain Abscess
शिरोभिघात Head Injuries
क्या कहता है आयुर्वेद ?
आयुर्वेद मतानुसार सभी ऋषियों के अलग अलग मत है ।
आचार्य चरक लिखते है कि शिरोरोग के पांच ही प्रकार है और इन्ही कारणों से यह रोग उत्पन्न होता है ।
वातज, पित्तज, कफज, सन्निपातज, और कृमिज ।
आचार्य सुश्रुत ने 11 प्रकार बताये है और आचार्य वाग्भट्ट 10 प्रकार बताते है ।
आयुर्वेद ग्रन्थों में शारीरिक चिकित्सा में चरक संहिता का ही बड़ा नाम है सुश्रुत शल्य के लिए और वाग्भट निदान के लिए प्रसिद्द है ।
आयुर्वेद ग्रंथो में सभी शिरो रोगो के कारण निम्नानुसार बताये है ।
शिरः रोग के प्रमुख कारण :-
1 अधारणीय वेगो को रोकने से ।
2 दिन में सोने और रात में जागने से ।
3 नशीली वस्तु के सेवन से ।
4 जोर जोर से बोलने पर ।
5 औंस में सोने से ।
6 हवा के वेग के सामने आने से ।
7 अधिक मैथुन करने से ।
8 अप्रिय और उग्र गन्ध से ।
9 धुली, धुआँ, बर्फ, और धूप के आघात से ।
10 गुरू, अम्ल, हरित ( अदरक, मिर्च) , पदार्थो के सेवन ।
11 अत्यंत शीतल जल के सेवन से ।
12 शिर पर चोट लगने से
13 पूर्व भोजन के पचने से पहले दुबारा भोजन करने से
14 रोने से भी और आसुंओ को रोकने से भी ।
15 बादलो के छा जाने से ।
16 मानसिक तनाव से ।
इन उपरोक्त कारणों से शरीर में वायु प्रकुपित होकर शिरः शूल और अन्य शिरो रोगों को उत्पन्न कर देती है ।
आचार्य अग्निवेश चरक संहिता में इसका वर्णन इस प्रकार करते है ।
"वातादयः प्रकुप्यन्ति शिरस्यस्रम च कुप्यन्ति ।
ततः शिरसि जायन्ते रोगा विविध लक्षणा ।।" च.सु.
बचाव :- शिरः शूल से कैसे बचा जाए ?
शिरः शूल से बचने के लिए ऊपर कहे गए कारणों से बचना चाहिए । अपने कर्तव्यों की पालना सही समय पर करनी चाहिए ।
उपचार :-
सामान्य उपाय :-
1 रोग के मूल कारण को दूर करे ।
2 रोगी को अजीर्ण से बचाये ।
3 मलावरोध न रहे ।
विशेष उपाय :-
विशेष उपाय में सिरदर्द के मूल कारण की चिकित्सा औषधि व्यवस्था करवा कर करनी चाहिए । जिस प्रकार का रोग हो उसकी उसी प्रकार से योग्य चिकित्सक से चिकित्सा करवानी चाहिए ।
Thursday 13 July 2017
मोटा होने की दवा (Health improve medicine)
आजकल हेल्थ बनाने का माहौल बना हुआ हैं, सभी लोग अपनी हेल्थ बनाने में लगे हुए है कोई योग कर रहा है कोई जिम में जाता है किसी को घूमने का चस्का लगा हुआ है । यह बहुत ही अच्छी बात है । अपनी सेहत का ख्याल हमेशा ही रखना चाहिए । अपनी सेहत लाख नियामत कहा जाता है ।
निरोगी रहना बहुत ही अच्छा विचार है और इनके लिए किये गए कार्य बहुत ही सही रहते है । लेकिन कुछ लोग सेहत के नाम पर सिर्फ वजन बढ़ाना ही मानते है । वे लोग यह सोचते है कि हेल्थी का मतलब मोटा तगड़ा शरीर होना ही है । और मोटे होने के लिए किसी भी प्रकार की दवा का प्रयोग कर लेते है ।आजकल बाजार में तरह तरह के पाउडर मिलते है ये पाउडर बेचने वाले तरह तरह के दावे करते है । सुन्दर और आकर्षक डिब्बो में बंद यह दवा कही भी आराम से उपलब्ध हो जाती है लेकिन यह कभी नही भुलना चाहिए कि जिस प्रकार डिब्बा बंद खाना (जंक फूड) खतरनाक होता है उसी प्रकार डिब्बा बन्द मोटे होने की दवा भी खतरनाक हो सकती है ।
मेरे पास काफी लोग आते है जिनको यह रहता है कि मैं बिना किसी मेहनत के अपना शरीर निरोगी बना लूँ । कोई इस प्रकार की दवा मिल जाये जिससे मेरी देह फूल जाये और मैं मोटा दिखने लगूँ ।
मैं ऐसे मरीजो को साफ मना कर सकता हूँ लेकिन नही उन्हें साफ मना करने से वे किसी और जगह पर जायेंगे और कोई न कोई उनको लूटने वाले मिल जाएंगे और उनसे धन भी ले लेंगे और शरीर का नाश भी कर देंगे ।
ऐसे मरीजो को मै बहुत प्यार से समझाता हूँ क़ि आप लोगो को यदि शरीर को मात्र फूलाना है तो आपको मेरे पास निराश ही होना पड़ेगा लेकिन यदि शरीर को फौलादी बनाना है तो मेरे पास दवा है । मेरे साथ मरीजो से लगभग इस प्रकार की बाते रोजाना होती है । मोटे होने की दवा के बारे कुछ वार्तालाप के अंश यहां भी प्रस्तुत है । पढ़ें :--
मरीज कहता है :- हमने तो सूना है कि आप शरीर फूलने की दवा देते है ?
डॉक्टर : - आपने गलत सुना है मै तो शरीर को स्वस्थ करने तथा जो हम भोजन करते है उसका रस बने इस प्रकार की दवा देता हूँ । जब हम स्वस्थ रहते है और जो कुछ खाते है वह यदि शरीर को लग जाता है तो शरीर फूलता नही है मजबूत होकर मोटा फौलादी हो जाता है ।
मरीज बोला :- इसमें क्या अंतर है ? फूलना और मोटा होना दोनों एक ही तो बात है ।
डॉक्टर :- अमूमन जो दवा बाजार में मिलती है वे सिर्फ भूख बढ़ाती है और ज्यादा खाने से शरीर में फुलावट आ जाती है । कई लोग तो बियर पीकर भी अपना शरीर फूला ही लेते है फिर दवा और दारू में क्या अंतर हुआ । कुछ लोग एलोपैथी की स्टोरॉइड दवा खाकर भी शरीर फुला लेते है । लेकन यह स्थिर नही रहता । यह बढा हुआ वजन कुछ दिन बाद वापिस कम हो जाता है ।
मरीज :- आप जो दवा देते है क्या उससे जो वजन बढ़ता है वह कम नही होता ??
डॉक्टर :- जो दवा मै देता हूं यदि उस दवा का पूरा कोर्स जो की चार महीने का होता है पुरे परहेज के साथ ले लिया जाये तो फिर वजन कम ज्यादा होता रहता है लेकिन वापिस पूर्व की स्थिति में कम नही होता है ।
मरीज :- चार महीने तो बहुत ज्यादा है । इतने महीने में तो वजन बहुत बढ़ जाएगा ।
डॉक्टर :- यह दवा वजन बढ़ाने के लिए नही है । यह बात आपको पहले भी बता चुका हूँ । इससे पाचन क्षमता बढ़ जाती है और जो कुछ भी हम खाते है उसका रस बनता है और उससे वजन भी बढ़ता है तो जितनी शरीर को जरूरत है लंबाई के अकॉर्डिंग वजन बढ़ता है । और यह काम जल्दी का नही है । इसलिए चार महीने दवा लेनी पड़ती है ।
आयुर्वेद ग्रंथो में बहुत सी दवा है जिससे शरीर की क्रिया सही मार्ग पर चलने लगेगी । शरीर निरोग रहेगा तो वजन और सेहत दोनों अच्छी होने लगेंगी । काम करने में मन लगने लगेगा ।
मरीज :- तब तो यह कोर्स बहुत महंगा पड़ता होगा ??
डॉक्टर :- नही । यह कोर्स बहुत महंगा नही है । वैसे भी यदि हेल्थ बनानी हो तो पैसो की तरफ नही देखना चाहिए ।क्योंकि दवा से ज्याद तो भोजन की खुराक पर खर्च होने वाले है । हा हा हा...
इस प्रकार की बाते करके बहुत लोग अपना संशय दूर करते है और मै तो कहता हूँ क़ि संशय दूर करना भी चाहिए । दवा से आज तक पूरे हिंदुस्तान करीब पांच हजार लोगो ने लाभ उठाया है । फोन पर भी लोग सलाह मशविरा करते है । ईमेल भी करते है । 17 से 50 साल तक के सभी स्त्री पुरुषों के लिए यह दवा बहुत ही कारगर साबित हो रही है ।
इस दवा के सेवन के बाद मेरे पास बहुत लोगो के धन्यवाद स्वरूप फोन आते है लोग कहते है कि हमारे अंदर अंदरूनी शक्ति का भी इजाफा हुआ है कई बहिन बेटियां जो स्वेत् प्रदर जैसे रोग से ग्रसित थी वो ठीक हुई है ।
यह दवा राजस्थान के आलावा बेंगलोर ,मुम्बई, सूरत , अहदाबाद , चैन्नई, जैसे बड़े शहरो के लोगो को भी मेरे द्वारा भेजी गई है । मैं उन सभी लोगो से निवेदन करना चाहूंगा जिन्होंने मेरे से यह ट्रीटमेंट लिया है वे लोग इस पोस्ट को पढ़े तो अपने कॉमेंट जरूर लिखे । जिससे तुम्हारे जैसे और भी कई साथी इस आयुर्वेद अमृत का फायदा उठा सके ।