Wednesday 27 January 2016

यौनशक्ति(sex power) वर्धक औषधि-- वीर्य स्तम्भन वटी

                            आजकल युवको मे शरीर सौष्ठव
को बढाने की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन यह शरीर सौष्ठव तब तक तो ठीक है जब तक इसका दुरोपयोग नही होता हो लेकिन आज का युवा जिम मे जाकर शरीर तो बलवान बना लेता है लेकिन मानसिक रूप से निर्बल ही रहता  है, जब मन पुर्ण रूपसे परिपक्व ना हो तो कई प्रकार की व्याधियाँ घेर लेती है,

                         यौन शक्ति का कम होना भी एक मानसिक बिमारी ही है इसमे कई कारण हो सकते है,जिस प्रकार से आजकल वातावरण बन रहा है जिसमे ये कारण विशेष है  जैसे- अनियमित दिनचर्या, अनुचित आहार-विहार, कामुक मानसिकता, अप्राकृतिक यौनक्रिडा, हस्त मैथून, पोषक आहार का अभाव, अश्लील वातावरण, आदि कारणो और मानसिक रुग्णता के कारण युवक अपनी यौनशक्ति को खो बैठते है


                        जब शक्ति नही रहती तो कुछ भी वश मे नही रहता है और यौनदोर्बल्य, स्वप्नदौष, धातु क्षीणता, आदि बिमारियो से पिडित हो जाते है और जब शादी होती है तो बडे  ही परेशान होते है, मेरी प्रेक्टिस मे बहुत से नवयुवको ने मुझसे सलाह लेकर अपना वैवाहिक जीवन सुखद बनाया है और अभी भी सलाह लेते रहते है , लेकिन जब किसी  किसी को  उचित परामर्श नही मिलता है तो वे आत्महत्या जैसे संगीन काम को भी अंजाम दे देते है,

                        यह आयुर्वेदिक औषधि इसी प्रकार  के शर्मिले युवको के लिये है जो अपना कष्ट किसी से शेयर नही करते या जिन्हे उचित सलाह नही मिल पाती वे लोग इस दवा का उपयोग कर सकते है


घटक द्रव्य --         सोने के वर्क, और कस्तुरी                 1--1ग्राम
                             चांदी के वर्क, इलायची, जुंदे बेदस्तर  10---10ग्राम
                             नरकपूर, दरूनज अकबरी, बहमन लाल, बहमन सफेद, जटामांसी, लौंग, तेजपत्र,(कपड -छान किया हुआ चुर्ण ले ) 5---5ग्राम
                             पीपल और सौंठ काचुर्ण 3----3ग्राम 
                             थोडा सा शहद


निर्माण विधि --

                       जुंदे बेदस्तर को शहद मे घोंटे, फिर वर्क कस्तुरी आदि अन्य द्रव्य मिलाते जाऐ, और घुटाई करते रहे, फिर नरकचूर आदि का बारीक पिसा छना हुआ चुर्ण मिलाते हुये घुटाई करते रहे, तीन घंटे घुटाई करने के बाद आधा--आधा ग्राम की गोलियाँ  बना ले ,


मात्रा एवम सेवन विधि --
  
                         2-- 2 गोली सुबह शाम मीठे गुनगुने दुध के साथ सेवन करे


लाभ --

                         इस वटी के सेवन से वीर्य शुद्ध और गाढा होता है, पाचन क्रिया सुधरती है, जठराग्नि प्रबल होती है शरीर सुन्दर और पुष्ट बनता है  शरीर शक्तिशाली बनता है


                        यह दवा विवाहित युवको के लिये ही है, जिनका विवाह नही हुआ है ऐसे नवयुवको को यौनवर्धक औषधियो का सेवन नही करना चाहिये

चिकित्सा कार्य एक सेवाकार्य है....

                    मुझे चिकित्सा करते हुये करीब अठारह वर्ष हो गये है,मुझे इस समयावधि मे कई प्रकार के अनुभव हुये है,मै इतना व्यस्त चिकित्सक नही हुँ जितना और मेरे कई साथी रहते  है,लेकिन इतना तो मेरे अनुभवो से मुझे पता चला ही है कि चिकित्सा एक सेवाकार्य है,आयुर्वेद मे इस कार्य के फल के लिये लिखा है - "किसी से मित्रता हो जाती है ,कोई धन दे जाता है, कोई दुआ दे जाता है और कोई कुछ भी ना दे तो धर्म तो होता ही है" अतः कहा गया है "चिकित्सा नास्ति निष्फला,"


                   मै मेरे मरीज के साथ बहुत ही मन और तन से साथ निभाता हुँ उसकी  पुरी सेवा करने की कौशीश करता हुँ, मेरी पुरी कौशीश रहती है कि वह पुरी तरह से जल्दी से ठीक और स्वस्थ हो जाये, जब वह आराम महशुस करता है तो मन मे एक संतोषप्रद खुसी महशूस होती है,


                  चिकित्सक को लोग भगवान का दर्जा देते है,और सच मे मानते भी है,चिकित्सक का कर्तव्य है कि वह भी भगवान बन कर ही रहे किसीके साथ भी छल प्रपंच ना करे धोका ना दे, रोगी के विश्वास को बनाये रखे, यदि किसी  मरीज के परिजन भावावेश मे कुछ गलत बोल भी दे तो उदारमन से उसे सहन करने का धीरज रखना चाहिये,


                    मेरे मरीजो को मुझसे भी बहुत शिकायते है,किसी को फीस लेने की शिकायत है तो किसी घर पर बुलाने पर ना आने की शिकायत है, किसी किसी को तो रेफर कर देने की ही शिकायत हो जाती है उन्हे लगता हैकि यदि गौर से देखते तो मरीज यही पर ठीक हो सकता था,लेकिन जहाँ तक मेरा मानना है,चिकित्सक भगवान के जैसा है लेकिन भगवान नही  है, वह भी एक इंसान है,एक पति है ,एक पिता है,चिकित्सक कभी भी किसी मरीज का बुरा नही सोच सकता, वह हर हालत मे उसे स्वस्थ करने के लिये तत्पर रहता है,


                     चिकित्सक यदि इस कार्य को सेवा कार्य समझ कर कर रहा है तो सभी मरीजो तथा परिजनोको भी इस कार्य को सेवा कार्य ही समझना चाहिये, सेवाकार्य को यदि सेवा लेने वाला अधिकार या हक समझने लग जाता है तो फिर झगडा होना स्वभाविक है, अतः सेवाकार्य को सेवा ही रहने दे अधिकार नही,