Wednesday 27 January 2016

चिकित्सा कार्य एक सेवाकार्य है....

                    मुझे चिकित्सा करते हुये करीब अठारह वर्ष हो गये है,मुझे इस समयावधि मे कई प्रकार के अनुभव हुये है,मै इतना व्यस्त चिकित्सक नही हुँ जितना और मेरे कई साथी रहते  है,लेकिन इतना तो मेरे अनुभवो से मुझे पता चला ही है कि चिकित्सा एक सेवाकार्य है,आयुर्वेद मे इस कार्य के फल के लिये लिखा है - "किसी से मित्रता हो जाती है ,कोई धन दे जाता है, कोई दुआ दे जाता है और कोई कुछ भी ना दे तो धर्म तो होता ही है" अतः कहा गया है "चिकित्सा नास्ति निष्फला,"


                   मै मेरे मरीज के साथ बहुत ही मन और तन से साथ निभाता हुँ उसकी  पुरी सेवा करने की कौशीश करता हुँ, मेरी पुरी कौशीश रहती है कि वह पुरी तरह से जल्दी से ठीक और स्वस्थ हो जाये, जब वह आराम महशुस करता है तो मन मे एक संतोषप्रद खुसी महशूस होती है,


                  चिकित्सक को लोग भगवान का दर्जा देते है,और सच मे मानते भी है,चिकित्सक का कर्तव्य है कि वह भी भगवान बन कर ही रहे किसीके साथ भी छल प्रपंच ना करे धोका ना दे, रोगी के विश्वास को बनाये रखे, यदि किसी  मरीज के परिजन भावावेश मे कुछ गलत बोल भी दे तो उदारमन से उसे सहन करने का धीरज रखना चाहिये,


                    मेरे मरीजो को मुझसे भी बहुत शिकायते है,किसी को फीस लेने की शिकायत है तो किसी घर पर बुलाने पर ना आने की शिकायत है, किसी किसी को तो रेफर कर देने की ही शिकायत हो जाती है उन्हे लगता हैकि यदि गौर से देखते तो मरीज यही पर ठीक हो सकता था,लेकिन जहाँ तक मेरा मानना है,चिकित्सक भगवान के जैसा है लेकिन भगवान नही  है, वह भी एक इंसान है,एक पति है ,एक पिता है,चिकित्सक कभी भी किसी मरीज का बुरा नही सोच सकता, वह हर हालत मे उसे स्वस्थ करने के लिये तत्पर रहता है,


                     चिकित्सक यदि इस कार्य को सेवा कार्य समझ कर कर रहा है तो सभी मरीजो तथा परिजनोको भी इस कार्य को सेवा कार्य ही समझना चाहिये, सेवाकार्य को यदि सेवा लेने वाला अधिकार या हक समझने लग जाता है तो फिर झगडा होना स्वभाविक है, अतः सेवाकार्य को सेवा ही रहने दे अधिकार नही,

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