आयुर्वेद चिकित्सक है – भगवान शंकर !
भगवान शंकर को महादेव,देवो के देव, चिकित्सको के चिकित्सक, “भिषगानाम भिषक” आदि कई नामो से जाना जाता है प्रत्येक आयुर्वेद चिकित्सक
रसायन बनाने से पुर्व, औषध निर्माण से पहले महादेव का ही स्मरण करता है
“या ते रुद्र शिवा तनू शिवा विश्वस्य भेषजी , शिवा रुद्रस्य भेषजी तया नो मृड जीवसे”
शिवा हरितकी का भी नाम है और शिवा अर्थात हरितकी के लिये लिखा गया है
कि यदि घर मे माँ नही हो और हरितकी हो तो चिंता ना करे क्योकि शिवा शिव के समान तथा
माँ के समान कल्याण कारि है,
भगवान शंकर दयालू मे दयालू और चिकित्सको मे चिकित्सक है –“ भिषक्तमँ त्वा
भिषजाँ श्रृणोमि” , (ऋक. 2/33/4)
इनके भेषज अतिशय सुखकर होते है यजमान वेद
मंत्रो के द्वारा उन भिषजो की याचना करते है –“हे रुद्र ! आप मुझे जो औषधि देंगे, उससे हम सैकडो वर्ष सुखमय जीवन व्यतीत करेंगे”
भगवान शंकर का आयुर्वेद से बडा ही गहरा
सम्बंध है , पहला तो जहाँ महादेव विराजते है कैलाश
पर्वत पर वहाँ पर अनेक जडी बुँटिया भी
विराजति है अर्थात उत्पन्न होतीहै ,भगवान शंकर के शुक्र को आयुर्वेद
ग्रंथो मे पारा माना गया है तथा महादेवी पार्वति के रज को गंधक माना जाता है और पारद(पारा) और गंधक
को मिलाकर सैकडो प्रकार की आयुर्वेदिक दवा
बनाई जाती है और उन निर्मित औषधियो को
“रस” कहा जाता है जो चिकित्सा
कार्य मे बहुत ही काम आती है ,
भगवान शंकर का आयुर्वेद की उत्पति मे क्या
हाथ था तो इसके लिये लिखा है
“मृत संजीवनी नाम विध्या या मम निर्मला , तपो बलेन महता मयैव परिनिर्मिता” ,
भगवान शंकर के पास मृत संजीवनी नामकी एक
ऐसी विध्या थी जो किसी के पास भी नही थी इस विध्या से मरे हुये प्राणियो को जीवित
किया जा सकता था इस विध्याको भगवान शंकर ने शुक्राचार्य को दिया था
भगवान शंकर ने शुक्राचार्य को पढाकर इस मृत
संजीवनी विध्या की परम्परा को चालु रखा था
भगवान शंकर के बारे मे शल्य चिकित्सा के भी
बहुत उदाहरण जुडे हुये है प्रथम पुज्य श्री गनेश जी का सिर हाथी का लगाना और
दक्षप्रजापति के सिर को काटने के बाद पुनः बकरे का सिर लगा दिया था ऐसे कई बातो से
ऐसा लगता है कि महादेव शंकर आयुर्वेद के महान चिकित्सक थे और अभी भी चिकित्सक जगत
के लिये बहुत ही आदरणीय और प्रेरणा स्रोत है
आज इस महा शिवरात्री पर हम सब पुर्ण मनो
योग से अपने प्रेरणा देने वाले महादेव को याद करे और उनका पुजन बहुत ही श्रद्धा के
साथ करे – ओम नमः शिवाय ....
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