Wednesday 22 February 2017

पारद :- जीवन का रस है ।

पारद ने बहुत ही प्रभावित किया था । पारद की उत्पत्ति की कथा पढ़कर मैं बहुत ही आश्चर्य चकित हुआ । हमे रस शास्त्र पढ़ाने वाले हमारे गुरू जी वैद्य श्री आंगिरस जी ने जब यह कथा बताई तो विश्वास ही नही हुआ ।लेकिन हो सकता है सत्य हो । अभी भी पूरा विश्वास तो नही होता लेकिन बात में कुछ तो तथ्य जरूर है। लगता है यह पारद ही जीवन का रस है । ये पुराणों में लिखी कथाएं कभी कभी  अविश्वसनीय सी लगती है लेकिन  इन में बड़ा ही सार भरा रहता है ।


आयुर्वेद ग्रंथो में पारद को बहुत ही महत्वपूर्ण औषधि बताई गई है । पारद के मिश्रण से बहुत दवाओं का निर्माण होता है । आयुर्वेद में जितने भी रस नाम से जो औषधियां है वे सभी पारद से ही बनी है । जैसे - रस सिंदूर, त्रिभुवन कीर्ति रस , लक्ष्मी विलास रस, कामदुधा रस, आदि ।

पारद को सामान्यत पारा भी कहा जाता है । इसके पांच भेद है - रस , रसेन्द्र, सूत, पारद ,और मिश्रक । इसको भगवान् शिव जी का वीर्य माना जाता है।

पारदो रस धातुश्च रसेन्द्रश्च महारसः ।
चपलः शिववीर्यश्च रसः सूतः शिवाहण्यः।।
रसेन्द्रः पारदः सूतः हरजः सुतको रसः ।
मिश्रकश्चेति नामानि ज्ञेयानि रस कर्मसु ।।

इन भेद की चर्चा के साथ उत्पत्ति की रोचक कहानी भी जानना बहुत जरूरी है । कथा कुछ इस प्रकार है ।

Saturday 11 February 2017

मूली (Raddish)


मूली का कन्द गाजर के समान, परंतु सफेद होता है । पत्ते नवीन सरसो के पते के समान, फूल सफेद,सरसो के फूलो के आकार के और फल भी सरसो के समान ही होते है। उन्हें "सोगरी" कहते है । बीज सरसो से बड़े होते है ।
बीजो में उड़नशील तैल होता है ।कन्द में आर्सेनिक 0.1मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम में रहता है।
मूली भूख बढ़ाने , पेट के कीड़े नष्ट करने वाली, पाईल्स, और सभी प्रकार की सूजन को ठीक करने में उपयोगी है ।
आयुर्वेद के अनुसार कच्ची मूली कटु, तिक्त, उष्ण, रुचिकारक, पाचन, मधुर, बल्य, तथा मूत्र विकार, अर्श, क्षय, श्वास, कास, नेत्ररोग, एवं वात,पित्त, कफ,और रक्त विकारो को दूर करती है ।
पुरानी मूली चरपरी, गरम, अग्निवर्धक, होती है ।
मूली की फली सोगरी किंचित गरम और किंचित कफ और वात नाशक होती है ।
मूली - सब्जी, सलाद, के साथ साथ आयुर्वेद चिकित्सा में भी उपयोगी है । इसको अलग अलग प्रकार से प्रयोग कर रोगों का उपचार भी किया जा सकता है ।
आयुर्वेद चिकित्सा में मूली को रोगानुसार इस प्रकार प्रयोग किया जाता है ---
कामला रोग
मूली के ताजे पत्तो को जल के साथ पीसकर उबाल ले , दूध की भांति झाग ऊपर आ जाता है इसको छान कर दिन में तीन बार पीने से कामला रोग मिटता है ।
पीलिया में मूली की सब्जी खानी चाहिए ।
यकृत प्लीहा रोग
मूली की चार फांक कर के छः ग्राम पिसा नौसादर छिड़क कर रात को ओस में रख कर सुबह जो पानी निकले उसको पीकर ऊपर से मूली की फांक खाने से फायदा होता है ।
पथरी
मूली के पत्तो को 10 ग्राम रस में अजमोद मिलाकर पीना चाहिए । पथरी पिघल जाती है ।
बवासीर
मूली के पत्तो को छाया में सुखा कर पीसकर समान मात्रा में शक्कर मिलाकर 40 दिन तक 25 से 50 ग्राम की मात्रा में सेवन करना चाहिए ।
मासिक धर्म
मूली के बीजों के चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में देने से मासिक धर्म की रूकावट दूर होती है । गर्भवती महिला को मूली के बीजो का सेवन नही करना चाहिए । वरना गर्भपात होने की संभावना हो सकती है ।
दाद
मूली के बीजो को नींबू में पीसकर लगाने से दाद में लाभ होता है ।
इंद्रिय शैथिल्य
किसी किसी व्यक्ति को इंद्रिय शैथिल्य ( शिश्न में उत्तेजना न होना) रोग हो जाता है ।इस रोग में यदि मूली के बीजो को तेल में औटाकर उस तेल की कामेन्द्रिय(शिश्न)  पर मालिश की जाये तो शिथिलता समाप्त हो जाती है और उत्तेजना पैदा होती है ।
इस प्रकार साधारण सी दिखनी वाली मूली हमारे जीवन में कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है । इसलिए मूली का सेवन अवश्य ही करना चाहिए ।

Friday 10 February 2017

रस सिंदूर : धातु वृद्धि (Sex power) में है उपयोगी ।

आज हम एक बहुत ही महत्वपूर्ण औषधि की बात कर रहे है , जिसका नाम है रस सिंदूर । यह एक कुपिपक्व रसायन औषधि है । यह औषधि शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक के मिश्रण से कुपिपक्व विधि से तैयार की जाती है ।

यह औषधि बहूत ही उत्तम रसायन है । यह गुण धर्म के हिसाब से उष्ण वीर्य है । पारद और गंधक का यह कल्प शरीर के अंगों की क्रिया को बढ़ाता है । अनुपान भेद से अनेक रोगों को इसका मिश्रण नाश करता है । यह कफ प्रधान रोगों की उत्तम दवा है ।

यह उष्ण होने के कारण पित्त प्रधान रोगों में स्वतन्त्र रूप से प्रयोग में नही लिया  जाता है यदि पित्त शामक औषधि जैसे प्रवाल पिष्टी, कामदूधा रस, गिलोय सत्व आदि किसी भी औषधि को मिला कर दे तो पित्त प्रधान रोगों में भी अच्छा फल प्राप्त किया जा सकता है ।

कफ प्रधान सन्निपात , न्यूमोनिया, इन्फ्लूएंजा, श्वास रोग, पुराना कफज कास, आदि रोगों में कफ संचित होकर रोग बढ़ते जाते हो, साथ ही दूषित कफ होने के कारण इनके उपद्रव भी बढ़ते जाते हो, तो ऐसे समय में रस सिंदूर बहुत ही अच्छा काम करता है ।

सुखी खांसी में रस सिंदूर अकेले न देकर प्रवाल भस्म या पिष्टी के साथ सितोपलादि चूर्ण , च्यवनप्राश के साथ देने से लाभ होता है ।

रोगानुसार उपयोग :-

नवज्वर (Instant fever) में रस सिंदूर गोदन्ती हरताल भस्म के साथ मिला कर तुलसी पत्र स्वरस से देने से लाभ मिलता है ।

जीर्ण ज्वर (Chronic fever) में रस सिंदूर , पित्त पापड़ा, धनिया, और गिलोय का क्वाथ (काढ़ा) बना कर शहद मिला कर पिने से लाभ मिलता है ।

अर्श (Piles) रस सिंदूर को छोटी हरड़ के साथ देने से आराम मिलता है।

श्वास ( Asthama) में रस सिंदूर और विभीतक चूर्ण का मिश्रण लाभ करता है ।

कामला में रस सिंदूर , स्वर्ण माक्षिक भस्म, और कसीस भस्म को मिलाकर देने से लाभ मिलता है ।

और भी बहुत से रोग है जिनमे रस सिंदूर किसी अन्य दवा के मिश्रण से बहुत ही अच्छा लाभ करती है ।

निम्न  प्रमुख रोग है जिनमे यह काम करती हैं।

पांडु, अजीर्ण, उदरशूल, मूर्च्छा, सर्वांग शौथ, अपस्मार, भगंदर, गुल्म आदि रोगों में भी अन्य औषधि के मिश्रण से यह दवा उत्तम कार्य करती है

इनके अलावा शरीर को बलवान बनाने, धातु वृद्धि  के लिए , वाजीकरण के लिए, स्वप्न दोष को दूर करने आदि के लिए भी यह औषधि बहुत ही कामयाब है ।

धातु वृद्धि के लिए :- यह धातु को बढ़ाने के लिए , वीर्य को गाढ़ा करने के लिए , शीघ्र पतन और स्वप्न दोष की बहुत ही उत्तम दवा है । निम्न लिखित मिश्रण बना कर अपना जीवन उत्तम बनाये ।

1. रस सिंदूर 1 रत्ती
    बंग भस्म 1 रत्ती
    स्वर्ण भस्म 1/4रत्ती
     मलाई के साथ

2.   या लौंग, केशर , जावित्री, अकरकरा, पीपल, प्रत्येक 1 -1 भाग तथा कपूर, भांग, अफीम, और नाग भस्म, आधा आधा भाग लेकर, सबका यथा विधि चूर्ण बनावे। एक माशा इस चूर्ण के साथ 1 रत्ती की मात्रा में रस सिंदूर लेना चाहिए ।

इसका प्रयोग किसी योग्य चिकित्सक के परामर्श से ही करना चाहिए ।