Tuesday 23 December 2014

आरोग्य का मूलमंत्र

                       आयुर्वेद मे स्वस्थ व्यक्ति की परिभाषा इस प्रकार बताई है कि "जिस व्यक्ति के दोष समान हो, अग्नि सम हो,सात धातुये भी सम हो,तथा मल भी सम हो शरीर की सभी क्रियाये समान क्रिया करे, इसके अलावा मन , सभी इंद्रियाँ तथा आत्मा प्रसन्न हो,वह मनुस्य स्वस्थ कहलाता है"
                       जो शरीर को दुषित करे वह दोष कहलाता है शारीरिक दोष तीन होते है वात ,पित ,और कफ,ये हमारे शरीर मे हवा,अग्नि,तथा जल के सुचक है,तथा मन को दुषित करने वाले दोष मानस दोष दो होते है -रज,तम, इनको, समान रखेंगे तो हम स्वस्थ रहेंगे ,साथ ही धातुओ को भी समान रखना है ये सात है- रस,रक्त ,मांस, मेद, अस्थि,मज्जा,और शुक्र,स्त्रियो मे आर्तव,ये सातो शरीर को धारण करती है इस लिये धातु कहलाती है ये समान मात्रा मे अपना -अपना काम करती रहेंगी तो हम स्वस्थ रहेंगे लेकिन इनके अलावा मल भी समान रूप से कार्य करने चाहिये मल भी तीन है मल(पुरीष,नाक,कान आदि का मल),मुत्र,स्वेद,ये तीनो समान रूप से कार्य करते रहे ,शरीर की क्रिया (सोना,जागना आदि) सम हो ,आत्मा,सभी इंद्रियाँ, तथा मन प्रसन्न हो,तब हम स्वस्थ होंगे,
                           
                         जीवन विज्ञान के रूप मे प्रतिष्ठित आयुर्वेद का सिद्धांत है कि"रोगस्तु दोष वैषम्यम दोष साम्यमरोगता"अर्थात दोषो का शरीर मे विषमावस्था मे रहना रोग है एवम साम्यावस्था मे रहना ही आरोग्य है
                          असात्म्य आहार ,ऋतुओ मे परिवर्तन ,असामान्य आचरण एवँ जनपदोध्वंस के कारण दोष कुपित होकर रोगो को उत्पन्न करते है रोग की स्थिति मे जो लक्षण दिखाई देते है वे दो प्रकार के होते है (1)प्रकृति-सम समवायजन्य एवँ (2) विकृति - विषमसमवायजन्य,
(1)प्रकृति-समसमवायजन्य-- इसस्थिति मे दोषो के समान ही लक्षण दिखाई देते है
(2)विकृति-विषमसमवायजन्य--इस स्थिति मे धातु के साथ दोषो का संसर्ग दिखाई देता है
                           आचार्य चरक ने रोगोत्पत्ति के वर्णन मे यह स्पस्ट लिखा है कि रोग की उत्पत्ति का मूल कारण परिग्रह है संचय की प्रवृति के कारण लोभ तत्पश्चात अभिद्रोह की उत्पति हुई ,अभिद्रोह से असत्य भाषण एवम इससे काम क्रोध आदि की प्रवृति के परिणाम स्वरूप आहार विहार के सम्यक पालन का ह्रांस होने की प्रवृति से अग्नि एवम वायु के विकारो से ग्रस्त होकर प्राणियो मे ज्वरादि रोगो का प्रवेश हुआ और प्राणियो की आयु का ह्रास होने लगा,
                            पुर्ण स्वस्थ रहने के लिये एक सुत्र है ‌‌-"हिताशी स्यात मिताशी स्यात कालभोजी जितेंद्रियः,"
  अर्थात हितकर भोजन करे, यथोचित भोजन करे,नियत समय पर भोजन करे,और इंद्रियोपर विजय प्राप्त करे,  

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