
आयुर्वेद केवल एक चिकित्सा पध्द्ती ही नही है बल्कि पुरा जीवन विज्ञान है इस विज्ञान मे एक -एक सुत्र पुरा रोगोपचार बताने मे सक्षम है उदाहरण के लिये इस सुत्र को देखो - अष्टांगह्रदय मे लिखा है "हितासि स्यात, मितासि स्यात,कालभोजी जितेंद्रिय"अर्थात हित आहार करे ,अल्प आहार करे,समय पर आहार करे, और इंद्रियो पर विजय प्राप्त करे ,हमेशा स्वस्थ रहेंगे< इतना छोटा सा सुत्र पुरे स्वास्थ्य की परिभाषा बता रहा है आयुर्वेद के दो उद्देस्य है "स्वथस्य स्वास्थ्य रक्षणम,आतुरस्य विकार प्रशमनम च" अर्थात स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना, तथा अस्वस्थ के विकार को दूर करना, हमारी प्रथम मनोकामना भी ये ही रहती है कि मै हमेशा स्वस्थ रहू और कहा भी गया है "पहला सुख निरोगी काया"और आयुर्वेद का पहला उद्देस्य भी स्वस्थ व्यक्ती के स्वास्थ्य की रक्षा करना ही है अतः यह बात निर्बाध रूप से कह सकते है कि आयुर्वेद मानव मात्र की सेवा के लिये ही बना है, हमारा जीवन प्रातःकाल की चाय से लेकर रात्री कालीन के दुध तक आयुर्वेद से ही जुडा हुआ है
प्रातःकाल जल्दी जगना, उठकर माता पिता ईष्ट देव का स्मरण करना, स्नान ध्यान आदि सभी बाते हमने आयुर्वेद से ही सीखी है,दिनचर्या ,रात्रीचर्या, ऋतुचर्या ये सब बाते समाज को आयुर्वेद की ही देन है इतना उपयोगी ज्ञान का भंडार हमारे पास है फिर हम आज अंग्रेजो का मुँह ताक रहे है इसका क्या कारण है कि हम इतने ज्ञान वान हो कर भी मूल ज्ञान से वंचित है आयुर्वेद हमारे ग्रंथो मे ही सिमट कर रह गया,
हमे आयुर्वेद को जीवन मे उतारना चाहिये,आयुर्वेद हमारी जीवन पध्द्ति है इससे जीवन को जीने मे काम मे लेना चाहिये, इति
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