Thursday 7 September 2017

हितकर आहार और अहितकर आहार

क्या है ? हितकर और अहितकर आहार ।

जो आहार समूह शरीरस्थ समधातुओ को प्रकृति में रखता है , अर्थात जो आहार समधातुओ को कम या ज्यादा नही होने देता और विषम ( घटे या बढ़े )धातुओं को सम कर देता है उसी को हित कारक आहार समझना चाहिए और इसके विपरीत कार्य करने वाले आहार को अहित कारक समझना चाहिए ।

आहार क्या है ?

"आह्रीयते (पोषणार्थं) इति आहारः" शरीर के पोषण के लिए जो द्रव्य( ठोस,द्रव) लिया जाये , वह आहार है ।

यह आहार छः रसों से युक्त प्राणियों के प्राणों की रक्षा करने वाला होता है । बल , वर्ण, औज आदि की वृद्वि करता है । शरीर को पृष्ठ और सौष्ठव युक्त बनाता है । लेकिन कई बार यही आहार प्राणियों के प्राण भी हर लेता है और संकट भी पैदा कर देता है । इसलिए सोच समझ कर ही आहार का सेवन करना चाहिए ।

क्या खाएं ? इस पर विचार करें ।

राजस्थानी में एक कहावत है "ऊंट छोड़े आक और बकरी छोड़े ढाक"  यानि जी रेगिस्थान का जहाज ऊंट है वह सब कुछ आहार को पचा जाता है लेकिन उसको भी एक आक नामक पौधे को छोड़ना पड़ता है क्योंकि वह उसके लिए अहित कारक है उसी प्रकार बकरी के लिए ढाक अहित कारक आहार है ।

इसी प्रकार मनुष्य शरीर में भी बहुत से आहार हितकारक होते है और कुछ आहार द्रव्य अहितकर भी होते है । किसी किसी आहार के संस्कार से उसे हितकर भी बनाया जा सकता है लेकिन कुछ आहार तो ऐसे होते है कि उनकी प्रकृति ही अहितकारी होती है ।

आहारो का विभाजन :-

सभी आहारों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है ।

1 स्थावर आहार :- जैसे गेहूं, चावल, जौ , चना , साग- सब्जी , शुक धान्य, शमी धान्य आदि ।

2 जंगम आहार :-  पशु पक्षियों का मांस।

कौनसे आहार हितकारी है ?

इस संदर्भ में एक बात सही लगती है कि

"कोई के बैंगन वायरा,कोई के बैंगन पच।
कोई के बैंगन बादी करीं, कोई के बैंगन पथ्य।।" 

किसी के बैंगन वायुकारक होते है किसी को बैगन हितकारी होते है । तो यह एक अजीब सी विडंबना है कि क्या किया जाये । इसी समस्या का आभास महर्षि अग्निवेश को भी था कि यह समस्या हो सकती है इसलिए उन्होंने बहुत ही सुन्दर तरीके से शौध करके कुछ आहार द्रव्यों की सूचि बनाई जो प्रकृति से ही हितकारी है उनका स्वभाव ही ऐसा है कि उन्हें कोई भी किसी भी तरीके से खाये वे शारीर में हमेशा हितकारी ही कार्य करेंगी ।

एक सूचि ऐसी भी बनाई की उनको आप कैसे भी खाए वे शारीर को अहित ही पहुचायेंगी । उनका स्वभाविक गुण अहितकारी ही है ।

पहले हितकारी आहार की बात करते है , जो प्राकृत रूप से शरीर में सभी दोषो को सम अवस्था में रखने का ही कार्य करते है इस प्रकार के आहार द्रव्यों की एक सूची इस प्रकार है ।

ये आहार द्रव्य प्रकृति से ही हितकारी होते है , ये किसी भी प्रकार से अहितकारी नही होते है ।

1 लाल शाली चावल
2 मुंग
3 आकाशीय जल
4 सैंधा नमक
5 जीवन्ति पत्र शाक
6 ऐनेय मृग मांस
7 लाव पक्षी का मांस
8 गोह का मन
9 रोहित मछली का मांस
10 गाय का घी
11 गाय का दूध
12 तिल का तैल
13 सूअर की चर्बी
14 चुलुकी मछली की चर्बी
15 पाक हंस की चर्बी
16 मुर्गे की चर्बी
17 बकरे की मेद
18 अदरक
19 मुनक्का
20 शर्करा
ये बीस आहार द्रव्य प्रकृति से ही हितकारी होते है ।

अहितकारक आहार कौनसे है ??

जो शरीर को हर हालत में हानि पहुचाये उनका स्वाभाविक गुण ही ऐसा हो , उनको प्रकृति ने ही इस प्रकार का बनाया है उन आहार द्रव्यों की सूचि महर्षि अग्निवेश इस प्रकार बनाई है ।

1 जौ
2 उड़द
3 वर्षा में नदी का पानी
4 औसर नमक
5 सरसो की सब्जी
6 गाय का मांस
7 काण कबूतर का माँस
8 मेंढक का माँस
9 चिलचिम मछली का माँस
10 भेड़ का घी
11 भेड का दूध
12 कौशुम्भी का तैल
13 भैस की चर्बी
14 चटक पक्षी का मांस
15 कौवे की चर्बी
16 चटक पक्षी की चर्बी
17 हाथी की चर्बी
18 आलू
19 लकुच
20 गन्ने की राब

इन दोनों सूचियों में अनाज, फल ,पशु ,पक्षी ,बिल में रहने वाले जीव, जल में रहने वाले जीव,कन्द, मूल , घी , दूध, आदि सभी प्रकार के आहार द्रव्यों का विवेचन किया गया है ।

हजारो वर्ष पहले लिखे गए आयुर्वेद ग्रंथो में आज भी यथावत काम आने वाली बाते लिखी गई है । इन सभी बातों को आम पब्लिक पहुचाने के लिए ही यह लेख लिखा गया है । जब यह लेख लिखने से पहले जब मैं इस संदर्भ में पढ़ रहा था तब कुछ लोगो से मैंने यह जिक्र किया था कि लोग गाय का मांस क्यों खाते है यह तो अहितकारी होता है तब एक बन्धु ने सुश्रुत संहिता का उल्लेख करते हुए लिखा था कि गाय के मांस वीर्य वर्धक और पुष्टिकारक होता है । उस वक्त मैंने उन महोदय को यह जबाव दिया था कि मदिरा भी हर्ष और आनन्द उत्पन्न करने वाली होती है । लेकिन क्या सच में वह ऐसा करने वाली है । शराब का स्वाभाविक गुण शरीर को नुकसान पहुचाना ही  है ।

इन द्रव्यों में भी बहुत गुण भी है लेकिन जो स्वभाविक गुण बताया गया है वह हितकारी और अहितकारी के दृष्टिकोण से बताया गया है । इति


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