Sunday 24 September 2017

Ayurvedic kadha आयुर्वेदिक काढ़ा

काढा क्या है ?

आयुर्वेद चिकित्सा में प्रयुक्त होने वाली एक औषध व्यव्स्था का रूप होता है काढ़ा । काढ़े को क्वाथ ,कषाय आदि नामो से भी जाना जाता है । यह दवा स्वतंत्र रूप से भी काम में ली जाती है तथा कुछ रोगों में अन्य औषधि के अनुपान रूप में भी काम में ली जाती है ।
काढ़े का प्रयोग वैदिक काल से किया जा रहा है । यह अनेक प्रकार की अलग अलग औषधियों को मिलाकर तैयार कर तत्काल ही काम में ली जाने वाली औषधि है । आजकल कई आयुर्वेदिक फार्मेसियां इस औषधि को तैयार कर बन्द बोतल में प्रिजर्व करके भी बेचती है ।
इन दिनों मौसमी बीमारियों की रोकथाम के रूप में बहुतायत में कुछ रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवा को संग्रहित कर आयुर्वेद विभाग द्वारा आमजनता को यह काढा पिलाया जा रहा है ।
कैसे बनाते है काढ़ा
काढा बनाने की बहुत ही सरल विधि है । जिस प्रकार घर में चाय बनाते है उसी के समान काढा बनाने की प्रक्रिया भी होती है । इसमें कुछ मात्रा और समय का ध्यान रखते हुए यह औषधि तैयार की जाती है ।
मात्रा के लिए शास्त्रों में लिखा है कि एक तोला क्वाथ की औषधि को जौ कूट (मोटा चूर्ण) करके मिट्टी अथवा कलईदार बर्तन में सोलह गुने पानी में मन्द अग्नि पर पकावे । जब चौथाई पानी शेष रहे , तब कपडे से छान , सुखोष्ण ( थोड़ा गरम गरम )पिलावे ।
सावधानी :-
क्वाथ बनाते समय बर्तन का मुँह खुला रहना चाहिए । ढक देने से काढ़ा भारी (दुष्पाच्य)हो जाता है ।
काढ़े को मिट्टी के कोरे (नए) बर्तन में बनाना चाहिए या फिर कोई साफ मजबूत बर्तन जिसमे कलई  की हुई हो ऐसे बर्तन में काढ़ा बनाना चाहिए ।
काढ़ा बनाने के बाद उसे ज्यादा देर तक नही रखना चाहिए । तत्काल ही काम में लें लेना चाहिए ।
काढ़ा के प्रकार
आयुर्वेद में काढ़ा रोगानुसार औषधियों को इकठ्ठा करके बनाया जाता है ।
कुछ रोगानुसार काढ़ो को नाम यहां लिखा जा रहा है ।
कब्ज को दूर करने के लिए :- अभयादि क्वाथ
गुर्दे की पथरी में :- अश्मरी हर कषाय
बुखार में :- अमृताष्टक क्वाथ
पुरानी कब्ज में :- आरग्वधादि क्वाथ
जुखाम में :- गुल वनप्सादि, गौजिव्यादि क्वाथ
और भी बहुत क्वाथ है जिनमे
दस मूल क्वाथ
जन्म घुट्टी क्वाथ
त्रिफलादि क्वाथ
धान्य पंचक क्वाथ
पथ्यादि क्वाथ
मधुकादि हिम क्वाथ
ये सभी क्वाथ आयुर्वेद विभाग द्वारा संचालित औषधालयों में मुफ्त में मिलते है । और बहुत ही कारगर भी होते है ।
क्या है रोगप्रतिरोधक काढ़ा :-
आयुर्वेद ग्रन्थों में कुछ द्रव्यो का वर्णन मिलता है जिन्हें रसायन द्रव्य कहा जाता है जिनमे गिलोय , आंवला , हरीतकी , खजूर, द्राक्षा , आदि है ।
इनके अलावा कुछ द्रव्य इस प्रकार के भी होते है जो त्रिदोषों को संतुलित करते है । जिनमे गावजवां, मुलेठी, खाकसीर, हंसराज, अलसी, खतमी की जड़ काली मिर्च, गौखरू आदि औषध द्रव्य है
जब दोष समावस्था में होते है तभी मानव स्वस्थ रहता है । मनुष्य को स्वस्थ रखने के उद्देश्य से यह औषधि व्यवस्था की गई है ।
रोग प्रतिरोधक काढ़े में इस प्रकार की औषधियों को मिलाकर तैयार किया गया है कि वह दोषो का संतुलन बनाये रखे और रसायन औषधियों के प्रभाव से रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती रहे है ।
"रसायनं बल वर्धनं"  रसायन बल की वृद्धि करता है ।
विषैली वायु और विषैला जल वर्षा ऋतु में रोगों को जन जन में फैला देता है । जब शरीर में कमजोरी आती है तो बाहरी जीवाणु और विषाणु अटेक करते है जिनके कारण स्वाइन फ्लू , डेंगू, चिकनगुनिया , मलेरिया, आदि रोग होने लगते है । जब शरीर में रोगो से लड़ने की क्षमता रहेगी तो यह सभी रोग होने की संभावना कम हो जाती है ।

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