आयुर्वेद ग्रन्थों में "सिंदूर" नाम से करीब छः प्रकार की औषधियों का वर्णन किया गया है ।
जिनमे रस सिंदूर, ताल सिंदूर, मल्ल सिंदूर, ताम्र सिंदूर, रजत सिंदूर और अंत में है शिला सिंदूर । जिसका हम आज अध्ययन कर रहे है।
ये सभी सिंदूर कीटाणु नाशक( Antibiotics) है,
दूषित खान पान से या गलत आहार विहार से हमारे शरीर में कीटाणुओं का ना चाहते हुए भी प्रवेश हो जाता है । और हम बीमारियो की गिरफ्त में आ जाते है।
आज कल आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में बहुत से एंटीबायोटिक्स है जिनसे झटपट इलाज संभव है । लेकिन इलाज के साथ ही बहुत से साईड इफेक्ट भी साथ में आ जाते है और जीवन भर उनसे झुझते रहते है
ये सिंदूर जब आयुर्वेद ग्रन्थों में लिखे गए या इनका जब प्रयोग प्रचुर मात्रा में समाज में हो रहा था तब यह सब भी एंटीबायोटिक की तरह ही काम में लिए जाते थे ।
ये सभी गर्म प्रकृति के होते है । इनकी तासीर उष्ण होती है ।
इनको भी बहुत ही सावधानी से प्रयोग किया जाना चाहिए ।
इनका एक बहुत ही अच्छा फायदा है ये एलोपैथी के एंटीबायोटिक्स जितने खतरनाक नही होते है ।
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