Sunday 27 December 2015

श्वेतप्रदर (leacorrhoea) का उपचार--

             परिचय-- आयुर्वेद मे श्वेतप्रदर रोग को श्लेष्मज योनि व्यापद मे किया गया है,ऋतुकाल मे मिथ्या आहार-विहार से,अत्यंत मैथून से,उत्तेजक आहार सेवन से श्वेतप्रदर की उत्त्पति होती है,यह एक स्वतंत्र रोग है फिर भी यह रोग निम्न लिखित रोगो मे लक्षण के रूप मे दिखाई देता है,


                यह रोग कई रोगो के परिणाम स्वरूप होता है,विशेष रूपसे गर्भाशय,डिम्बग्रंथियो, गर्भाशयमुख, गर्भाशय का अपने स्थान से हटना, योनिमार्ग की सूजन, भीतरी जननेंद्रियो मे  फोडा -फुंसी, रसोली,आदि का होना, मुत्राशय की सुजन, सुजाक, आतसक, रक्ताल्पता, जिगर के रोग, गुर्दे के विकार,मधुमेह,मलावरोध,आदि रोगो के लक्षणो के  रूप मे यह रोग दिखाई देता है,यदि इन रोगो के कारण यह रोग हो तो किसी चिकित्सक के परामर्श से चिकित्सा करवाये,


                लक्षण- इस रोग मे रोगिणी की योनि से रात-दिन सफेदपानी या पीला पानी आता रहता है, जो लसदार होता है,योनि सदैव गिली रहती है,


                उपचार -- इस रोग की चिकित्सा रोगो के अनुसार आयुर्वेद ग्रंथो मे अलग अलग बताई है, यदि ऊपर बताये गये रोग ना होने पर भी यदि सफेद पानी की दिक्कत हो तो जो  चिकित्सा यहाँ पर  बताई जा रही है वह चिकित्सा करे , यदि रोग नया हो तथा प्रारम्भिक अवस्था मे हो तो इस उपचार को प्रयोग करे निश्चित रूप से आराम हो जायेगा


नुस्खा -- 

आम के फूल,सुपारी के फूल, पिस्ता के  फूल, ढाक का गौंद, छोटा गौखरू, प्रत्येक 12-12 ग्राम, इमली के बीज की गिरी 18 ग्राम , बकायन 9ग्राम, सफेद चंदन का चुर्ण 6ग्राम, मीठा इंद्र जौ 6ग्राम, सफेद मूसली 12ग्राम, अनार के फूल 12 ग्राम, सब औषधिया पृथक-पृथक पीसकर बंग भस्म 6ग्राम तथा खांड सब औषधियो के बराबर मिला कर रख ले,

मात्रा -- 6ग्राम औषधि पाव दूध के साथ प्रतिदिन खाना चाहिये 

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