Sunday 30 July 2017

सिरदर्द या शिरः शूल (HEAD ACHE)

क्या होता है सिरदर्द ?

किसी भी रोग में वह रोग संक्रामक हो या दोषज, उनमे सिर दर्द एक सामान्य और महत्वपूर्ण लक्षण के रूप में दिखने वाला रोग है । कोमल प्रकृति के मनुष्य में शारीर में होने वाली किसी भी प्रकार की विकृति से यह रोग उत्पन्न हो सकता है। किसी किसी को हल्का तनाव होने पर भी यह रोग आक्रांत कर लेता है । रक्तदाब के बढ़ने या घटने से माथे (fore head) पर होने वाली तीव्र पीड़ा को सिरदर्द कहते है ।

क्या कारण होते है ?

प्राणाः प्राण भृतां यत्र श्रिताः सर्वेंद्रियानी च ।
यदुत्तमं$मगानां     शिरः तद्भिधीयते ।। च.सु.

जिसमे प्राणियों के प्राण आश्रित रहते है , सभी ज्ञानेन्द्रियाँ जहाँ रहती है और जो शरीर के सभी अंगों में उत्तम अंग है वही शिर कहलाता है ।

इसमें कोई भी रोग की उत्त्पति हो वह सामान्य सी हो या बड़ी हो तो यह एक प्रकार से संकेत देने लगता है । इसमें कुछ गड़बड़ी का अहसास दिलाने की क्षमता प्राकृतिक रूप  से है और यही कारण है जब विकृति होती है तो यह गर्म होकर दर्द करने लग जाता है ।

जब सिरदर्द के कारणों की बात करते है इसके कारणों में सामान्य से लेकर भयंकर कारणों की जानकारी मिलती है ।

रक्तचाप के बढ़ने और घटने से दोनों समय सिरदर्द हो सकता है।

रक्त में विषाणु और जीवाणु के इन्फेक्शन से यह लक्षण प्रकट हो जाते है ।

ज्यादा बोलने , जोर से बोलने ,क्रोध करने , चिंता करने और तेज या लगातार हंसने से भी यह रोग हो जाता है ।
नींद न आने पर यह बहुत लोगो को होते देखा जाता है ।कई बड़े रोगों के कारण भी लोगो में सिरदर्द देखने को मिलता है

जैसे :-
आंधाशीशी Migraine
प्रतिश्याय Coryza
अंनत शूल Trigeminal Neuralgia
सूर्यावर्त शूल Supar Orbital Neuralgia
शिरो भ्रम Vertigo
मस्तिष्कार्बुद Intra Cranial Tumours
मस्तिष्क विद्रधि Brain Abscess
शिरोभिघात Head Injuries

क्या कहता है आयुर्वेद ?

आयुर्वेद मतानुसार सभी ऋषियों के अलग अलग मत है ।
आचार्य चरक लिखते है कि शिरोरोग के पांच ही प्रकार है और इन्ही कारणों से यह रोग उत्पन्न होता है ।
वातज, पित्तज, कफज, सन्निपातज, और कृमिज ।

आचार्य सुश्रुत ने 11 प्रकार बताये है और आचार्य वाग्भट्ट 10 प्रकार बताते है ।

आयुर्वेद ग्रन्थों में शारीरिक चिकित्सा में चरक संहिता का ही बड़ा नाम है सुश्रुत शल्य के लिए और वाग्भट निदान के लिए प्रसिद्द है ।

आयुर्वेद ग्रंथो में सभी शिरो रोगो के कारण निम्नानुसार बताये है ।

शिरः रोग के प्रमुख कारण :-

1 अधारणीय वेगो को रोकने से ।
2 दिन में सोने और रात में जागने से ।
3 नशीली वस्तु के सेवन से ।
4 जोर जोर से बोलने पर ।
5 औंस में सोने से ।
6 हवा के वेग के सामने आने से ।
7 अधिक मैथुन करने से ।
8 अप्रिय और उग्र गन्ध से ।
9 धुली, धुआँ, बर्फ, और धूप के आघात से ।
10 गुरू, अम्ल, हरित ( अदरक, मिर्च) , पदार्थो के सेवन ।
11 अत्यंत शीतल जल के सेवन से ।
12 शिर पर चोट लगने से
13 पूर्व भोजन के पचने से पहले दुबारा भोजन करने से
14 रोने से भी और आसुंओ को रोकने से भी ।
15 बादलो के छा जाने से ।
16 मानसिक तनाव से ।

इन उपरोक्त कारणों से शरीर में वायु प्रकुपित होकर शिरः शूल और अन्य शिरो रोगों को उत्पन्न कर देती है ।

आचार्य अग्निवेश चरक संहिता में इसका वर्णन इस प्रकार करते है ।
"वातादयः प्रकुप्यन्ति शिरस्यस्रम च कुप्यन्ति ।
ततः शिरसि जायन्ते रोगा विविध लक्षणा ।।" च.सु.

बचाव :- शिरः शूल से कैसे बचा जाए ?

शिरः शूल से बचने के लिए ऊपर कहे गए कारणों से बचना चाहिए । अपने कर्तव्यों की पालना सही समय पर करनी चाहिए ।

उपचार :-

सामान्य उपाय :-

1 रोग के मूल कारण को दूर करे ।
2 रोगी को अजीर्ण से बचाये ।
3 मलावरोध न रहे ।

विशेष उपाय :-

विशेष उपाय में सिरदर्द के मूल कारण की चिकित्सा औषधि व्यवस्था करवा कर करनी चाहिए । जिस प्रकार का रोग हो उसकी उसी प्रकार से योग्य चिकित्सक से चिकित्सा करवानी चाहिए ।

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