Wednesday 1 March 2017

नाड़ी परीक्षा :- रोग परीक्षण की पुरानी पद्धति

मैं  26 फरवरी 2017 को भरतपुर ,राजस्थान में  "आधुनिक परिपेक्ष्य में नाड़ी निदान का महत्त्व" विषय पर आयोजित सेमीनार में भाग लेने गया था । इस सेमीनार के आयोजक "राजस्थान ह्रदय रोग चिकित्सा समिति" एवं  "आयुर्वेद मेडिकल ऑफिसर राजस्थान" (अमोर) थे। यह सेमीनार पूर्ण रूप से स्वतन्त्र सम्भासा थी इसमें राजकीय अनुदान प्राप्त नही हुआ था इसलिए भी यह ज्यादा महत्वपूर्ण थी । क्योंकि राजस्थान में इस प्रकार की यह शायद पहली ही सम्भासा (सेमीनार) थी ।

इस सेमिनार में नया अहसास हुआ। बहुत ही नयापन देखने को मिला । हालांकि विषय पूराना था । जो क़ि लगभग लुप्त हो चुका है । कोई भी आयुर्वेद चिकित्सक आजकल इस रोग परिक्षण की विधा को रोग परिक्षण में प्रयोग नही करते है । हालांकि हाथ लगाकर ये जरूर देख लेते है कि नाड़ी (puls) चल रही है या नही । इसके अलावा इस  विधा का जो महत्वपूर्ण पार्ट है उसकी तरफ किसी किसी आयुर्वेद चिकित्सक का ही ध्यान जाता होगा अमूमन यह पद्धति लुप्त हो चुकी है ।पहले ज़माने में जरूर कई लोग "नाडिया वैद्य" के नाम से जाने जाते थे । आजकल यह सब चलन में नही है ।

राजस्थान हृदय रोग चिकित्सा समिती के अध्यक्ष डॉ चंद्रप्रकाश दीक्षित ने इस विषय पर एक पुस्तिका लिख़ी है और गहन अध्ययन करने के बाद यह सेमीनार आयोजित करवाई जोकि बहुत ही अच्छा कार्य है ।

इस सेमिनार की दो ख़ास बाते रही एक तो यह क़ि यह विषय पुराना था , और दूसरी बात यह थी क़ि इस विषय पर भाग लेने वाले आयुर्वेद जगत के वे लोग थे जो आयुर्वेद की पुरानी विधाओं (जैसे अग्निकर्म, जलोका, पंचकर्म , नाड़ी परीक्षा)  को जन सामान्य तक लाने के लिए नये और  सृजनात्मक  तरीके से आयुर्वेद का प्रचार करना चाहते है जिनको डॉ विमलेश विनोद कटारा ने "अमोर" नाम दिया है ।

नये और पुराने का यह मेल मुझे बहुत ही अच्छा लगा ।क्योकि जब सामने से कोई चमकदार रोशनी आती है तो उस रोशनी से आँखे चौंधिया जाती है । जोकि आजकल आयुर्वेद के साथ हो रहा है सब कुछ आधुनिक होता जा रहा है कुछ भी दिखाई नही दे रहा है आयुर्वेद किस ओर जा रहा है और चौन्धियाये हुए आँखों को मिचमिचाते हुए आयुर्वेद विशेषज्ञ कहा चले जा रहे है । कुछ भी समझ में नही आ रहा है । सरकार भी आयुर्वेद के आधुनिकीकरण के नाम पर वेलनेश सेंटर खोल कर आयुर्वेद मेडिकल ऑफिसर्स से आधुनिक चिकित्सा करवाने लगी है ।ऐसा लगने लगा है कि आधुनिकता के नाम पर आयुर्वेद को और  आयुर्वेद की वास्तविक आत्मा को समाप्त किया  जा रहा है । आयुर्वेद को हर्बल नाम देकर भी आधुनिक बनाया जा रहा है ।

आयुर्वेद की रोग निदान (डायग्नोस) पद्धति तो लगभग चिकित्सक भूल चुके है । रोगों का नाम भी अब वात पित्त कफ जनित न होकर मॉडर्न पद्धति के अनुसार होते जा रहे है । ये सब जरूरी भी है क्योंकि जिंदगी की दौड़ में यदि कदम मिलाकर चलना है तो गति को तेज रखना ही पड़ता है । लेकिन अपनी संस्कृति को भूल कर दुसरो की संस्कृति अपना लेना बुद्धिमानी नही हो सकती । अपनी विधा को सदैव जिंवंत रखना हमारा कर्तव्य है । सामने से आने वाली रोशनी आँखों को बाधित करती है। लेकिन जब वही रोशनी पीछे से आये तो रास्ता साफ साफ दिखाई देने लगता है ।

इस सेमिनार में दो प्रबुद्ध विद्वानों के व्याख्यान भी सुनने को मिले जो बहुत ही सारयुक्त और प्रेरित करने वाले थे ये महान हस्ती थे एक आयुर्वेद जगत के महान लेखक डॉ बनवारी लाल गौड़ और दूसरे आई .एफ .ओ. श्री दीप नारायण पांडे । श्री पांडे जी की कही हुई कुछ बातों ने भी मुझे आत्म चिंतन के लिए मजबूर कर दिया । सभी उपस्थित अमोर्स से एक बात कही क़ि आयुर्वेद चिकित्सको के परिवारों में केंसर, डाइबिटीज, बी पी , मानसिक रोग और मोटापा ये पांच प्रकार के  रोग होने ही नही चाहिए । परिवारों के अलावा सगे संबंधियों को भी इन रोगों से बचा के रखना आप लोगो का कर्तव्य  है । क्योंकि आप लोगो का पहला उद्दयेश्य "स्वस्थयस्य स्वास्थ्य रक्षणम" है । सिर्फ आयुर्वेद ही वो चिकित्सा पद्धति है जो सबको स्वस्थ रखने की क्षमता रखती हैं। उनके विचारों से लगा कि जनता जनार्दन को हमसे कितनी अपेक्षाएं है और हम भाग रहे है मॉडर्न साइंस की ओर ।

डॉ दीक्षित के नाड़ी निदान का आधुनिक परिपेक्ष्य में क्या महत्त्व है इस विषय पर दिए गए व्याख्यान सुनकर शास्त्रोक्त ज्ञान का महत्त्व समझ में आया ।

डॉ चंद्रप्रकाश दीक्षित की लिखी पुस्तक "आयुर्वेदीय निदान की अनूठी पद्धति :- नाड़ी परीक्षा" का विमोचन भी किया गया । जिसमे उन्होने आयुर्वेद की संहिताओं और निघंटुओ में से नाड़ी के बारे में लिखी व्याख्याओं को बहुत सरल तरीके से लिखा है। आयुर्वेद चिकित्सको के लिए यह लघु पुस्तक बहुत ही कारगर साबित हो सकती है । नाड़ी परीक्षा के सम्बन्ध में योग रत्नाकर में लिखा है :-
"रोगाक्रान्तस्य शरीरस्य स्थानान्यष्टौ परिक्षयेत ।
नाड़ी मुत्रं  मलं जिव्हा शब्दम स्पर्श दर्गाकृती ।।"
इस अष्टविद परीक्षा में नाड़ी परीक्षा को प्रथम स्थान पर रखा है ।

नाड़ी परीक्षा की इस सेमिनार के बहाने से पुरानी आयुर्वेद की धरोहरो को जनसामान्य के लिए सामने लाने की यह पहल आयुर्वेद चिकित्सको के लिए पीछे  से आती, रास्ता दिखाती रोशनी के समान है । अंधेरो से घिरे रास्ते में लोगो की वांछित अपेक्षाओं को पूर्ण करने लिए का हम सबको मिलकर इसका स्वागत करना चाहिए । और इस प्रकार की स्वतन्त्र सम्भासाओ का आयोजन करते रहना चाहिए ।

डॉ वेदप्रकाश कौशिक
आयुर्वेद मेडिकल ऑफिसर राजस्थान

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