विभिन्न प्रकार के अशुद्ध या विरोधी आहार विहार के कारण शरीर में जब वात पित्त और कफ की वृद्धि हो जाती है और वह बढे हुये त्रिदोष त्वचा, रक्त , मांस, तथा लसिका को दूषित कर देते है जिससे विभिन्न प्रकार के चर्म रोग होने लगते है ।
आयुर्वेद ग्रंथों में चर्म रोगों को कुष्ठ रोगों में गिना गया है ।ये चर्म रोग जिन्हें कुष्ठ कहा गया है ये अठारह प्रकार के बताये है ।
इनका भी विभाजन किया गया है 1.महाकुष्ट 2. क्षुद्र कुष्ठ ।
महाकुष्ठ सात होते है जबकि क्षुद्र कुष्ठ ग्यारह प्रकार के बताए गए है । आयुर्वेद एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमे सभी रोगों का विस्तार से वर्णन किया गया है ।
महाकुष्ठ :- सात है
1. कपाल
2.उदुम्बर
3.मंडल
4.ऋष्य जीभ
5.पुण्डरीक
6.सिध्म
7.काकनक
क्षुद्र कुष्ठ :- ग्यारह होते है ।
1. एक कुष्ठ
2. चर्म कुष्ठ
3 किटीभ
4 विपादिका
5 अलसक
6 दद्रु
7 चर्म दल
8 पामा
9 विस्फोटक
10 शतारु
11 विचर्चिका
जिस प्रकार चर्म रोगों का वर्णन किया गया है उसी प्रकार औषधियों की भी विस्तृत चर्चा की गई है । अब मुख्य रूप से सही योजक (चिकित्सक ) हो तो आयुर्वेद चिकित्सा से भी बहुत लोगो को लाभांवित किया जा सकता है । कुछ औषधियों का जिक्र यहाँ किया जा रहा है । इनको सामान्य रूप में काम में लिया जा सकता है ।
चिकित्सा (Treatment)
चर्म रोगों की सामान्य चिकित्सा में :-
वात दोष प्रधान चर्म रोग :- घृत पान
पित्त दोष प्रधान चर्म रोग :- वमन
कफ दोष प्रधान चर्म रोग में :- रक्त मोक्षण, विरेचन ।
औषदिय चिकित्सा :-
महातिक्त घृत
खदिरारिष्ट
गंधक रसायन
मदयंत्यादि चूर्ण
सरिवादी हिम
महामंझिष्ठादि कषाय
तुवरक तैल
बाकुची योग
रसादि लेप
गुलाबी मलहम
जीवंत्यादि मलहम
उपरोक्त दवाइयां बाजार में उपलब्ध है । इनके अलावा भी बहुत सी दवा है जिन्हें चिकित्सक अपने विवेक से तैयार करके काम में ले सकते है ।
अपने जीवन में आयुर्वेद को अपनाए । जीवन सुखमय भी होगा और जीने का आनंद भी आयेगा ।
डॉ वेदप्रकाश कौशिक
आयुर्वेद मेडिकल ऑफिसर राजस्थान
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