Tuesday 7 March 2017

इन्द्रायण(Indrayan/Bitter Apple Herb) :- गर्भ धारण में उपयोगी

प्रजास्थापन महा कषाय (procreants) का एक औषध द्रव्य है इन्द्रायण । इसे ऐंद्री, इंद्र वारुणी, और इन्द्रायण के नाम से जाना जाता है।
परिचयः

रस- तिक्त,
गुण - गुरू, स्निग्ध, सर ।
वीर्य- उष्ण, विपाक- कटु,
प्रभाव- रेचक,
और दोष कर्म - कफ नाशक होता ।
इसकी पोटेंसी एक वर्ष बताई गई है ।

यह औषधि सूत्र प्रतानी के रूप में प्रायः राजस्थान , बंगाल, बिहार, की रेतीली भूमि में पाई जाती है ।

इसके पत्र एकांतर होते है ।
पुष्प पीत और घटाकार (मटके के आकार के) होते है । फल- पीत(पीले रंग के )
और  बीज अंडाकार धूसर होते है ।
उपयोग:-

स्त्रियों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण औषधि है । स्त्रियों में यह बल बढाने में बहुत ही उपयोगी है जिन महिलाओं में गर्भ धारण की क्षमता कम होती है उनमें यह गर्भाशय की कार्य क्षमता को बढ़ा कर गर्भाशय को मजबूत कर गर्भ धारण के योग्य बनाती है इसे महिलाओं में वाजीकरण बढाने वाली अषधि के रूप में जाना जाता है।

जिन महिलाओं में समय से पहले आर्तव (mentruretion) आना बंद हो जाता है या बहुत ही कम मात्रा में आता है उस अवस्था में यह औषधि कारगर सिद्ध होती है इसलिए इसके बारे में लिखा है कि यह नष्ट आर्तव में बहुत ही उपयोगी है ।
 
अन्य रोगों में भी यह कार्य करती है जैसे असमय में बालो के सफेद होने पर इसके बीजों से तैयार किया हुआ तैल से अभ्यंग (बालो को तेल में भिगोना अभ्यंग कहलाता है ) करने से बाल असमय में सफेद नही होते है ।
इन्द्रायण की जड़ के लेप को शौथ, विद्रधि, उपस्तम्भ  में लेते है । यह कमला और प्लीहोदर रोग को भी ठीक करता है ।

इन्द्रायण का विशेष रूप से स्त्रियो के गर्भ धारण की क्षमता बढाने में निम्न लिखित प्रकार से उपयोग किया जाता है ।

बेल पत्र के पत्तो के साथ इन्द्रायण की जड़ को पीस कर 10-20 ग्राम की मात्रा में नियमित प्रातः काल और सायंकाल स्त्री मरीज को पिलाने से वह गर्भ धारण करने में सक्षम हो जाती है ।

गर्भ धारण के बाद कभी कभी गर्भ अपने स्थान से नीचे की ओर चला जाता है उस समय भी इसकी जड़ो को पीसकर प्रसूता स्त्री के बढ़े हुए पेट पर लेप करने से पेट अपनी जगह पर आ जाता है ।

इसके मुख्य योग जो बाजार में मिलते है :-

1 नारायण चूर्ण
2 सुख विरेचनी वटी

डॉ वेदप्रकाश कौशिक
आयुर्वेद मेडिकल ऑफिसर राजस्थान

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