Saturday 3 January 2015

स्वस्थ रहने का उपाय-शारीरिक श्रम

(1) भुमिका                                               भौतिक या आध्यात्मिक कोई भी पुरूषार्थ स्वस्थ शरीर से ही सम्भव है.शारीरिक सामर्थ्य बनाये रह कर ही हम जीवितो मे गिने जा सकते है.बिमार और दुर्बल व्यक्ति तो अर्धमृतक ही बने रहते है . देह गत पीडा के साथ असफलता और असमर्थता की मनोव्यथा भी जुडी रहती है.अतः उचित यही है ,कि स्वास्थ्य के सम्बंध मे उपेक्षा न बरती जाये.                                                                                                              (2)किस पर निर्भर है स्वास्थ्य ?                                                                                                                                              स्वास्थ्य दवादारू पर निर्भर नही है . वह पैसो से भी नही खरीदा जा सकता , कीमती चीजे खाकर आरोग्य रक्षा की बात सोचना भी व्यर्थ है.यह सुरक्षा तो आहार - विहार ,श्रम , और संतुलन पर निर्भर रहती है.जो इनकी विधि व्यस्था बनाये रखता है वही स्वास्थ्य का आनंद लेता है और वही कमजोरी एवम बिमारी मे अपनी रक्षा करने मे समर्थ होता है.


                                                                                                                   
(3)शारीरिक श्रम ना करने से क्या होता है ?
                              काम ना आने वाले चाकु को भी जंग खा जाता है, काम मे ना आने से शरीर भी अपनी क्षमता खो बैठता है. जो खाते है ,उसे पचाने एवम शरीर के कलपुर्जो  को गतिशील बनाये रखने के लिये परिश्रम करते रहना आवश्यकहै,जो कडी मेहनत करते है ,उनके अंग प्रत्यंग मजबूत रहते है.जब कि आराम तलब और कामचोरो की काया अशक्त होती चली जाती है, न उनका अन्न  पचता हैऔर न गहरी नींद आती है,अभ्यास न होने से जरा सा काम आ पड्ने पर थक जाते है ,बाहर से ठीक दिखते हुये भी कडी मेहनत न करने वाले लोग भीतर से खोखले होते चले जाते है,भूख घटती जाती है,और रस रक्त भी कम बनता है,उतने भर से जीवन यात्रा को दूर तक खीचते ले जाना सम्भव नही रहता , आरामतलबी एक अभिशाप है, शारीरिक मेहनत से जी चुराना और अस्वस्थता को आमंत्रण देना एक ही बात है,
(4)मानसिक श्रम का स्वास्थय पर प्रभाव -
                               लोग दिमागी काम को आजकल ज्यादा महत्व देने और शारीरिक मेहनत की उपेक्षा करने लगे है,इस आधुनिक  युग मे इतनी सुविधाये हो गई है कि हम घर बैठे बैठे कुछ भी ओडर कर सकते है और मनुस्य से ज्यादा मशीन काम करने लग गई है औरते भी पुरूषो के बराबर ओफिस मे बैठ कर काम करती है ,मेरे एक इंजिनियर मित्र है वो कहते है कि" हमने टेलिविजन का आकार छोटा कर दिया है लेकिन हमारे तौंद का आकार कब बढ गया पता ही नही चला", बैठे बैठे लगातार मानसिक श्रम करने से मोटापा, गैस,एसिडिटी, अपचन, पाईल्स , जोडदर्द आदि बिमारिया घर कर लेती है, मानसिक श्रम करना भी जरूरी है लेकिन साथ ही शारीरिक श्रम करना बहुत ही जरूरी है,
(5) क्या कहती है प्रकृति ?
                                  पशु , पक्षी, अपने आहार की खोज मे तथा विनोद के लिये स्वभावतः इधर-उधर भागते दौडते रहते है फलतः उनका शरीर सुढ्र्ढ और समर्थ बना रहता है ,प्रकृति की इच्छा यही है , कि हर जीव कडी मेहनत का अभ्यासी बने और स्वास्थ्य एवम पूर्ण आयुष्य का सुख भोगे, मानसिक श्रम से अधिक पैसा कमाया जा सकता है,पर शारीरिक श्रम की अपनी उपयोगिता है.कम कमाया जाये या न कमाया जाये तो भी स्वास्थ्य  और आरोग्य की द्रष्टि से मेहनत हर हालत मे करनी चाहिये जिससे पसीना निकले और गहरी नींद का आनंद मिले.
(6)शारीरिक श्रम की उपयोगिता

                                   स्वास्थ्य रक्षा के लिये यह नितांत आवश्यक हो गया है कि हर किसी के मन मे शारीरिक श्रम की महता एवम उपयोगिता भली प्रकार बिठा दी जावे . उसके बिना न हमारी गरीबी दूर होगी न बेकारी . न बिमारी से बचेंगे न कमजोरी से . प्रगति तथा सफलता पाने के लिये परिश्रम और पुरूषार्थ आवश्यक है.और इसे वही कर सकता है जिसके शरीर मे पर्याप्त सामर्थ्य है,उक्त तथ्य जिस दिन हमारी समझ मे आजायेगा , उसी दिन से शारीरिक श्रम व कडी मेहनत के पसीना बहाने वाले कार्यो के प्रति रुची पैदा हो जायेगी , उन्हे आरोग्य का मूल समझते हुये अपनी नियमित दिनचर्या मे उपयुक्त स्थान दिया जाने लगेगा, उचित परिश्रम से शरीर घिसता नही वरन सशक्त और मजबूत बनता है,आलसी मन इसे स्वीकार ना करे तो भी उसे बल पूर्वक समझाना चाहिये कि स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन की सम्भावना देहगत परिश्रम पर बहुत निर्भर करती है. मेहनत से बचने का दंड मनुष्य को बिमारी व कमजोरी से उत्पन्न परेशनियो के रूप मे भुगतना पडता है.


(7)उपसँहार
                                  जिन्हे स्वस्थ रहना है वे मन को हल्का रखे , हँसने की आदत डाले और चित को प्रशन्न व संतुष्ट रखाकरे , जो अभाव तथा कठिनाईयाँ सामने है उनका धैर्य , साहस और सुझबूझ केसाथ मुकाबला करेँ,
                                  जिन्हे सुविधा हो वे लोग पार्क मे भ्रमण करे , व्यायामशाला जाये ,जिम मे जाकर मेहनत करे ,बच्चो के साथ खेले , घर पर पोधे लगाये , पोधो की देख भाल करे , औरते जो घर पर रहती है वो पार्क मे जाये , सब्जी लेने बाजार जाये ,मंदिर जाये ,जो औरते नौकरी पेसा मे है वे नियमित रूप से घूमने जाया करे ,शरीर के हर अंग को पूरी मेहनत मिले और पसीना निकले ऐसे कार्य के लिये हर व्यक्ति को समय निकालना ही चाहिये  , स्वास्थ्य रक्षा की द्रष्टि से यह प्रक्रिया अति आवश्यक है,.

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