Saturday 3 January 2015

" जान है तो जहान है।"

" जान  है तो जहान है।"
                 

           हम यह जुमला बार बार सुनते है और इस पर हम ज्यादा माथा पची नहीं करते क्योकि हम यह समझते है कि मृत्यु दो प्रकार की होती है अकाल और जराजन्य। और एक है  परेशानी युक्त जिंदगी। हम समझते है कि
हमारी जिंदगी कभी भी खत्म  होने वाली नहीं है। हम इस भरम मे अपनी जिंदगी काटते रहते है। कई बार ऐसा होता भी हमारी जिंदगी चलती रहती है बड़ी लंबी जिंदगी मगर बीमार सी थकी थकी सी और परेशानियों से भरी।

            हम जीवन में पेट भरने के लिए काम करते है जान को बचाये रखने की यह पहली प्रक्रिया है लेकिन हम इस प्रक्रिया को  जीवन में  इतना महत्व देने लगते है और अन्य सभी प्रक्रियाएँ गौण हो जाती है

             आयुर्वेद के विद्वानो ने लिखा है जिस प्रकार सारथी अपने रथ की देखभाल करता है उसकी सारसम्भाल करता है, उसी प्रकार मनुष्य को अपने शरीर की देखभाल करनी चाहिए। "सर्वं परित्यज्य शरीरं पालयेत...। अर्थात सभी कुछ त्याग कर शरीर का पालन करना चाहिए ।           

 देखभाल का मतलब सिर्फ़ पेट भरना मात्र नहीं है,बल्कि संपूर्ण शरीर की और अपना ध्यान देना है योगी लोग जब ध्यान लगाने की बात कहते है तब वे लोग अपने अंदर झाकने का जिक्र करते है कोई कहता है नाक पर नजर रखे कोई कहता है अपने भोंहे के बीच मे नजर रखें कोई नाभि पर ध्यान लगाने का जिक्र करते इन सब का एक ही मतलब है की अपने आपको देखो ,अपने आपको पहचानो। 

कैसे ? निम्न बिंदु है। …
           १ प्रकृति
            २ कर्म
            ३ लक्ष्य्
प्रकृति को जाने और यह तय करे क़ि मेरी प्रकृति क्या है और मुझे किस तरह से जीना है । किसके साथ किस प्रकार से रहना है । किस प्रकार का भोजन करना है । अपनी प्रकृति को जाने और सही तरह से जीने की कोशिश करे । यह मानव शरीर बहुत भाग्य से मिला है। तुलसी दास जी लिखते है " बड़े भाग्य मानस तन पावा" । इस शरीर को बड़े जतन करके  पुरे मनोयोग से पालन करना चाहिए । 

कर्म :- हम जैसे कर्म करते है वैसा फल अवश्य ही मिलता है । यह बात शास्त्रो में भी लिखी है और अनुभवी महापुरुषों ने भी कही है । इसलिए कर्म करने से पहले अच्छे बुरे की पहचान कर के फल का विचार करके ही कुछ करना चाहिए । कर्म फल भी अकाल मृत्यु का भय पैदा करती है । और जीवन संकट में आ सकता है 

लक्ष्य के लिए कहा गया है क़ि लक्ष्य विहीन व्यक्ति का जीवन व्यर्थ होता है । जैसे पेंडुलम हिलता भर है , जाता कही नही है उसी प्रकार लक्ष्य विहीन व्यक्ति भी व्यर्थ जीवन बर्बाद करता है । जीवन को सुखमय बनाने के लिए एक बहूत अच्छा सा लक्ष्य बना कर जीवन जीना चाहिए ।लक्ष्य विहीन व्यक्ति मानसिक रोगों से ग्रस्त हो जाता है । और असमय पर कभी कभी गलत कदम उठा लेता है । अपने जीवन को खतरे में डाल देता है  ।

ऊपर लिख़ी बाते यदि सही तरीके से समझ में आ जाये तो जान को कोई खतरा नहीं होगा। हम अपनी जिंदगी को अकाल मृत्यु से बचा सकते है और परेशानियों से भी। 

डॉ वेदप्रकाश कौशिक 
9828767018

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